July 4, 2024

स्व0 श्री प्राण गुप्त जनसामान्य के कवि एवं आधुनिक कविता में निराला के समकक्ष थे-पंडित मुस्तफा आरिफ

रतलाम,17 फरवरी( इ खबर टुडे)। डॉ. शिवमंगल सिंह सुमन स्मृति शोध संस्थान में बसंत उत्सव के आयोजन में महाप्राण निराला एवं प्राण वल्लभ गुप्त की जयंती मनाई गई। निराला की रचनाओं के सस्वर पाठ के साथ प्राण वल्लभ गुप्त की रचनाओं का पाठ किया गया ।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे साहित्यकार एवं वरिष्ठ पत्रकार पंडित मुस्तफा आरिफ ने प्राण वल्लभ गुप्त के व्यक्तित्व कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि प्राण की रचनाओं में छायावाद प्रकृतिवाद रहस्यवाद सभी के एक साथ दर्शन होते हैं।
पंडित मुस्तफा ने रतलाम की स्थापना दिवस पर रतलाम का जयघोष करते हुए कहा कि प्राणवल्लभ गुप्त जन जन के कवि थे। रतलाम की तात्कालिक राजनीति पर आधारित उनकी रचना “यह मेरा रतलाम कि जिसका लंका तक है नाम” रतलाम के हर व्यक्ति के मुंह पर थी। मालवा का जनकवि प्राण वल्लभ गुप्त राष्ट की पहचान बना । उन्होंने प्राण गुप्त के “जागते रहना समय की धड़कनों में गुनगुनाना” गीत का सस्वर पाठ किया।

कार्यक्रम के प्रमुख वक्ता मोहन परमार ने प्राण वल्लभ गुप्त के व्यक्तित्व कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए रतलाम की धरा के साहित्यिक प्राण थे प्राण वल्लभ गुप्त लेख के माध्यम से उनकी रचनाओं एवं जीवन के बहुत से अनछुए पहलुओं को उद्घाटित किया

मुख्य अतिथि गीत कार हरिशंकर भटनागर ने निराला एवं धर्मवीर भारती के संस्मरण का स्मरण करते हुए तूफान तो आते रहेंगे हम जश्न मनाना क्यों छोड़े जीवन की आपाधापी में खुशियों का मोल जरूरी है । बसंत को सार्थक करता हुआ गीत पड़ा ।

इस अवसर पर अखिल स्नेही ने निराला की सरस्वती वंदना का सस्वर पाठ वीणावादिनी वर दे के साथ तुम कहते हो तो जोड़ूंगा टूटे टूटे तार प्रिये बसंत को जीवंत करता गीत पढ़ा।

श्रीमती रश्मि उपाध्याय ने जय जय हे भगवती सुर भारती सरस्वती वंदना के साथ सखि वसंत आया रचना का पाठ किया । श्री ऋषि शर्मा ने निशा के बाद निश्चित ह्रदय की वाटिका में कभी मधुमास आएगा रचना का पाठ किया। प्रसिद्ध शायर सिद्धकी रतलाम रतलाम काम करते हुए मेरा रतलाम है खुशबू का नगर कहते हुए कतरो का जिक्र छोड़ समंदर की बात कर गहराइयों के साथ बराबर की बात कर रचना पढ़ी। श्री आजाद भारती ने मां भारती की वंदना के साथ भाषा भारती पर अपनी कविता पढ़ी।

श्रीमती शिव कांता भदोरिया ने निराला की रचना “रूखी री यह डाल वसंत वासंती लेगी” के पाठ के साथ निराला की इस रचना में पार्वती की तपस्या एवं शक्ति की आराधना पर विचार रखते हुए निराला के काव्य में ध्वनियों के संयोजन की बात कही ।अक्षर जो कभी क्षरित नहीं होता शब्द ब्रह्म की साधना पर प्रकाश डाला ।

प्रनेश जैन ने निराला के कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि कालजई रचनाएं ही सदियों होती हैं जो सदियों तक गाई जाती हैं कविता को मनुष्य नही बनाता कविता मनुष्य को बनाती है । घनानंद ने कहा है कि मोहे तो मैरो कविता बनावत । निराला का सबसे बड़ा बलिदान कविता में छन्द से मुक्ति है । फिर भी उन्होंने लय एवम तरलता से कोई समझौता नहीं किया।

अपने वक्तव्य में प्रनेश जैन ने मानवीय संवेदनाओं पर प्रकाश डाला इस अवसर पर संस्थान की बाल प्रतिभाओं में प्रतिष्ठा तिवारी ने वसंत के महत्व पर अपनी बात रखी । तितिक्ष पंचोली ने वह तोड़ती पत्थर कविता का पाठ किया । डॉ शोभना तिवारी ने अपना मालवी वसन्त गीत पढ़ा । इस अवसर पर श्रीमती सीमा राठौर, कीर्ति पंचोली, डाक्टर दिनेश तिवारी, सुश्री श्रद्धा शर्मा, राजेश कोठारी आदि उपस्थित थे । संचालन डॉ शोभना तिवारी ने किया । आभार श्री अखिल स्नेही ने माना ।

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