son-daughter discrimination/माता बनी कुमाता :बेटी पैदा हुई इसीलिए अस्पताल में गाड़ी के नीचे फेंक गई मां, बच्ची की हालत नाजुक
मुरैना,07 नवंबर (इ खबरटुडे)।लाख प्रयास के बाद भी बेटा-बेटी में भेदभाव कम नहीं हो रहा है। ऐसी घटनाएं आए दिन सामने आती रहती हैं। दिल को झकझोर देने वाली ऐसी ही एक घटना रविवार तड़के मुरैना जिला अस्पताल में हुई।
लोगों को अस्पताल परिसर में खड़ी एक गाड़ी के नीचे नवजात बच्ची मिली। नवजात की हालत देख कर लग रहा है कि रात में ही उसका जन्म हुआ है। उसे गंभीर स्थिति में स्पेशल न्यू बार्न केयर यूनिट (एसएनसीयू) में भर्ती करवाया गया है। कोतवाली पुलिस जांच में जुटी है।
जिला अस्पताल के मुख्य भवन के प्रवेश द्वार के पास एंबुलेंस व कई गाड़ियां खड़ी रहती हैं। इन गाड़ियों के आसपास सुबह-शाम के समय लोग टायलेट जाते हैं। रविवार की सुबह इसी जगह पर एक युवक को बच्चे के रोने की आवाज सुनाई दी। देखा तो बोलेरो गाड़ी के पहिए के पास बिना नवजात बालिका पड़ी थी। सूचना मिलने पर अस्पताल चौकी व अस्पताल के स्टाफ ने तत्काल नवजात को उठाया।
डाक्टरों ने चेकअप के बाद बताया, कि नवजात का जन्म कुछ घंटे पहले यानी रात में ही हुआ है। बालिका का जन्म 9 महीने की जगह 6 से 7 महीने के बीच में हो गया है। इस कारण नवजात का वजन महज 570 ग्राम है, जो सामान्य नवजात से आधा भी नहीं है। डाक्टरों के अनुसार बच्ची की हालत बेहद नाजुक हैं, जिसे आक्सीजन सपोर्ट पर एसएनसीयू में भर्ती किया गया है।
नवजात की हालत देखकर लग रहा है, कि प्रसव के बाद उसकी नाल (प्लेसेंटा काल) को काटा तो गया है, लेकिन किसी धागे से उसे बांधा नहीं गया। डाक्टरों के अनुसार किसी अस्पताल में प्रसव होता तो बच्ची को कपड़ों में लपेटा जाता और सबसे पहले उसकी नाल को बांधा जाता।
घर पर प्रसव होने के कारण ऐसा नहीं किया गया प्रतीत होता है। अंधेरे में उसे अस्पताल में इसलिए फेंका गया होगा, जिससे उसकी जान बच जाए। उधर जिला अस्पताल के प्रसूति वार्ड का रिकार्ड बता रहा है, कि बीती रात 26 महिलाओं का प्रसव हुआ है, जिनमें से 13 महिलाओं ने बालिकाओं को जन्म दिया है, लेकिन उनमें से कोई भी बालिका 570 ग्राम की नहीं थी। पुलिस सीसीटीवी कैमरों की मदद से जांच पड़ताल जुटी है।