Raag Ratlami Land Mafia : जिले में जगह जगह घूम रहे है सरकारी बुलडोजर,जमीनखोरो की जान पडी मुसीबत में
–तुषार कोठारी
रतलाम। आखिरकार वो वक्त आ ही गया,जब इंतजामिया के बुलडोजरों का जलवा नजर आने लगा। शहर ही नहीं जिले में कई जगह बुलडोजर घुमते हुए देखे जा रहे है। असल में इसकी शुरुआत तो पहले ही हो गई थी,लेकिन दीवाली के दिनों में ये मुहिम कुछ ठण्डी होने लगी थी। इदर दिवाली निकली और उधर इंतजामिया के बडे साहब ने जिले भर के तमाम अहलकारों को एक कडी चिट्ठी लिख दी। बडे साहब ने तमाम अफसरान को चेताया कि अगर मुहिम तेज ना हुई और कहीं अवैध कालोनी बनती हुई नजर आ गई तो कार्यवाही की चपेट में अफसर खुद भी आ जाएंगे। बस फिर क्या था,जिले भर में शबर कस्बों को चलाने वाले अफसर फार्म में दिखाई देने लगे।
पिछले दो दिनों में लगातार शहर के दो बाहरी इलाकों में सरकारी बुलडोजर घूमता रहा। कही इसकी चपेट में काटेज आए,तो कहीं सीसी की सडकें। इंतजामिया के अफसरों का कहना है कि मुहिम सिर्फ बुलडोजर तक ही नहीं रहने वाली। जिन जमीनों पर बुलडोजर घूम रहे हैैं उन जमीनों के मालिकों की भी शामत आने वाली है। इन जमीनों के मालिकों को अभी इस बात का जवाब देना है कि उन्होने अवैध काम चालू क्यों किया था? इसके लिए इंतजामिया ने इन जमीन मालिको ं के खिलाफ थानों में मुकदमे दर्ज कराने के निर्देश भी दे दिए है।
जिला इंतजामिया के बडे साहब की सख्ती ने जमीन के जादूगरों की सिïट्टी पिïट्टी गुम कर दी है। हांलाकि कई सारे पुराने जमीनखोर अभी पकड मेंं नहीं आए है,लेकिन बडे साहब की स्पीड को देखते हुए वो दिन भी दूर नहीं,जब छंटे छंटाए पुराने जमीनखोर भी कार्रवाई की चपेट में आ जाएंगे। शहर की तमाम ऐसी कालोनियां है,जो कहने को तो वैध है,लेकिन जमीनखोरो नें कई कालोनियों के बागीचे और दूसरी सुविधाएं हजम कर डाली है। कहींं सडक़ें संकरी हो गई है,कई सीवर लाइन नहीं बनी है। सरकारी दस्तावेजों में तो कालोनी वैध हो गई,लेकिन इसके बाद कालोनाईजर ने अपनी मनमर्जी से बाग बगीचे प्लाट में बदल दिए। शहर के लोग उम्मीद लगाए बैठे है,कि बडे साहब इस पर भी नजरे इनायत करेंगे और पुरानी हो चुकी कालोनियों की भी सुध लेंगे।
चार दिन की चांदनी….
शहर के पियक्कडों के लिए आए अच्छे दिन अब हवा हो गए है। पिछला पूरा साल एक तरफ जहां कोरोना के असर में था,वहीं सुराप्रेमियों के लिए हद से ज्यादा मंहगी सुरा की भी समस्या थी। फि जैसे ही सरकार ने नई पालिसी बनाई और ठेके अलग अलग हुए,सुरा प्रेमियों को मजा आ गया। सुरा एकदम से सस्ती हो गई। जो सुराप्रेमी पहले मंहगे दामों के चलते अंग्र्रेजी छोडकर देसी पर आ गए थे,वो न सिर्फ फिर से अंग्र्रेजी बल्कि हाई लेवल अंग्र्रेजी पर आ गए थे। लेकिन सुरा व्यवसाइयों को सुराप्रेमियों का यह सुख देखा नहीं गया। पहले जहां सुरा व्यवसाईयों की आपसी प्रतिद्वंदिता से सुराप्रेमी मजे में थे,वहीं अब सारे सुरा व्यवसाइयों ने अपनी काम्पिटिशन बन्द कर दी है। बताते है कि तमाम सुरा व्यवसाईयों ने बीतें दिनों एक मीटींग की और आपस में समझौता कर लिया। सुरा व्यवसाईयों ने समझौते के बाद फिर से भाव आसमान पर पंहुचा दिए है। यानी सुराप्रेमियों के लिए आए अच्छे दिन अब समाप्त हो गए है। अब उन्हे फिर से मंहगी कीमत वाली पीनी पडेगी। सुरा व्यवसाईयों के आपसी समझौते के चलते अब सुरा व्यवसायी दुस्साहसी भी हो गए है,और सरकारी नियमों को बेहिचक तोड रहे है। बिना अनुमति के अहाते चलने लगे है और दुकानें भी आधी रात के बाद तक खुलने लगी है।