November 15, 2024

श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन एवं संघर्ष पर मेरा आलेख मूल लेख के साथ आपके समक्ष..!


क्या अर्थ है?करसेवक अथवा कारसेवक का

संपूर्ण भारत में सन 1990-92 के समय एक उद्घोष गूंजमान हुआ था।”सौगंध राम की खाते हैं, हम मंदिर वहीं बनाएंगे।”यह वह दौर था,जब पूरे भारतवर्ष से अपने आराध्य प्रभु श्री राम के लिए अलग-अलग स्थान से एक आंदोलन के लिए लाखों लोग पवित्र अयोध्या नगरी के उस स्थान पर पहुंचे,जहां प्रभु राम का जन्म स्थान है।हम उस समय का किस्सा आज भी किसी कार सेवक से सुनते हैं,तो कहा जाता है,कि वे लोग भाग्यशाली थे।जो श्री राम जन्मभूमि आंदोलन के प्रथम चरण 30 अक्टूबर तथा आंदोलन का दूसरा चरण 02 नवंबर 1990 में अयोध्या के उस स्थान पर पहुँचने में कामयाब हुये जहां आंदोलन का केंद्र था।इसी दौरान कोठारी बंधुओं की शहादत हुई। यह घटनाक्रम फिर 6 दिसंबर1992 को हुआ जिसमें विवादित ढांचे को कार सेवकों द्वारा ढहा दिया।जो उस स्थान के समीप पहुंच गए। वे लाखों लोगों में से किस्मत वाले थे।बहुत से लोगों को पवित्र अयोध्या नगरी की सीमा के बाहर सैकड़ों किलोमीटर दूर ही रोक दिया गया या गिरफ्तार कर लिया गया था। पूरे देशभर में इस दौरान एक भयभीत माहौल तत्कालीन परिस्थितियों के कारण देखने को मिला था।

उस समय के अनेक लोग मृत्यु को प्राप्त हो गए,जो जीवित है। अब उन्हें अपने साहस व हिम्मत के योगदान के बल पर या यूं कहें कि जिस तरह रामसेतु निर्माण में गिलहरी का योगदान था,उसी प्रकार के उन लाखों लोगों के योगदान के सहयोग से भव्य मंदिर प्रभु श्री राम का बनते दिख रहा है।जिसका सपना 22 जनवरी 2024 को पूरा होने जा रहा है। पूरा विश्व इस दिन के लिए आतुर है।500 वर्षों से भी अधिक समय तक हिंदू समाज ने श्री रामलला के जन्म स्थान के लिए संघर्ष किया व हजारों से भी अधिक लोगों ने इस पुण्य आंदोलन में अपने प्राणों की आहुतियां दी।

14 जनवरी 1761 में पानीपत के तृतीय युद्ध में मराठों की अपनी ही कुछ गलतियों के कारण अफगानी लुटेरे अहमद शाह अब्दाली के हाथों हार का सामना करना पड़ा।(मराठों का शौर्य और ख़ौफ़ इतना था,कि दुबारा फिर कभी अब्दाली इस युद्ध के बाद भारत नहीं आया)इस पराजय का असर भारतीय संस्कृति के साथ भगवान श्री राम जन्मभूमि स्थान पर बहुत गहरा पड़ा और अखंड भारत का स्वरूप ही बदलता दिखाई दिया।समय-समय पर मुगल आक्रमणों का होना और यहां के राजाओं का एक साथ ना होना भी इस भूमि और अयोध्या के राम मंदिर के साथ सम्पूर्ण भारत के मंदिर और धार्मिक स्थलों की दुर्दशा को दर्शाता है।इतिहास इन सब बातों का साक्षी है।परंतु एक बार फिर इस धरती के सनातनी हिंदू ने अपने प्रभु के लिए सन 1990-92 में जान की परवाह न करते हुए एक आंदोलन किया।जिसको इतिहास में ‘कारसेवक अयोध्या’ के रूप में जाना गया।

आखिर क्यों नाम दिया गया इस राम जन्मभूमि के आंदोलन को कार सेवा का? क्या है कार सेवा,क्यों की गई कारसेवा,यदि हम किसी बालक या अपरिपक्व व्यक्ति से यह सवाल करेंगे तो इसका जवाब शायद उसके पास ना मिले या बालक से कहेंगे तो वह “कार अथवा वाहन” के द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान तक शायद जाना बताएँ। क्योंकि मेरी उम्र भी इस आंदोलन के समय बहुत कम थी। इसलिए मैं भी इस वाक्य को समझ नहीं पाया,कि कारसेवा का वास्तविक अर्थ क्या रहा होगा। ‘क्या अर्थ है?कार सेवकों का।श्री राम जन्मभूमि आंदोलन में।’
“कर”संस्कृत का एक शब्द है।”कर”जिसे हिंदी में हाथ कहते हैं।
कर का अर्थ हाथ और सेवक का अर्थ सेवा करने वाला,इन दो शब्दों से मिलकर बना करसेवक

कर के संदर्भ में संस्कृत में एक श्लोक है।जिसे प्रातःकाल अनेक लोग कहते है।
ॐ कराग्रे वसते लक्ष्‍मी: करमध्‍ये सरस्‍वती।
करमूले च गोविंद: प्रभाते कुरुदर्शनम्।।
अर्थ,हथेली के अग्र भाग में लक्ष्मीजी,मध्य भाग में सरस्वतीजी और मूल भाग में गोविन्द निवास करते हैं।इसलिए सुबह दोनों हथेलियों (कर)के दर्शन करना चाहिए।

हाथों के द्वारा किया गया पवित्र कार्य या सेवा,संस्कृत में करसेवा कहलाती है। कर सेवा तीन तरह की मानी गई है:-
1)धन के द्वारा सेवा-पवित्र कार्य के लिए व नि:स्वार्थ भाव से दिया गया धन,धनसेवा में आता है।
2)शरीर द्वारा सेवा-यह सेवा भी वैसे ही जैसे धन सेवा की जाती है।अंतर सिर्फ शरीर का है,इसमें शरीर श्रम कार्य करता है।
3) हाथों द्वारा किया गया कार्य कारसेवक अथवा करसेवक कहलाती है।अपनी पवित्र और नि:स्वार्थ भाव से की गई प्रभु के लिए यात्रा का जनमानस ने इसे कारसेवक के रुप में इसलिए नाम दिया।धार्मिक कार्य या संस्था के लिए जो लोग नि:शुल्क एवं नि:स्वार्थ सेवा करते हैं,उन्हें करसेवक कहा जाता है।अधिकतर परोपकार से जुड़े कार्य धर्म से संबंधित ही होते हैं। इसलिए करसेवक शब्द का अर्थ धार्मिक कार्यों को नि:स्वार्थ भाव से करने वाले व्यक्ति से संबंधित माना गया है। सिख धर्म में इस करसेवा को मुख्य शिक्षाओं में रखा जाता है।जिसका अर्थ है, दूसरों की नि:स्वार्थ भाव से सेवा करना।सन 1983 में अमृतसर के स्वर्ण मंदिर को बचाने के लिए भी अनेक करसेवक अथवा कार सेवक सामने आए थे।कारसेवक का शुद्ध शब्द ही करसेवक है।

इन कारसेवकों (आंदोलन)को हम देखते हैं,तो लाखों लोगों की संख्या में सेवा के रूप में अपने आराध्य श्री राम के मंदिर के समक्ष पहुंचने का जज्बा जिनका एक ही उद्देश्य था। सेवा अथवा नि:स्वार्थ,नि:शुल्क सेवा आज कर सेवा का ही परिणाम है,कि प्रभु अपने यथास्थान पर भव्य मंदिर में विराजित होने जा रहे हैं।यह क्षण हर भारतीय और हिंदुओं के लिए गौरवपूर्ण होगा हजारों वर्षों के संघर्ष के बाद भी इस मातृभूमि की संतानों ने अपने संघर्ष की प्रवृत्ति में कोई बदलाव नहीं किया है।यह संघर्ष और साहस ही है,जो आज भी विश्व के समक्ष भारत मजबूती के साथ खड़ा है।आज हम सब प्रभु श्री राम के भव्य मंदिर के साक्षी बनने जा रहे हैं। किंतु हमें उन लोगों के बलिदान भी याद रखना चाहिए जिन्होंने श्री राम जन्मभूमि स्थान के लिए अपना सर्वोच्च न्यौछावर व त्याग कर दिया। मंदिर सदैव से हमारे आस्था का केंद्र रहा है,और जब-जब आस्था के केंद्र पर हमला हुआ है,तब-तब भारतीय और सनातन हिंदुओं ने मुंहतोड़ जवाब भी दिया है। कारसेवक अथवा कारसेवा भी इसी का एक भाग है।

लेखक-अमित राव पवार,देवास (म.प्र.)

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