April 28, 2024

महाराष्ट्र : जनमत की भावना शरद पवार के साथ; भाजपा,एकनाथ शिंदे, अजीत पवार हाशिए पर ।

(मुंबई से चंद्र मोहन भगत)

जब भाजपा के प्रदेश उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने अपने स्वार्थ के लिए डिस्ट्रॉय एनसीपी प्रोजेक्ट शुरू किया था। तभी से जनमानस में यह कुंठा भर आने लगी थी कि क्यों बेमतलब एनसीपी को तोड़ा जा रहा है । महाराष्ट्र के जनमानस में यह विचार इसलिए पनप रहे थे कि पहले भाजपा ने शिवसेना तोड़कर अपनी सरकार बना ली थी । इस सरकार को बनाने तक केंद्रीय भाजपा का नियंत्रण और निर्देशन था । जब सबकुछ केंद्रीय निर्देशन में हुआ था इसलिए एकनाथ शिंदे को शिवसेना के 40 विधायक एक साथ लाने के इनाम में मुख्यमंत्री पद दिया गया था।

देवेंद्र फडणवीस तो आम चुनाव में पहले से चली आ रही भाजपा सत्ता की ताकत को घटाकर खुद को प्रदेश के नेतृत्व पाने की पंक्ति से दूर धकेल चुके थे । भाजपा के विश्वस्त सूत्रों और राजनीतिक जानकारों की मानें तो भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने इसी कमी के कारण इनको मुख्यमंत्री नहीं बना कर उपमुख्यमंत्री पद पर दिखावे के लिए बैठाया था। महाराष्ट्र की राजनीति के ब्राह्मण नेता देवेंद्र फडणवीस तभी से खुद को उपेक्षित अपमानित महसूस कर रहे थे। देवेंद्र कि इसी उपेक्षा को सार्वजनिक किया जुलाई के उस विज्ञापन ने जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मात्र एकनाथ शिंदे के फोटो छपे थे। जिसका व्यापक प्रसारण समाचार पत्रों में भी किया गया था।

महाराष्ट्र में भाजपा व अन्य राजनीतिक दलों के नेताओं ने भी इस विज्ञापन की आड़ में फडणवीस का उपहास किया था। खुद इनके समर्थकों में भी नाराजगी फेली थी । किसी राजनीतिक दल के प्रदेश सरकार के प्रमुख रहने के बाद जानबूझकर इतना नजरअंदाज करना स्वाभिमानी आदमी कैसे बर्दाश्त करता। इसी कुंठा से बाहर निकलने के लिए फडणवीस ने जल्दबाजी में डिस्ट्रॉय एनसीपी को अंजाम दे दिया ! इससे भाजपा से ज्यादा जन भावना का लाभ एनसीपी प्रमुख शरद पवार को मिल रहा है ।

इसके प्रमाण हाल ही के सी सर्वे हैं जिसमे तीन तरह के प्रश्नों पर जन भावना को परखा गया है । जिसमें पहला प्रश्न था कि एनसीपी प्रमुख पड़ पर शरद पवार रहना चाहिए या अजीत पवार, जवाब में 66 प्रतिशत का जवाब था शरद पवार 25 प्रतिशत अजीत पवार के पक्ष में थे और 9 प्रतिशत का जवाब था पता नहीं । दूसरा प्रश्न एनसीपी तोड़ने की राजनीतिक घटना शरद पवार के इशारे पर हुई ! इसके जवाब में से 37 प्रतिशत ने हां, 49 प्रतिशत ने ना, तथा 14 प्रतिशत ने पता नहीं जवाब दिया है । तीसरा महत्वपूर्ण प्रश्न था कि शरद पवार फिर से पार्टी को सम्मानजनक स्थिति में खड़ा कर लेंगे, इसके जवाब में 57 प्रतिशत का जवाब था हां, 37 प्रतिशत का ना, 6 प्रतिशत का पता नहीं।

जनमत की भावना के ये आकड़े स्पष्ट कर रहे हैं कि भाजपा का राजनीतिक दलों को दुर्भावना और शासकीय एजेंसी के माध्यम से तोड़ना अपने ही जनमत को नाराज कर रहा है। इसके विपरीत जीसका नुकसान कर भाजपाई करना चाहते हैं जन भावना उन दलों के साथ होती जा रही है। इस पूरे घटनाक्रम में कांग्रेस के अपने साथी राजनीतिक दलों के साथ तटस्थ रहकर अपने जनमत में निश्चित इजाफा किया होगा ! इसे कोई सर्वे प्रमाणित नहीं कर रहा है पर महाराष्ट्र की राजनीति में साफ दिख रहा है कि भाजपा ने अपनी अनीति से बलात दूसरे दल के विधायकों को अपने पक्ष में दबोचा है । मजबूरी में यह भी दबे हुए हैं पर समय आने पर बता देंगे कि भाजपा का सोने का जाल कैसे काटा जाता है ।

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