प्रदेश सरकार की अनदेखी, पेंशनर घर के बाहर लगा रहे वोट नहीं मांगने का पोस्टर
उज्जैन,30जून(इ खबर टुडे/ब्रजेश परमार)। प्रदेश में हो रहे त्रिस्तरीय पंचायत एवं नगरीय निकाय चुनाव के दुसरे दौर में प्रत्याशियों के खिलाफ पेंशनरों ने वोट नहीं मांगने का जेहाद छेड़ दिया है। प्रदेश सरकार के पेंशनरों के हितों की अनदेखी करने के विरोध में पेंशनरों ने यह निर्णय लिया है।
पेंशनरों के घर के बाहर प्रत्याशियों को “यह पेंशनर का घर है डी-ए/एरियर नहीं तो वोट नहीं, वोट मांग कर हमें शर्मिंदा न करें ” का पोस्टर दिखाई दे रहा हैं।
बकौल पेंशनर्स एसोसिएशन म. प्र. उज्जैन संभागीय अध्यक्ष अरुण शर्मा बताते हैं कि उज्जैन जिले में उनके 10 हजार के करीब मतदाता हैं।अधिकांश ने अपने घरों के बाहर पोस्टर लगा दिया है।प्रदेश में 4 लाख के करीब पेंशनर हैं।अगर सरकार ने समय पर कदम नहीं उठाया तो हमने वोट नहीं देने का भी तय किया है। उनके अनुसार पेंशनरों की मांगों को लेकर मप्र कर्मचारी कल्याण समिति के अध्यक्ष रमेशचंद्र शर्मा (राज्यमंत्री दर्जा) ने मुख्यमंत्री को पत्र भी लिखा था।
केन्द्र सरकार अपने रेगुलर कर्मचारियों और पेंशनरों को 34 फ़ीसदी मँहगाई भत्ता, मँहगाई राहत दे रही है तो वहीं शिवराज सिंह सरकार रेगुलर कर्मचारियों को तो 31 फ़ीसदी मँहगाई भत्ता दे रही है मगर मध्यप्रदेश में पेंशनरों को केवल 17 फ़ीसदी मँहगाई राहत दे रही है। जबकि देशभर की अधिकांश राज्य सरकारे अपने रेगुलर और सेवानिवृत्त कर्मचारियों को केन्द्र के समान 34 फ़ीसदी मँहगाई भत्ता और मँहगाई राहत दे रही हैं।
मध्यप्रदेश सरकार पिछले 21 सालों से राज्य पुनर्गठन अधिनियम 2000 की धारा 49 तथा 6वीं अनुसूची में दिए गए उपबन्धों की गलत व्याख्या कर पेंशनरों के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार करती चली आ रही हैं।
राज्य पुनर्गठन अधिनियम की धारा 49 मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की सरकारों को अपने – अपने पेंशनरों को पेंशन देने के लिए 6वीं अनुसूची में दिए गए प्रावधानों के तहत दायित्वाधीन बनाती है। धारा 49 और 6वीं अनुसूची की पांचों कंडिकाओं तथा पांचवीं कंडिका की दोनों उपकंडिकाओं में कहीं भी नहीं लिखा है कि केन्द्र सरकार द्वारा घोषित मंहगाई राहत (डी आर) मध्यप्रदेश सरकार अपने पेंशनरों को देने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार की स्वीकृति प्राप्त करने के बाद जारी करेगी।
धारा 49 और 6वीं अनुसूची में दिये गए प्रावधान केवल इतना कहते हैं कि मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ सरकार पेंशन भुगतान का दायित्व अपनी जनसंख्या के अनुपात में उठाएंगे। दोनों राज्य सरकारों ने पेंशन शेयर को भी तय कर लिया है। जिसके अनुसार मध्यप्रदेश सरकार 76 फीसदी और छत्तीसगढ़ सरकार 24 फीसदी के अनुपात में शेयर करेंगे। दोनों सरकारें वित्तीय वर्ष की समाप्ति पर अर्थात 31 मार्च को अपने – अपने शेयर का समायोजन करेंगी।
मध्यप्रदेश सरकार ने इस लड़ाई (छत्तीसगढ़ – मध्यप्रदेश सरकार) का फायदा उठाते हुए छठवें वेतनमान के 32 महीने तथा सातवें वेतनमान के 27 महीने का एरियर्स का भुगतान अभी तक नहीं किया है। उज्जैन पेंशनर्स संघर्ष समिति के द्वारा अवगत कराया गया कि पेंशनर्स परिवार को इस महंगाई में लगभग 4000/- रुपए से लेकर 14000/- रुपए तक का नुकसान होने से गरीब एवं मध्यम वर्ग के परिवारों को जीवन यापन करना कठिन हो गया है।
वृद्धावस्था होने के कारण दवा खर्च भी अधिक होता है। मप्र कर्मचारी कल्याण समिति के अध्यक्ष रमेशचंद्र शर्मा (राज्यमंत्री दर्जा) कहते हैं कि पेंशनर्स की यह मांग उचित है।22 वर्षों से असमन्वय के कारण दो प्रदेश के बीच पेंशनर्स का नुकसान हो रहा है।प्रदेश सरकार इस मामले में केबिनेट में 11 प्रतिशत बढाने का निर्णय ले चुकी है इसका प्रस्ताव छत्तीसगढ़ सरकार को भेजा गया था।वहां से इस पर असहमति जताई गई और वापस मध्यप्रदेश को भेज दिया गया।
पून:संशोधन के साथ भेजा गया है। देश में सिर्फ मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ के बीच ही ऐसी स्थिति बनी है,अन्य प्रांतों में ऐसा नहीं देखा गया।मैंने नियम विरूद्ध सीधे तौर पर केंद्र को भी इससे अवगत करवाया है।करीब 25 संगठन पंजीबद्ध हैं पेंशनर्स के उनमें से कुछ का निर्णय है।