अठारह वर्ष पहले अनिल झालानी द्वारा दिए गए सुझाव को मान लेते,तो कांग्रेस को मिलता महिला आरक्षण बिल का श्रेय
रतलाम,23 सितम्बर (इ खबरटुडे)। लोकसभा में ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’पारित होकर कर संसद और राज्य की विधानसभाओं में महिलाओं को तैैंतीस प्रतिशत आरक्षण दिए जाने का रास्ता साफ हो गया है। सृजन भारत (पूर्व भारत गौरव अभियान) के अनिल झालानी द्वारा करीब अठारह वर्ष पूर्व 2005 में दिए गए सुझाव को यदि तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने मान लिया होता तो महिलाओं के आरक्षण का सेहरा कांग्रेस के ही सिर बन्धा होता।
उल्लेखनीय है आजादी के बाद से लगातार संसद और विधानसभाओं में महिलाओं को तैैंतीस प्रतिशत आरक्षण दिए जाने का मुद्दा उठता रहा है। कांग्रेस की सरकार ने वर्ष 2011 में यह बिल राज्यसभा में पेश भी कर दिया था,लेकिन इसे लोकसभा से पास नहीं करवाया जा सका था। वर्तमान समय में केन्द्र सरकार द्वारा संसद से यह बिल पास करवाया जा चुका है। नारी शक्ति वन्दन अधिनियम के नाम से लाए गए इस बिल का श्रेय वरण करने के लिए अब कांग्रेस समेत अनेक दल दावा कर रहे है।
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सृजन भारत के अनिल झालानी ने अठारह वर्ष पूर्व तत्कालीन केन्द्र सरकार के नेताओं को पत्र लिखकर महिला आरक्षण के लिए मौलिक सुझाव दिए थे। यदि उन सुझावों को उस समय मान लिया गया होता तो आज मोदी सरकार को महिला आरक्षण बिल पेश करने का अवसर ही नहीं मिलता और इस का पूरा श्रेय अपने आप कांग्रेस के खाते में चला जाता। श्री झालानी ने 25 जुलाई 2005 को तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह,यूपीए चेयर पर्सन श्रीमती सोनिया गांधी,भाजपा अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी, समाजवादी पार्टी अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव, बहुजन समाज पार्टी अध्यक्ष सुश्री मायावती, माक्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के प्रकाश करात, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के माहसचिव ए.बी. वर्धन समेत विभिन्न राजनैतिक दलों मे इस फामुर्ले पर सहमति बनाने के लिये पत्र लिखकर व्यवहारिक सुझाव दिया था। आज जब आरक्षण बिल पारित हुआ है तब अनिल झालानी इस विषय पर अपने द्वारा इतने समय पूर्व चितंन को अपने स्वान्तः सुखाय अभियान के अन्तर्गत साझा कर रहे है।
श्री झालानी ने अपने पत्र में राजनैतिक दलों को कहा था कि बिना गुणदोषों का परीक्षण किए यदि महिलाओं को तैैंतीस प्रतिशत आरक्षण दे दिया गया,तो आरक्षण सीमा की पूर्ति के लिए योग्य महिलाओं की बजाय ऐसी महिलाएं थोपी जाने लगेगी,जो कठपुतली बनकर रह जाएगी। अधिकांश ऐसी महिलाओं को मौका दिया जाएगा,जो राजनीतिक रुप से अनुभवहीन होगी और जिन्हे राजनीति की कोई समझ नहीं होगी। इसका परिणाम यह होगा कि अनुमानतः 25 प्रतिशत राजनीति,राजनीतिक रुप से अपरिपक्व महिलाओं के हाथ में चली जाएगी और शनैः शनैः उनकी प्रशासनिक पकड ढीली पडती जाएगी। श्री झालानी के मुताबिक ऐसी व्यवस्था की जाना आवश्यक है कि महिलाएं स्वाभाविक रुप से राजनीति में भाग लेना प्रारंभ करें। राजनीति का अनुभव प्राप्त करें और फिर संसद और विधानसभा जैसे महत्वपूर्ण सदनों में प्रवेश करें।
श्री झालानी ने दोबारा 17 अगस्त 2005 को तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह,यूपीए चैयर पर्सन श्रीमती सोनिया गांधी,केबिनेट मंत्री गुलाम नबी आजाद और भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी को पत्र लिखकर राजनीतिक क्षेत्र में महिलाओँ की भागीदारी के अधिकृत आंकडों के साथ कुछ नए और मौलिक सुझाव दिए थे।
श्री झालानी ने अपने पत्र में बताया था कि 10 वीं लोकसभा से तेरहवीं लोकसभा तक संसद में विजयी महिलाओं का औसत प्रतिशत मात्र 6.3 रहा है। इसे बढाकर सीधे तैैंतीस प्रतिशत कर देना वृद्धि के प्राकृतिक सिद्धान्तों के विपरित रहेगा। इसके विकल्प के तौर पर महिलाओं को आरक्षण देने के मुद्दे पर जितना समय चर्चा करने में लगाया गया,उसी समय में यदि महिलाओं को तेरह प्रतिशत आरक्षण दे दिया जाता और फिर प्रत्येक अगली लोकसभा में आरक्षण का प्रतिशत पांच पांच प्रतिशत बढाया जाता तो चार लोकसभा चुनावों के बाद यह तैैंतीस प्रतिशत पर पहुंच जाता।
झालानी ने एक सुझाव यह भी दिया था कि कुछ वर्षों तक के लिये यह फार्मुला लागू हो कि रेन्डमली किसी भी महिला द्वारा किसी भी सीट पर प्राप्त मत यदि पुरूष उम्मीदवार से 10ः कम हो तो उसे ग्रेस मानकर पुरूष उम्मीदवार के स्थान पर 33ः आरक्षण की पूर्ति करने हेतु 10ः कम मत प्राप्त करने वाली महिला उम्मीदवार को विजयी माना जावे। यह इसलिये कि जो महिलांए स्वयं अपने बलबूते पर मतदाताओं मे स्थान बना रही है, तो उन्हे आगे लाकर प्रतिनिधित्व करने का अवसर व प्रोत्साहन दिया जावे। न कि सीटों के आरक्षण कर महिलाओ के मध्य “बेस्ट अमन्गस्ट बस्र्ट” कहावत के तहत नियम लागू हो।
यदि इस सुझाव पर तभी अमल कर लिया जाता,तो ना तो किसी दल को आपत्ति होती और ना किसी दल को खतरा महसूस होता। इस सुझाव का पालन किया जाता तो दूसरा फायदा यह होता कि राजनीति में प्रवेश करने वाली महिलाएं स्वाभाविक रुप से राजनैतिक परिपक्वता प्राप्त करती जो कि लोकतंत्र की मजबूती के लिए लाभ प्रद होता। यदि उस समय श्री झालानी के सुझाव पर अमल कर लिया गया होता, तो इन अठारह वर्षो में राजनैतिक दलों के साथ मतदाताओं में भी धीरे धीरे राजनीति में महिलाओं को स्थान देने का वातावरण बन गया होता। इसके विपरित जब आज भी राजनीति में पर्यात अनुपात में महिला नेतृत्व या प्रतिनिधित्व नही है। तो सीधे तैैंतीस प्रतिशत आरक्षण थोपा जाने से राजनैतिक दलों को समस्या होनी ही है।