Raag Ralami Election Candidate : चुनावी चर्चाओं में फूल छाप की जीत के फासले का जिक्र,पंजा पार्टी में पार्टी फण्ड के गायब हो जाने की फिक्र
-तुषार कोठारी
रतलाम। आखिरकार सियासी अखाडे की तस्वीर पूरी तरह साफ हो गई है। पंजा पार्टी और फूल छाप दोनो की लिस्टें सामने आने के बाद “एक चार” का हिसाब पलटकर “चार एक” का हो गया है। रतलाम शहर की तस्वीर साफ होने के बाद पंजा पार्टी के लोगों को चुनाव के लिए आने वाले पार्टी फण्ड की चिन्ता सताने लगी है। पिछले दो चुनावों से पंजा पार्टी का पार्टी फण्ड उडा लिए जाने की बातें होती रही है। इस बार इस बात का खतरा बहुत ज्यादा बताया जा रहा है।
चुनावी चर्चाओंं में सबसे ज्यादा रतलाम ही छाया हुआ है। हांलाकि इस तरह की चुनावी चर्चाएं इससे पहले कभी नहीं सुनी गई। आमतौर पर चुनावी चर्चाओं में “हार जीत” जैसी बातें होती है,लेकिन इस बार जो बातें हो रही है,वो बिलकुल अलग है। सबसे पहले तो पंजा पार्टी से जुडे नेताओं और सियासत की समझ रखने वाले लोगों में पंजा पार्टी के चुनाव के लिए आने वाले पार्टी फण्ड की चिन्ता सता रही है। सियासत की समझ रखने वाले जानते है कि आमतौर पर पार्टियां अपने उम्मीदवारों को चुनाव लडने के लिए भारी फण्ड मुहैया कराती है। पंजा पार्टी की अंदरुनी जानकारियां रखने वालों का कहना है कि पिछले दो विधानसभा चुनावों में पंजा पार्टी ने अपने प्रत्याशियों के लिए 40-40 पेटी का पार्टी फण्ड भेजा था।
पंजा पार्टी के प्रत्याशियों ने जब देखा कि नतीजा उनके हिसाब का नहीं आने वाला,तो उन्होने फौरन अपने पार्टी फण्ड को सुरक्षित कर लेना ही ठीक समझा। पिछले चुनाव में तो पार्टी फण्ड आते ही उसका आधे से ज्यादा हिस्सा प्रत्याशी ने भविष्य के लिए सुरक्षित कर लिया था। वैसे भी समझदारी इसी को कहते है कि जब नतीजा अपने हिसाब का ना आने वाला हो तो फिजूलखर्ची नहीं करना चाहिए।
पिछले दो चुनावों के मुकाबले इस बार का चुनाव तो पंजा पार्टी के लिए और भी ज्यादा मुश्किल शुरु से दिखाई दे रहा था। आम लोग समझ नहीं पाते कि कोई भी व्यक्ति हारने वाली बाजी में दांव क्यों लगाता है? तो इसका आसान जवाब है पार्टी फण्ड के लिए। पंजा पार्टी से जुडे लोगों का कहना है कि झुमरू दादा काठ की हाण्डी है,जो दो बार चूल्हे पर चढ चुकी है। अब ये काठ की हांड़ी बार बार चूल्हे पर नहीं चढ सकती। ये बात खुद उन्हे भी अच्छे से पता है। लेकिन इस बार पार्टी फण्ड 40 से बढकर 50 पेटी या और भी ज्यादा मिल सकता है। फिर लोकल जमावट के भरोसे भी अच्छा खासा चंदा इकट्ठा हो जाता है। ये भी नब्बे सौ पेटी तो हो ही जाएगा। सब जानते है कि नतीजा क्या आने वाला है? ऐसे में गणितज्ञ दादा जैसा समझदार व्यक्ति फिजूलखर्ची क्यो करेगा? ऐसे में पार्टी फण्ड और चंदा मिलाकर अच्छी खासी रकम का इंतजाम हो जाएगा। दिखाने के लिए दस बीस पेटी खर्च भी कर दी तो बडा हिस्सा भविष्य में काम आएगा।
चुनावी चर्चाओं में पहला मुद्दा तो ये है। दूसरा मुद्दा फूल छाप वाले भैयाजी की जीत के फासले का चल रहा है। कोई छप्पन हजार का हिसाब लगा रहा है,तो किसी को लग रहा है कि पचास हजार का ही फासला रहेगा। कुछ लोग दादा की जमानत राशि जब्त होने की भी चर्चाएँ कर रहे है। बहरहाल चर्चा जो भी कर रहा है,इसी तरह की कर रहा है। कुल मिलाकर पंजा पार्टी से जुडे नेताओं को पार्टी फण्ड की चिन्ता सता रही है। लेकिन इसे बचाने का कोई तोड उन्हे मिल नहीं पा रहा है।
तश्तरी में परोसी सीट
पंजा पार्टी की दूसरी लिस्ट आने के बाद जिले का हिसाब एकदम से उलट सा गया है। चुनाव की घोषणा से पहले तक जिले में फूल छाप व पंजा पार्टी का अनुपात 1:4 का माना जा रहा था। लिस्टे आने के बाद अब यह उलट कर 4:1 हो गया है। पंजा पार्टी ने जावरा में पुराने जनपदी नेता को मैदान में उतारा है। ये वकील सा. दशकों पहले सियासत में सक्रिय थे,लेकिन लम्बे वक्त से दीन दुनिया से कटे हुए है। जबकि पंजा पार्टी के दो तीन नेता पिछले तीन तीन साल से जबर्दस्त मेहनत में लगे हुए थे। गांव गांव घूम रहे थे,लोगों की मदद कर रहे थे। इन नेताओं में से हर कोई अपने टिकट को फाईनल बता रहा था। लेकिन पंजा पार्टी ने मेहनत करने वाले दोनो तीनो को हाशिये पर डाल कर पुराने वकील सा.को टिकट थमा दिया।
जब लिस्ट आई तो पंजा पार्टी वाले ही कहने लगे कि ये सीट तो पंजा पार्टी ने फूल छाप को तश्तरी में रखकर भेट कर दी है। मेहनत करने वाले जबर्दस्त तरीके से नाराज है और अपनी मेहनत को बेकार नहीं जाने देना चाहते। मेहनत करने वालों के निष्क्रिय होने से पंजा पार्टी की हालत और खराब होना तय है।
असंतोष की आग.
वैसे तो दोनो ही पार्टियों में जिसे टिकट नहीं मिलता वह असंतुष्ट हो जाता है और नाराज भी हो जाता है। लेकिन इस बार पंजा पार्टी में उपजे असंतोष की आग पंजा पार्टी के भविष्य को जलाने में सक्षम नजर आ रही है। ग्रामीण सीट पर पंजा पार्टी वालों ने जनपद के पुराने अफसर को टिकट दे दिया,तो इस सीट के दूसरे दावेदार पुराने जनपद अफसर के भ्रष्टाचार के कारनामे खोल कर बैठ गए है। पंजा पार्टी के तमाम दावेदार एकजुट होकर पंजा पार्टी को निपटाने के तरीके खोजने लगे है। उधर पंजा पार्टी के पुराने दावेदार रहे एक डाक्टर सा. पंजा पार्टी से निराश होकर जय जोहार बोलने लगे है। डाक्साब ने भी चुनाव लडने का एलान कर दिया है।
कुल मिलाकर पंजा पार्टी के लिए मामला ज्यादा उलझता हुआ दिख रहा है। दूसरी तरफ फूल छाप वाले इसलिए खुश है कि माडसाब से माननीय बने नेताजी को फूल छाप ने दोबारा मौका देने की गलती नहीं की। “माडसाब” ने पांच साल में फूल छाप की छबि को बेहद खराब किया था,लेकिन जब टिकट बदल गया तो फूल छाप वाले खुश है और जीत के दावे करने लगे है।
कमोबेश यही हाल आलोट का है। फूल छाप ने उज्जैन के पुराने प्रोफेसर सा. को टिकट देकर अपने तमाम लोगों को खुश कर दिया है। आलोट वालो को डर था कि “महामहिम” अपने पुत्र को किसी ना किसी तरह टिकट दिलवा ही देंगे. अगर ऐसा होता तो यहां फूल छाप वालों को काफी दिक्कतों का सामना करना पडता। लेकिन प्रोफेसर साहब के आने से जीत की उम्मीदें बढ गई है।
दूसरी तरफ पंजा पार्टी ने अपने माननीय को दोबारा से मैदान में उतार दिया है। आलोट वाले माननीय अपनी कारगुजारियों से खासे चर्चित हो चुके है। उनकी टीम भी उनका साथ छोड चुकी है। ऐसे में “माननीय” के लिए मामला बेहद कठिन है। “माननीय” की कठिनाई बागी बनकर आ रहे एक पुराने नेता की वजह से भी बढ रही है। ऐसे में जिले में फूल छाप की बल्ले बल्ले होती हुई दिखाई दे रही है।