Film Review : कुंवारापुर – सामाजिक सन्देश देती विशुद्ध पारिवारिक मनोरंजन वाली एक फिल्म ; बघेली बोली में बनी इस फिल्म से मालवी और निमाड़ी बोलियों की फिल्मो की राह भी होगी आसान
रतलाम,13 अगस्त (इ खबरटुडे)। देश की तमिल तेलुगु,मराठी और बांग्ला जैसी क्षेत्रीय भाषाओं के फिल्मोद्योग ने बहुत तेजी से तरक्की की है,लेकिन बालीवुड की हिन्दी फिल्मों के चलते हिन्दी की क्षेत्रीय भाषाओं की फिल्में बनाने का चलन अब तक तेजी नहीं पकड पाया है। इसमें भोजपुरी एक अपवाद है,जिसके फिल्मोद्योग ने भी अच्छी तरक्की की है। ऐसे में बघेलखण्ड की बघेली बोली की खुशबू वाली फिल्म कुंवारापुर हिन्दी की क्षेत्रीय भाषाओं के लिए उम्मीद की एक नई किरण लेकर आई है।
सैलाना जैसे आदिवासी अंचल से निकलकर मुबई की फिल्म इण्डस्ट्री में बतौर निर्देशक स्थान बनाने वाले राजेन्द्र राठौर ने बघेली भाषा की विशुद्ध पारिवारिक मनोरंजन की फिल्म कुंवारापुर बनाकर क्षेत्रीय भाषाओं में फिल्म बनाने वालों के लिए नई मिसाल पेश की है। राजेन्द्र राठौर ने बघेलखण्ड के स्थानीय कलाकारों को लेकर बघेली भाषा में एक स्तरीय मनोरंजक फिल्म का निर्माण किया है। तकनीकी तौर पर फिल्म बालीवुड की फिल्मों से मुकाबला करती नजर आती है। फिल्म की सिनेमेटोग्राफ़ी ,कोरियोग्राफ़ी,संगीत इत्यादि बालीवुड को टक्कर देने वाला है।
निर्देशक राजेन्द्र राठौर ने स्थानीय कलाकारों से अच्छा अभिनय करवाया है,हांलाकि कुछ कलाकार कमजोर भी है। उन्होंने बघेलखण्ड की कई अच्छी लोकेशन्स को बेहतरीन तरीके से फिल्माया है। फिल्म का कथानक एक ऐसे गांव कुँवारापुर का है,जहां किसी भी युवक की शादी नहीं होती,सभी युवक कुंवारे है । शादी ना होने के लिए शापित इस गांव में जैसे तैसे नायक की शादी तय होती है,तो साथ ही इस शादी को तुडवाने के षडयंत्र भी शुरु हो जाते है। विवाह की पृष्ठभूमि में बनाई गई इस पारिवारिक फिल्म में कई दृश्य दर्शकों को गुदगुदाते है,तो कुछेक स्थानों पर संपादन की कमियां खलती भी है। फिल्म की पटकथा को और अधिक चुस्त किया जा सकता था। फिल्म के क्लाईमैक्स को और अधिक रोचक बनाया जा सकता था।
हांलाकि निर्देशक राजेन्द्र राठौर ने फिल्म के अंत में जाकर दहेज विरोधी सन्देश को जिस तरह से हाईलाइट किया है,वह काबिले तारीफ है। फिल्म में कई कठिनाईयों के बाद नायक की शादी हो जाती है,तब दर्शकों को लगता है कि फिल्म समाप्त हो गई ,लेकिन इसके बाद ही निर्देशक ने अपना वो कमाल दिखाया है,जिसमेंं आखरी दृश्य पूरी फिल्म के दहेज की कुप्रथा को समाप्त करने के सन्देश को जोरदार ढंग से सामने लाता है। फिल्म के आखरी दृश्य में निर्देशक खुद भी एक पत्रकार के रुप में दर्शको के सामने आ जाता है। फिल्म के अंत में निर्देशक राजेन्द्र राठौर ने कुंवारापुर की फिल्म मेकींग के दृश्य भी अंतिम टाईटल्स के साथ दिखाए है,जो एक अच्छा प्रयोग है। इस तरह के प्रयोग हालीवुड की फिल्मों में अक्सर देखने को मिलते है।
कुल मिलाकर कुंवारापुर एक विशुद्ध पारिवारिक मनोरंजन वाली देसी फिल्म है,जिसे पूरे परिवार के साथ देखा जा सकता है। बघेली बोली में बनी यह फिल्म मालवी और निमडी जैसी बोलियों में भी फिल्म निर्माण का मार्ग प्रशस्त करेगी। फिलहाल यह फिल्म गायत्री मल्टीप्लेक्स में प्रदर्शित हो रही है।