Raag Ratlami – किस्सा रेलवे के वर्दीवालों की सफलता का,माल भी कमाया,वाहवाही भी बटोरी,एक पंथ दो काज
-तुषार कोठारी
रतलाम। रेलवे की सुरक्षा के लिए वर्दी वालों की एक फौज काम करती है। ये फौज रेलवे की सुरक्षा के लिए बनाई गई है,लेकिन इनका ज्यादातर काम ट्रेन के डिब्बों में घुसकर तरह तरह की चीजें बेचने वालों,र्ेलवे स्टेशनों पर स्टाल लगाने वालों,ट्रेनों में तस्करी करने वालों,जहर खुरानी करने वालों और इस तरह के अलग अलग लोगों से वसूली करने का होता है। आमतौर पर ये अपनी मौजूदगी का एहसास जल्दबाजी में पटरी पार करने वालों को पकड कर उन पर जुर्माना थोप कर करवाते है। आम लोग इनके बारे में ज्यादा कुछ जानते समझते नहीं और इसीलिए ये अपनी वर्दी का फायदा उठाकर कमाई में इजाफा करते रहते है।
लेकिन शुक्रवार को रेलवे की सुरक्षा में लगे वर्दीवाले अचानक से लाइम लाईट में आ गए। वर्दी वालों ने गुरुवार रात को रेलवे स्टेशन पर एक आदमी को पकडा और उसके कब्जे से सवा दो करोड रु. से ज्यादा नगदी और एक करोड से ज्यादा कीमत का सोना चांदी बरामद कर दिखाया। रेलवे के ये वर्दीवाले आमतौर पर खबरचियों से दूर ही रहते है,लेकिन इस घटना के अगले दिन यानी शुक्रवार को उन्होने कई सारे खबरचियों से बात की और जब्त की गई नगदी और सोने चांदी को सजा संवार कर खबरचियों से इसके फोटो भी खिंचवाए।
खबर बाहर आइ,तो लोगों को लगा कि शहर में चलने वाली किसी बडी गडबडी का भण्डाफोड होने वाला है,लेकिन ये गलतफहमी वर्दी वालों ने खुद ही जल्दी से दूर कर दी। उन्होने फोटो तो खुद खिंचवा लिए लेकिन कार्यवाही करने का ठेका आयकर वालों को दे दिया। आयकर वालों ने मामले को थामा,कुछ व्यापारियों को नोटिस थमाए और मामला समाप्त सा हो गया।
लेकिन ये कहानी बस इतनी सी नहीं है। जानने समझने वालों ने जब इस सीधी सादी कहानी को खंगालना शुरु किया तो पता चला कि करोडों की नगदी और करोडों के सोने चांदी की इस सीधी सादी कहानी में कई सारे पेंच है। रेलवे के वर्दीवालों ने बडी चतुराई से अपने फोटो छपवाए,लेकिन पीछे की कहानी को पूरी तरह छुपा दिया।
कहानी में कई सारे पेंच थे। वर्दी वालों ने करोडों का माल गुरुवार की रात को पकडा था। गुरुवार की पूरी रात कहानी छुपाकर रखी गई। जिस किसी का माल था,उसे इस बात की खबर तुरंत लग गई थी और सारी रात मामले को एडजस्ट करने की कोशिश चलती रही। आखिरकार एडजस्टमेंट हुआ और फिर वो कहानी सामने आई,जो बताई जा रही है।
खबरचियों को न तो पकडे हुए व्यक्ति को दिखाया गया और ना ही उसका नाम बताया गया। पूछने पर कहा गया कि उसका नाम बताया नहीं जा सकता। कानून को जानने वालों का कहना है कि केवल उन मामलों में आरोपी का चेहरा छुपाया जाता है,जिनमें गवाहों से उसकी पहचान कराई जाना होती है। लेकिन नाम तो उस मामले में भी नहीं छुपाया जा सकता। रेलवे के वर्दीवालों ने पकडे गए व्यक्ति पर बिना टिकट रेलवे स्टेशन पर घूमने जैसी बेहद मामूली धाराएं लगाकर गिरफ्तार किया था। ऐसी स्थिति मे उसकी पहचान छुपाने की क्या जरुरत थी? गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को किसी खबरची के सामने नहीं लाया गया। अठारह घण्टे तक जिस व्यक्ति को वर्दी वालों ने अपने कब्जे में रखा उससे इतना भी नहीं पूछा कि माल किसका था और किसे दिया जाना था?
जानकारों का कहना है कि वास्तव में रेलवे के वर्दी वाले इतने भी भोले नहीं है। उन्होने पकडे गए व्यक्ति से रात को ही सारी जानकारी उगलवा ली होगी और फिर जिस किसी का माल था उससे मामला सैट किया होगा। इस बात की भी पूरी संभावना है कि जिस व्यक्ति को पकडा गया हो उसे ही बदल दिया गया हो। इसके बाद जब सोने चांदी के बडे खिलाडियों से मामला सैट हो गया होगा,तो मामले को आयकर विभाग को देने की योजना बनाई गई होगी। ताकि सम्बन्धित व्यापारियों को बिल और अन्य जरुरी कागजात तैयार करने का पूरा समय मिल सके और वह अपना पूरा माल फिर से हासिल कर सके। अंदाजा तो यह भी लगाया जा रहा है कि पकडा गया माल और अधिक होगा,लेकिन जब मामला सैट हो गया,तो इतना ही जब्त किया गया,बाकी का माल बंट गया होगा। वर्दी वालों ने तो आयकर की टीम को मामला सौंपने के बाद भी गिरफ्तार किए गए व्यक्ति की पहचान नहीं बताई। कुल मिलाकर रेलवे के वर्दी वालों ने एक ही हाथ मारकर तगडा माल भी अन्दर कर लिया और अखबारों में खबरें छपवा कर वाहवाही भी हासिल कर ली। इसी को कहते है एक पंथ दो काज…।
पंजा पार्टी के जवानों का चुनाव….
पंजा पार्टी ने सूबे की सरकार क्या गंवाई है,पंजा पार्टी के तमाम नेता नदारद से हो गए है। कोई जमाना था कि पंजा पार्टी की छोटी से छोटी पोस्ट के लिए जबर्दस्त मारामारी मची रहती थी,लेकिन अब ये हाल है कि नेताओं में किसी पद के लिए कोई उत्साह ही नहीं बचा है। ताजा मामला पंजा पार्टी की यूथ ब्रिगेड के चुनाव का है। पंजा पार्टी की यूथ ब्रिगेड के प्रदेश मुखिया के चुनाव के लिए प्रोग्र्राम घोषित कर दिया गया है। प्रोग्र्राम के मुताबिक फार्म भरने की आखरी तारीख 25 नवंबर है। लेकिन देखिए कहीं कोई हलचल ही नहीं है। नियम के मुताबिक तो प्रदेश का मुखिया चुनने से पहले विधानसभा और जिले की कमेटियां बनाई जाना चाहिए,क्योंकि प्रदेश के मुखिया के चुनाव के वोटर तो वहीं से आने है। पंजा पार्टी की यूथ ब्रिगेड ने फार्म जमा करने की आखरी तारीख तो घोषित कर दी है,लेकिन ये नहीं बताया कि चुनाव कब होंगे। वैसे भी जब तक विधानसभा और जिला कमेटियां नहीं बनेगी तो प्रदेश का चुनाव कैसे होगा? लेकिन पंजा पार्टी में कुछ भी हो सकता है।
रतलाम में तो ऐसा लगता है कि कोई भी पंजा पार्टी की यूथ ब्रिगेड सम्हालने को राजी ही नहीं है। ना किसी का नाम फिलहाल चर्चा में है और ना ही कोई अपना नाम चर्चा में लाना चाहता है। रतलाम से लेकर भोपाल तक यही आलम है। भगवान जाने नगर सरकारों के चुनाव में पंजा पार्टी का क्या होगा…?
कोरोना बचाएगा खर्च…….
दीपावली से कुछ दिन पहले तक लगने लगा था कि कोरोना बस जाने ही वाला है। इसी को देखते हुए जिनकी शादियां कोरोना लाकडाउन की भेट चढ गई थी,वे सब नए सिरे से शादी ब्याह की योजना बना रहे थे. दीपावली के बाद देव के जागते ही शादी ब्याह के बडे समारोहों की योजनाएं बनने लगी थी। मैरिज गार्डन हलवाई इत्यादि की नए सिरे से बुकींग होने लगी थी। लेकिन किसी को क्या पता था कि कोरोना दुगुनी तेजी से लौटने वाला है। दीपावली गई और कोरोना आया। अब जिन्होने नए सिरे से अपने कार्यक्रम तय किए थे,हैरान परेशान है कि करें तो क्या करें। सरकार ने फिर से नई गाइड लाइन जारी कर दी है। जिन लोगों ने बडे समारोह प्लान किए थे वे सब अब केवल इसी बात से संतोष कर सकते है कि इस बहाने उनका खर्चा बच जाएगा…।