November 24, 2024

PICS: रेडियो के आगे माइक टिकाकर बच्चों ने सुनी मोदी ‘सर’ के मन की बात

रायपुर 4सितम्बर(इ खबरटुडे)।। शिक्षक दिवस से एक दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्कूली बच्चों से मन की बात की। मोदी सर को सुनने के लिए बच्चे आज समय पर स्कूल पहुंचे। पीएम की क्लास के लिए प्रदेश के विभिन्न स्कूलों में व्यापक इंतजाम किए गए थे। कई बड़े स्कूलों में प्रोजेक्टर लगाए गए तो कई स्कूलों में रेडियो के आगे माइक टिकाकर बच्चों ने पीएम की बात सुनी।

पीएम की क्लास के इम्पोर्टेन्ट पॉइंट्स
कल कृष्ण और राधाकृष्ण का जन्मदिन एक साथ आ गया। इसके कारण स्टूडेंट्स से आज मिल रहा हूं। शिक्षिक की पहचान होता है स्टूडेंट्स। ऐसा कोई इंसान नहीं जो अपनी जीवन में मां और टीचर का योगदान नहीं मानता हो। एपीजे अब्दुल कलाम को हमने निकट से देखा है। उन्होंने कभी कहा था कि वह टीचर के रूप में याद रखा जाए। राष्ट्रपति का पद छोड़ने के बाद वह अगले दिन चेन्नई चले गए। स्टूडेंट्स को संबोधित करते-करते ही उन्होंने अपना देह त्याग दिया। टीचर कभी रिटायर नहीं होता। दुनिया के कई देशों में टीचर्स डे मनाया जाता है। स्टूडेंट्स और टीचर के बीच रिश्ता होता है और दोनों एक दूसरे का सम्मान करते हैं।

मुझे किसी ने बताया था कि एक आंगनबाड़ी की वर्कर का बच्चों के प्रति लगाव था। वह गरीब परिवार की थी। उसने अपनी पुरानी साड़ी के टुकड़े किए और रूमाल बनाया। बच्चों को वह देती थी और उसका यूज सिखाती थी। यह संस्कार देने की कला है। यह अन्य व्यवसाय जैसा नहीं है। एक डॉक्टर कोई बड़ा ऑपरेशन करता है तो उसकी अखबारों में स्टोरी छपती है। लेकिन एक टीचर 100 डॉक्टर्स बना देता है पर उसकी स्टोरी नहीं छपती। हमें सोचना होगा।

टीचर्स डे पहले भी मनाया जाता था। पर क्या होता था। एक-दो टीचर राधाकृष्णन के बारे में बता देता था। क्लासरूम में खुशी मनाने से आगे कुछ नहीं होता था। हम इस प्रेरक पर्व को व्यवस्था में लाना चाहते हैं। इसका महत्व कैसे बढ़ाया जाए इसकी कोशिश कर रहे हैं। बालक का जो ऑब्जर्वेशन होता है वह सही होता है।

हमारा काम है कि पीढियों को बनाना और हम यह सब मिलकर करें।
कला उत्सव के माध्यम से स्कूल के बच्चों की प्रतिभा को निखारने का अवसर मिलना चाहिए। यह केवल नाट्य उत्सव नहीं है। यह थीम बेस्ड होना चाहिए। कला उत्सव से पूरे देश में सामाजिक माहौल बनेगा। हमें रोबोट बनने से बचना है। हमारे भीतर संवेदनाएं हों। यह कला साधना से आती है। कला के साथ सहजता से आती है। बिना कला के जीवन एक प्रकार से रोबोट सा बन जाता है।

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