जारी है जुमलो के जरिये जनता को जीतने का जतन
-तुषार कोठारी
देश की सरकार बनाने के आम चुनाव के दो चरण पूरे हो चुके है। पिछले कई दशकों में शायद यह पहली बार ही हो रहा है कि देश भर में बहस हारने जीतने को लेकर नहीं बल्कि सिर्फ इस बात को लेकर हो रही है कि मोदी जी चार सौ पार करेंगे या नहीं। यानी कि चुनाव में हार जीत कोई मुद्दा ही नहीं है। जीत हर कोई मान चुका है अब मुद्दा सिर्फ संख्या का है। दूसरी ओर विपक्ष जो पिछले दस सालों से लगातार मोदी को जुमले के नाम पर घसीटने की कोशिश में लगा हुआ है स्वयं जुमलों के सहारे जनता को जीतने के जतन में लगा हुआ है। विपक्ष और खासतौर पर कांग्रेस को शायद इस बात पर पूरा भरोसा हो गया है कि चुनाव जुमलों से ही जीते जाते है। शायद यही वजह है कि पिछले दो आम चुनाव और इस बार के चुनाव में कांग्रेस के नेता राहूल गांधी जुमलों पर ही पूरी ताकत झोंकते जा रहे है।
पहले बात करते है विपक्षी जुमलों की। खासतौर पर राहूल गांधी को ऐसा लगता है कि अगर कोई ठीक ठाक जुमला मिल गया तो उनके प्रधानमंत्री बनने में कोई देर नहीं लगेगी। इस जुमले को आप डायलाग भी कह सकते है। आपको ऐसी कई फिल्मे याद होगी जिनके डायलाग आपको आज भी याद होंगे। कई मामलों में तो फिल्मों के ये फेसम डायलाग पूरी फिल्म पर भारी पडते नजर आते है। शायद इसी बात से प्रेरणा लेकर कांग्रेस ने चुनाव जीतने की योजना बनाई थी। शुरुआत हुई थी मौत के सौदागर वाले डायलाग से।
गुजरात के विधानसभा चुनाव में यूपीए की तत्कालीन चेयरपर्सन श्रीमती सोनिया गांधी ने अपनी एक सभा में नरेन्द्र मोदी को मौत का सौदागर कहा था। कांग्रेस के रणनीतिकारों के तब लगा था कि ये डायलाग या ये जुमला ऐसा चलेगा कि पूरा चुनाव कब्जे में आ जाएगा। लेकिन हुआ इसका ठीक उलटा। जैसे ही सोनिया जी ने मौत का सौदागर वाला डायलाग या जुमला उछाला,मोदी जी ने उसे पकड लिया। अनेक चुनाव विश्लेषकों का मत है कि गुजरात का वह विधानसभा चुनाव मोदी जी सिर्फ इसीलिए जीत पाए थे कि सोनिया जी ने उन्हे मौत का सौदागर कहा था और मोदी जी ने उसी जुमले को अपना हथियार बनाकर पूरा चुनाव अपने नाम कर लिया था।
वर्ष 2014 के आम चुनाव में कांग्रेस और राहूल गांधी ने फिर से वही कोशिश की। उन्हे लगा था कि अगर जुमला या डायलाग चल गया तो चुनाव उनके पक्ष में हो जाएगा। राहूल जी ने जुमला उछाला एक चायवाला क्या देश चलाएगा। इसके बाद से कांग्रेस ने जुमलों की या डायलाग्स की बाढ ला दी। ‘चायवाला’,’नीच’,”चौकीदार चौर है”,”हम दो हमारे दो”। और ना जाने क्या क्या । कांग्रेस के रणनीतिकारों को लगा कि अगर ये डायलाग चल गया तो उनकी जीत पक्की है। लेकिन वे भूल गए थे कि नरेन्द्र मोदी ने आरोपों को अपने पक्ष में मोडने की कला को इतना विकसित कर लिया है कि जैसे ही उनके खिलाफ कोई नया डायलाग उछाला जाता है,उनके प्रचार को एक नई गति मिल जाती है। जैसे ही कांग्रेस ने जुमला उछाला,”चौकीदार चोर है”,भाजपा के तमाम नेताओं ने अपने ट्विटर हैण्डल पर लिख दिया “मै भी चौकीदार”। राहूल के तमाम जुमलों का यही हश्र हुआ।
अब इस चुनाव को देखिए। पहले लालू जी ने नरेन्द्र मोदी के परिवार को लेकर टिप्पणी की तो भाजपा ही नहीं तमाम मोदी समर्थकों ने अपने ट्विटर(एक्स) हेण्डल पर स्वंय को मोदी का परिवार लिखना शुरु कर दिया। लेकिन पिछले दस सालों में कांग्रेस ,राहूल जी और उनके रणनीतिकारों को ये समझ में नहीं आ सका कि मुद्दे वे स्वयं नरेन्द्र मोदी को देते है। इस चुनाव में राहूल जी को लगा कि “देश का एक्सरे” बडा असरकारक जुमला रहेगा। इसके साथ ही जाति जनगणना,आर्थिक सर्वे,और इनके बाद में “देश का एक्स रे”। जैसे ही उन्हे लगा कि ये बहुत असरकारक रहेगा वे हर जगह ये बोलने लगे।
पिछले दस सालों में क्या हुआ? इस पर उन्होने कोई विचार नहीं किया। नतीजा सबके सामने है। मोदी जी ने कांग्रेस को न सिर्फ अर्बन नक्सल घोषित कर दिया बल्कि यह भी जता दिया कि कांग्रेस की नजर माताओं बहनों के मंगलसूत्र पर गडी है। अब कांग्रेस सफाई देती फिर रही है। शायद यही वजह है कि राहूल जी को अमेठी छोडकर रायबरेली का सहारा लेना पडा।
अब लाख टके का सवाल। जुमला शब्द भारत की राजनीति में आया क्यो? ये सवाल इसलिए बडा है कि हाल ही में मोदी जी से प्रभावित होकर खुद को भाजपाई बताने वाले कुछ लोगों को अभी भी इस बात पर आपत्ति है कि मोदी जी ने पन्द्रह लाख रु. हर व्यक्ति के खाते में डालने का वादा किया था और फिर इसे जुमला करार दे दिया। ऐसे किसी भी व्यक्ति से जब पूछा जाता है कि मोदी जी ने ऐसा कब कहा था? तो उसकी बोलती बन्द हो जाती है।
अब इस जुमले की वास्तविकता जान लिजीए। तारीख थी 7 नवंबर और साल था 2013। स्थान था कांकेर। कांकेर की जनसभा में मोदी जी ने कहा था कि कांग्रेसियो ने देश का जितना धन लूटा है और विदेशी बैैंकों में जमा किया है.अगर वो सारा धन वापस आ जाए,तो वह इतना होगा कि हर गरीब के खाते में पन्द्रह लाख रु. आ जाए। मोदी ने इसी सभा में आगे कहा था कि हम देश से लूटा हुआ धन वापस लाएंगे और उसे देश के विकास में लगाएंगे। मोदी जी ने कभी भी ऐसा नहीं कहा था कि हर गरीब के खाते में पन्द्रह लाख रु. डाल दिए जाएंगे। लेकिन कांग्रेस ने इस बात को पकड कर जुमला शब्द को ऐसा चलाने की कोशिश की जैसे कि यही सच हो।
नतीजा भी सामने है कि किसी ने भी इसे सच नहीं माना। कांग्रेस नेताओं द्वारा चलाए गए इस झूठे विमर्श का जवाब जनता पिछले दस सालों से लगातार दे रही है और इस बार भी देती हुई नजर आ रही है। लेकिन कांग्रेस और राहूल जी अभी भी इसी स्वप्नलोक में जी रहे है कि उनका एकाध डायलाग या जुमला चल पडेगा और वे प्रधानमंत्री बन जाएंगे। वे अभी भी ये सच्चाई समझने को तैयार नहीं है कि मोदी के हराने के लिए ठोस प्रयासों की जरुरत है। जुमलों या डायलाग्स से मोदी को नहीं हराया जा सकता। लोगों को मोदी के काम नजर आते है।
कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने का मामला हो या ट्रिपल तलाक को समाप्त करने का। जिन बातों के लिए संघ परिवार के करोडों लोग बरसों से तपस्या कर रहे थे वो सारे मुद्दे मोदी ने पूरे कर दिए। अनुच्छेद 370 भी समाप्त हो गया,राम मन्दिर की प्राण प्रतिष्ठा भी हो गई। सिर्फ यही नहीं हुआ। भारत अब पाकिस्तान के लिए रोना नहीं रोता बल्कि पाकिस्तान ये रोना रोता है कि उसकी हालत खराब हो चुकी है। भारत के दर्जनों मोस्ट वास्टेण्ड आतंकवादी विदेशों में ही मार दिए गए है। इसके बावजूद पूरी दुनिया में कोई यह पूछने वाला नहीं है कि ऐसा कैसे हो गया। पाकिस्तान के भीतर घुसकर की गई सर्जिकल स्ट्राईक और एयर स्ट्राइक का महत्व उतना नहीं था,जितना इन स्ट्राईक्स की घोषणा करने का। जब भारत ने अधिकारिक तौर पर यह घोषणा की थी कि हमने ऐसा किया है,उसी दिन दुनिया में पाकिस्तान की औकात दो कौडी की हो गई थी।
पिछले दस सालों में देश के किसी हिस्से में आतंकवादी बम नहीं फोड पाए है। यही नहीं देश के सीमावर्ती इलाकों में इन्फ्रास्ट्रक्चर पूरी तरह तैयार किया जा रहा है। ये नहीं कहते कि अगर सडक बन गई तो चीन घुस आएगा बल्कि सडक इसलिए बनाई जाती है कि हमारी फौज तुरंत पंहुच सके। अब सीमा के गांव देश के अंतिम गांव नहीं कहलाते,उन्हे देश का प्रथम गांव कहा जाता है। दस सालों की सूचि इतनी लम्बी है कि उसे लिखने के लिए हजारों पृष्ठ भी कम पड जाएंगे। आर्थिक स्थिति हो या विदेश नीति या रक्षा नीति,गरीब कल्याण हो या स्वास्थ्य सुरक्षा। सारे मसलों पर मोदी जी की उपलिब्धयां सभी के सामने है। इसीलिए जुमलो की जुगाली करने वालों के लिए मोदी को हरा पाना कठिन ही नहीं असंभव ही है।