November 23, 2024

Raag Ratlami Corporation – पाताल में पंहुच चुकी है शहर सरकार की साख,पैसा फंसाने को कोई नहीं तैयार,साहब मार रहे है आखरी ओव्हर के चौक्के छक्के

तुषार कोठारी

रतलाम। शहर का सारा इंतजाम देखने की जिम्मेदारी शहर की सरकार के कन्धों पर है। इंतजाम को ठीक रखने के लिए धन की जरुरत होती है,लेकिन शहर सरकार कडकी है। शहर सरकार की कडकी को दूर करने के लिए शहर सरकार के जिम्मेदारों ने जो फार्मूला ढूंढा था,उस फार्मूले से शहर सरकार की कडकी जरुर दूर हो जाती,लेकिन शहर सरकार की साख इतनी गिर चुकी है कि अच्छा खासा फार्मूला फेल हो गया।

शहर सरकार के बडे साहब को ध्यान आया कि शहर सरकार का सौ से ज्यादा दुकानों वाला एक मार्केट,कुछ सौ फ्लैट,इसके अलावा कुछ और प्रापर्टियां ऐसी है,जिन्हे अगर बेच दिया जाए,तो शहर सरकार की कडकी दूर हो जाएगा। जैसे ही फार्मूला दिमाग में आया,वैसे ही वे इसे पूरा करने में जुट गए। बडे साहब ने अपने तमाम मातहतों को इस काम में लगा दिया कि वे शहर सरकार के अपने रुटीन के कामो को छोड कर प्रापर्टी ब्रोकर के रोल में आ जाए और ज्यादा से ज्यादा लोगों को शहर सरकार की प्रापर्टियां खरीदने के लिए तैयार करें।

अखबारों में विज्ञापन दिए गए। शहर की तमाम बडी सडकों और खास चौराहों पर होर्डिंग्स तान दिए गए। शहर सरकार ने बेहद सस्ते और कथित तौर पर बेहद शानदार फ्लैट्स और प्राइम लोकेशन पर बने मार्केट की दुकानों को बेचने के लिए आनलाइन टेण्डर बुलाने की योजना बनाई। आनलाइन टेण्डर भरने के लिए आखरी तारीख भी घोषित कर दी गई। शहर सरकार के जिम्मेदारों को लग रहा था,कि इन प्रापर्टियों को खरीदने के लिए भीड लग जाएगी। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। टेण्डर भरने की आखरी तारीख पास आती रही और आखिरकार गुजर गई। लेकिन किसी ने टेण्डर नहीं भरा।

कोई जमाना था,जब शहर सरकार की कोई स्कीम लांच होती थी,तो उसके टेण्डर फार्म लेने के लिए गदर मच जाता था और वर्दीवालों को लाठियां भांजना पडती थी। लेकिन अब ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। शहर सरकार के बडे साहब को लगा कि हो सकता ये समय सही नहीं रहा हो,इसलिए टेण्डर कीआखरी तारीख को आगे बढाा दिया गया। फिर भी कोई नहींआया। टेण्डर भरने की तारीख आगे बढती रही,कई बार बढी,यहां तक कि पूरा 2021 गुजर गया। लेकिन ना तो दुकानों का कोई खरीददार आया,ना किसी ने फ्लैट लेने में रुचि दिखाई और ना कोई हाल या अन्य प्रापर्टियों की पूछ परख करने आया।

शहर सरकार के कडकी दूर करने वाले इस नायाब फार्मूले को फेल हुए साल गुजर गया है। अब लोग ये पता करने में लगे है कि आखिर फार्मूला फेल क्यो हुआ। जब इस सवाल का जवाब खोजने की कोशिश की गई तो जवाब सिर्फ एक लफ्ज का सामने आया। फार्मूला फेल होने की वजह सिर्फ एक लफ्ज में बयान की जा सकती है और वो लफ्ज है साख।

जानकारों का कहना है कि शहर सरकार के हालिया बडे साहब की करामातों के चलते शहर सरकार की साख पाताल में जा चुकी है। शहर के किसी बाशिन्दे को शहर सरकार की साख पर भरोसा नहीं है। ये साख इतनी क्यो बिगडी,तो इसका जवाब है बडे साहब के कारण। जानकारों का कहना है कि शहर सरकार ने अभी कुछ ही दिनों पहले अपने एक मार्केट में बीस बीस साल से व्यवसाय करने वाले अपने किरायेदारों को दुकानें खाली करने के नोटिस थमा दिए। जिस मार्केट की सौ से ज्यादा दुकानें अभी शहर सरकार बेचने की फिराक में है,उस मार्केट की दुकाने एक बार पहले भी करीब बीस साल पहले बेची गई थी। बाद के अफसरों ने उस बिक्री को अवैध बता दिया था। अब लोगों को डर है कि अगर आज पैसा फंसा कर दुकान ले ली और दस बीस साल फिर कोई इनके जैसा अफसर आ गया जो बिना किसी कारण के खाली करने का नोटिस थमा दें तो बेचारा दुकानदार तब क्या करेगा? यही डर फ्लैट लेने वालों के मन में भी है। लोगों को डर है कि आज तो शहर सरकार वाले फ्लेट की मालकियत देने की बात कर रहे है,लेकिन भविष्य में पता नहीं कब कोई नया अफसर आकर नया नियम दिखाने लगा तो क्या होगा?

नतीजा ये है कि तारीख पर तारीख बढाने के बावजूद शहर का कोई बाशिन्दा शहर सरकार की प्रापर्टी में पैसा फंसाने को राजी नहीं है। नतीजा यही है कि शहर सरकार की कडकी अभी बनी रहने वाली है।

आखरी ओव्हर के चौके छक्के

कडकी हो चुकी शहर सरकार के कारिन्दे आजकल वर्दीवालों की तरह वाकी टाकी लेकर घूमते हुए देखे जा सकते है। शहर सरकार के बडे साहब कुछ महीनों में सेवा से निवृत्त होने वाले है। उनका सेवाकाल अब थोडा ही बचा है,इसलिए मैच के आखरी ओव्हरों की बेटिंग की तरह वे भी धडाधड चौके छक्के टिकाने के चक्कर में है। शहर सरकार के कारिन्दों के हाथों में दिखाई दे रहे वाकी टाकी सैट शायद इसी का एक नमूना है।

यूं तो शहर सरकार ने अपने तमाम कारिन्दों को चलित फोन यानी मोबाइल फोन दे ही रखे थे। ये तमाम फोन एक सीरीज के है और इन मोबाइल में होने वाली आपसी बातचीत पूरी तरह फ्री होती है। लेकिन इसके बावजूद तमाम कारिन्दों को वाकी टाकी देने का आइडिया कैसे और क्यो उपजा होगा? जब तमाम अफसरों और कारिन्दों को वाकी टाकी बांटे गए तो कहा गया कि इससे काम में कसावट और तेजी आएगी। यही तर्क तब भी मौजूद था,जब मोबाइल फोन दिए गए थे।

तो सवाल वहीं खडा है कि जब मोबाइल पहले से दिए हुए थे और शहर सरकार की माली हैसियत भी कुछ खास ठीक नही ंहै ऐसे मेंंं लाखों रुपए खर्च करके वाकी टाकी देने की जरुरत क्या थी? जवाब दिया गया कि कई कारिन्दे जब तब मोबाइल स्विच आफ रख देते थे। कई बार चार्जिंग समाप्त होने का बहाना बना देते थे और कई बार नेटवर्क की समस्या बताकर निर्देश सुनने से इंकार कर देते थे। ऐसे में अफसर अपने मातहतों को आदेश निर्देश नहीं दे पाता था और काम टलते रहते थे। लेकिन वाकी टाकी आ गई है,तो अब इस तरह के बहाने चल नहीं पाएंगे और कोई भी कारिन्दा अफसर से बहानेबाजी नहीं कर पाएगा।

कुल मिलाकर शहर सरकार ने तमाम कारिन्दों के लिए वाकी टाकी सैट खरीद लिए। कई जानकारों का कहना है कि वाकी टाकी की गुणïवत्ता कमजोर है और गुणवत्ता के मुकाबले कीमत बहुत ज्यादा चुकाई गई है। गुणïवत्ता खराब होने से कारिन्दो को फिर से सुविधा हो जाएगी। कभी वाकी टाकी सैट में आवाज साफ नहीं आएगी,तो कभी उसकी बैटरी डिस्चार्ज हो जाएगा। यानी मसला जस का तस बना रहेगा।

लेकिन मसला वाकी टाकी से काम में तेजी लाने या सही से काम करवाने का था ही नहींं। जब भी शहर सरकार कोई लाखों की खरीद करती है,तो साहबों के वारे न्यारे हो जाते है। वैसे भी मामला आखरी ओव्हरों के चौके छक्को का है। ऐसे में ऐसी कोई भी योजना,जिसमें दस बीस लाख का खर्चा करना हो,साहब लोग तुरमत तैयार हो जाते है। यही बात वाकी टाकी पर भी लागू है। शहर सरकार के कारिन्दे पहले तो वाकी टाकी को लेकर बडे उत्साहित थे। उन्हे लगा था कि वाकी टाकी साथ रखेंगे तो वर्दी वालों की तरह उनका भी रुआब दिखाई देगा। लेकिन उसका ये उत्साह वाकी टाकी हाथ में आते ही जाता रहा। कहां वर्दी वालों के वायरलैस सैट और कहां शहर सरकार की वाकी टाकी। जिनके हाथों में आई,वो बता रहे है कि बेहद घटिया क्वालिटी की है। कहा तो ये भी जा रहा है कि जब जिला इंतजामिया के बडे साहब को ये वाकी टाकी दी गई तो उन्होने इसे हाथ में लेते ही घटिया बता कर फेंक दिया। पता नहीं ये बात कितनी सच है,लेकिन इतना तो सच है कि कमजोर क्वालिटी की वाकी टाकी महंगे दामों में ले ली गई है।

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