Raag Ratlami Land Mafia : माफियाओं को चैन की सांस तक नहीं लेने दे रहे है जिला इंतजामिया के बडे साहब/ जिले ”पर भारी” मंत्री की वसूली चर्चाओं में
-तुषार कोठारी
रतलाम। शहर के जमीन माफियाओं इन दिनों खासे नाराज है। उनकी नाराजगी जिला इंतजामिया के बडे साहब से है। जिला इंतजामिया के बडे साहब उन्हे चैन की सांस तक नसीब नहीं होने दे रहे है। पहले तो उन्होने जिले भर में तोड फोड करवाई। उनका बुलडोजर पता नहीं कहां कहां चल गया। बुलडोजर अभी कुछ दिनों से रुका हुआ था। जमीन माफियाओं को लगा कि चलो अब कुछ राहत के दिन आए है। लेकिन बडे साहब को उनकी राहत बर्दाश्त नहीं हुई और उन्होने नया फरमान जारी कर दिया। अब बडे साहब ने गडे मुर्दे उखाडने जैसा हुक्म दे दिया है। यही सारे माफियाओं की नाराजगी की वजह है।
पहले तो बडे साहब ने सरकारी जमीनों के कब्जे हटाने के लिए बुलडोजर चलाया था। ताकतवर बन चुके जमीन माफियाओं को पहले तो उम्मीद नहीं थी कि बुलडोजर उनके कब्जे को भी हटाने के लिए आ जाएगा। लेकिन जब बुलडोजर आ ही गया और माफियाओं का उस पर कोई बस ना चला,तो अवैध कब्जे हट गए। माफियाओं ने मन मसोस कर इस नुकसान को झेल लिया। सरकारी जमीनों के कब्जे हटाने के बाद उन्होने बिना इजाजत बनाई जा रही कालोनियों को निशाने पर लिया। कई सारी सडकें और दूसरी तरह के तामिरी कामों को तोड फोड दिया।
इतना भी काफी नहीं था। अब बडे साहब ने एक नया और अनोखा हुक्म जारी किया है। बडे साहब ने पुराने वक्त में बनी कालोनियों की जांच शुरु करवा दी है। जो माफिया ये सोचे बैठे थे कि उन्होने तो बरसों पहले कालोनी काट कर कमा लिया है,उनका कुछ नहीं होने वाला। लेकिन बडे साहब के नए फरमान ने अब उनकी नींदे भी उडा दी है। बडे साहब ने अपने मातहतों से कहा है कि वे शहर की तमाम कालोनियों का सर्वे करके ये पता करें कि इन कालोनियों में गरीबों के लिए आरक्षित रखे गए पन्द्रह फीसदी प्लाटों का क्या हाल है? क्या ये प्लाट गरीबों को ही दिए गए थे या किसी और को। बडे साहब को किसी उडती चिडिया ने पक्की खबर दी है कि तमाम कालोनियों में कालोनाईजरों ने गरीबों के लिए काटे गए प्लाट गरीबों के अलावा बाकी सब को मुहमांगे दामों पर बेच दिए है।
जमीन माफियाओं की ये कलाकारी कई बरसों पहले की है। मगर अब बडे साहब बरसों पहले की गई कलाकारी को भी बख्शने के मुड में नहीं है। जमीन माफियाओं का रोना ही ये है कि बरसों पहले की कहानी को उजागर करना गडे मुर्दे उखाडने जैसा काम है। अब बडे साहब गडे मुर्दे उखडवाकर इसकी सजा आज के जमाने में देने की तैयारी कर रहे हैैं।
बडे साहब ने अपने मातहतों को इसके लिए एक हफ्ते का वक्त दिया था। मातहतों को कहा गया था कि वो एक हफ्ते के भीतर तमाम कालोनियों के गरीबों के प्लाटों का पता लगाए कि ये प्लाट कैसे गरीबों के पास है। जो सचमुच के गरीब है उनके पास है या फिर नकली गरीबों के पास है। साहब की टाइम लिमिट अब खत्म होने को है। अगले हफ्ते तक इस मामले में इंतजामिया की कार्रवाई शुरु हो जाएगी। तमाम जमीन माफिया इससे बच निकलने के रास्ते तलाशने में लग गए है।
वसूली के लिए आए जिले ”पर भारी” मंत्री जी
श्रीमंत के साथ पंजा पार्टी छोडकर फूल छाप में आए जिले ”पर भारी” मंत्री जी,फूल छाप पार्टी की वसूली करने के लिए रतलाम आए थे। कहने को तो फूल छाप पार्टी देश की सबसे अमीर पार्टी है,लेकिन इसके बाद भी फूल छाप वालों की वसूली की आदत नहीं छूटती। पंजा पार्टी पचास साल तक सत्ता में रही,लेकिन पंजा पार्टी गरीब ही बनी रही। पंजा पार्टी के नेता खुद को अमीर बनाने में बिजी रहते थे,पार्टी की फिक्र कौन करता? नतीजा पंजा पार्टी की गरीबी के रुप में सामने आया। दूसरी तरफ फूल छाप के नेताओं ने खुद से पहले अपनी पार्टी का ध्यान रखा,इसीलिए आज हर जिले में फूल छाप वालों की खुद की बिल्डिंग बनी हुई है। लेकिन फूल छाप वालों की वसूली की आदत सरकार में होने के बाद भी बरकरार है। इन दिनों फूल छाप पार्टी का ”आजीवन सहयोग” के लिए ”निधि” एकत्रित करने का अभियान चल रहा है। रतलाम को छोटा मोटा नहीं दो करोड का टार्गेट दिया गया है। टार्गेट पूरा करने की जिम्मेदारी जिले ”पर भारी” मंत्रियों को दी गई है।
अब पंजा पार्टी से फूल छाप में आकर जिले ”पर भारी” मंत्री बने दरबार को जिले में वसूली करना पड रही है। इससे पहले उनकी आदत कुछ अलग थी। वसूली तो होती थी,पर वो पार्टी के लिए नहीं होती थी। इस बार मामला अलग है। जानने वालों का कहना है कि ”दरबार” इसमें कन्फ्यूज हो गए। वसूली के कन्फ्यूजन को दूर करने के लिए उन्होने नया तरीका खोज निकाला। बताते है कि उन्होने अपने एक ”भईया” को एक दिन पहले ही भेज दिया,ताकि पार्टी की वसूली से पहले वाली वसूली भी ठीक से हो सके। फिर अगले दिन ”दरबार” खुद आ गए। शहर के कुछ कारोबारी और कुछ व्यापारी भी बुलाए गए। कहने को तो फूल छाप का कहना है कि सहयोग उनसे लिया जा रहा है,जो पार्टी की विचारधारा से जुडे है,लेकिन देने वालों में से कई तो इसे जबरन की वसूली ही मान रहे हैैं। देने वालों का कहना है कि देश की सबसे अमीर पार्टी को अब कौन सी जरुरत पड रही है जिसकी वजह से ”सहयोग निधि” ली जा रही है? खैर बात जिले ”पर भारी” मंत्री जी की थी। उनकी वसूली हुई तो वे जिले में दूसरी जगहों पर वसूली करने के लिए निकल गए।
कहां जाए पदाधिकारी
फूल छाप पार्टी के पदाधिकारी इन दिनों नई समस्या से जूझ रहे है। जिले के पदाधिकारियों की दिक्कत ये है कि पार्टी में उन्हे कोई तवज्जोह नहीं दी जा रही,उनसे ज्यादा पूछ परख मण्डल वालों की हो रही है। जिले के पदों पर बैठे नेताओं को जब जिले के पद मिले थे,तो वे बडे उत्साहित थे कि उन्हे पर्याप्त सम्मान मिलेगा,लेकिन अब उनकी उम्मीदेंं मण्डल वाले ही तोडे दे रहे है। फूल छाप के इन दुखियारों का दुख ये है कि किसी भी सरकारी आयोजन के मंच पर मण्डल के अध्यक्ष कब्जा जमा लेते है और जिले के पदाधिकारी मंच से नीचे अपनी जगह तलाशने को मजबूर कर दिए जाते है। जिस मण्डल में सरकारी आयोजन हो रहा हो,वहां का अध्यक्ष मंच पर हो,तब तक तो ठीक है,उसे प्रोटोकाल के तहत बर्दाश्त किया जा सकता है,जब दूसरे मण्डलों के अध्यक्ष भी मंच पर जम जाते है,तो जिले वाले पदाधिकारी खुद को अपमानित महसूस करने लगते है। अनुशासित पार्टी में जिले के पदाधिकारियों की ये उपेक्षा क्या असर लाएगी,ये देखने वाली बात होगी…?