May 11, 2024

Raag Ratlami BJP Politics : लम्बी खींचतान के बाद बनी फूलछाप की कार्यकारिणी,कम हुआ भैयाजी का रुतबा

-तुषार कोठारी

रतलाम। लम्बे इंतजार के बाद अस्तित्व में आई फूल छाप की जिला कार्यकारिणी के बनने में लम्बी खींंचतान भी मची। फूल छाप पार्टी में ऐसा कम ही होता है कि आखरी समय तक खींचतान चलती रही हो और फाइनल लिस्ट में व्हाइटनर लगाकर नाम बदले गए हो। कार्यकारिणी के बनने के बाद अब ये हिसाब लगाया जा रहा है कि इसमें सबसे ज्यादा किसकी चली और किसने अपने ज्यादा समर्थकों को जगह दिलवाई।

ये हिसाब लगाने वालों का अपना अपना गणित है। किसी का मानना है कि आखरी वक्त तक चली जोर आजमाईश में स्टेशनरोड वाले भैय्याजी ने अपना वजन दिखाया,तो किसी का कहना है कि ये पहला मौका है जब भैयाजी को पार्टी ने जोरदार झटका देकर दिखाया है। कार्यकारिणी में कई ऐसे चेहरे है जिनको भैयाजी किसी किमत पर पसन्द नहीं करते,लेकिन उपर वालों के डण्डे के आगे उन्हे मानना पडा।

वैसे तो भैयाजी जिले के मुखिया पद पर दो बार अपनी मनमर्जी चलवा चुके है। पार्टी वालों ने जिले के मुखिया के लिए उम्र की सीमा तय कर रखी है,लेकिन भैयाजी ने अपनी जी हुजुरी करने वाले को मुखिया बनाने के लिए उम्र की सीमा का नियम भी तोड दिया था। उन्होने दो बार अपनी मनमर्जी चलाई,इसलिए लोगों को लग रहा था कि जिला कार्यकारिणी में भी उनका रुतबा बना रहेगा। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। जिले के मुखिया के बाद महामंत्री के तीन पदों में से भैयाजी के हत्थे एक ही पद चढा। एक महामंत्री को नहीं बनने देने के लिए भैयाजी अडे हुए थे। लेकिन भैयाजी के विरोध को ताक पर रखते हुए उन्हे तीसरी बार महामंत्री बना दिया गया।

इसी तरह उपाध्यक्ष जैसे महत्वपूर्ण पदों पर भी भैयाजी को सख्त नापसन्द कम से कम दो चेहरों को टिका दिया गया। वैसे तो 9 उपाध्यक्षों में से कम से कम चार भैयाजी के आशीर्वाद से बने है,इसलिए यह भी कहा जा सकता है,कि उनका रुतबा बरकरार रहा है,लेकिन कहने वाले कहते है कि जो सख्त नापसन्द हो,उन्हे रोक नहीं पाना ये साबित करता है कि भैयाजी का वजन कुछ कम हो गया है।

झटका तो जावरा के विधायक जी को भी लगा है। उनकी पसन्द के नेता का महामंत्री बनना तय माना जा रहा था। वैसे भी जिले के तीन महामंत्रियों में से एक जावरा से लिए जाने की परंपरा रही है। लेकिन इस बार ये परंपरा टूट गई। जावरा के डाक्टर सा. के चहेते नेता को माहमंत्री पद छोडकर उपाध्यक्ष पद पर संतोष करना पडा। डाक्टर सा. को श्रीमंत फैक्टर ने भी झटका दिया है। श्रीमंत के असर में एक उपाध्यक्ष और एक मंत्री का पद उनके चहेतों के कब्जे में गया। अगर श्रीमंत फैक्टर ना होता तो ये पद जावरा एमएलए सा. के ही थे। ये श्रीमंत फैक्टर का ही असर था कि लिस्ट में व्हाइटनर का उपयोग कर आखरी वक्त में नाम जोडे गए। टाइप की हुई लिस्ट में तीन नाम हाथ से लिख कर जोडे गए है,और इनमें से दो नाम श्रीमंत के खाते के है। कार्यकारिणी में जावरा के कुछ ऐसे नाम भी है जिन्हे डाक्टर सा. सख्त नापसन्द करते है। कुल मिलाकर डाक्टर सा. को उपर वालों ने झटका देने में कोई परहेज नहीं किया। उपरवालों ने थोडी थोडी जगह सांसदों को भी दी है। मन्दसौर और झाबुआ वाले सांसदों के भी इक्के दुक्के पसन्दीदा लोगों को कहीं कहीं फिट कर दिया गया है।

कुल मिलाकर लम्बे वक्त और आखरी क्षण तक चली खींचतान के बाद जिले कुल 27 लोगों के नाम खोजे गए। कहने को तो इन सत्ताईस में से करीब करीब एक तिहाई नाम यानी करीब नौ नाम भैयाजी की लिस्ट के है,लेकिन दो तिहाई दूसरों की पसन्द के है। दूसरों की पसन्द वाले नामों में से कुछ तो ऐसे भी है जिन्हे भैयाजी फूटी आंखों देखना नहीं चाहते,लेकिन वे फिर भी अपनी जोर आजमाईश करके लिस्ट में शामिल हो ही गए।

मजेदार बात ये भी है कि सारी उठापटक और खींचतान जिन पदों के लिए मची,उनका वक्त ही बहुत कम बचा है। फूल छाप की कार्यकारिणी का कार्यकाल तीन साल का होता है,और इसमें से करीब दो साल गुजरने को है। नए नेताओं को अब महज एक साल से थोडा ज्यादा वक्त मिलेगा। इनमें से कई सारे ऐसे है,जो अगला मौका आते आते उम्र की सीमा पार कर जाएंगे और अगली बार जिलाध्यक्ष के पद के लिए उनका दावेदारी खत्म हो जाएगी। बहरहाल वन मेन आर्मी की तरह चल रही फूल छाप पार्टी को चलाने के लिए अब सत्ताइस लोगों की टीम भी मौजूद है और टीम की आपसी खींचतान भी अब शुरु होती नजर आने लगी है। आने वाले दिनों में फूल छाप पार्टी में दिलचस्प किस्से देखने को मिलेंगे।

टाइगर जिन्दा है…

जिले पर भारी मंत्री जी इस बार कुछ नए अंदाज में आए। पहले दो तीन बार आए तो अंदाज कुछ अलग था। पहले आए,तो फूल छाप के पैलेस रोड वाले कार्यालय पर भी गए,लेकिन कार्यालय के सामने नहीं गए। फूल छाप वालों को लगा कि अब नया जमाना आ गया है। अब मंत्री आता है,तो सेठ के ठीक सामने पार्टी कार्यालय जाता है लेकिन सेठ से नहीं मिलता। लेकिन इस बार मामला बदला हुआ है। मंत्री का कार्यक्रम आता है,तो अधिकारिक कार्यक्रम में ही स्पष्ट कर दिया जाता है कि मंत्री जी सेठ से सौजन्य भेंट करने जाएगेंं। जानकारों का कहना है कि मंत्री जी को उपर से फटकरा लगी,तब जाकर ये बदलाव आया। इसी को कहते है टाइगर अभी जिन्दा है…।

बडी अदालत ने दिया जमीनखोर को जोर का झटका

खुद को राजाओं का इन्द्र समझने वाले कुख्यात जमीनखोर को इन्दौर की बडी अदालत ने तगडा झटका दिया है। इससे पहले तक जमीनखोर हर मामलें को इन्दौर की बडी अदालत में ले जाता था और अपनी मनमर्जी का फैसला लेकर आ जाता था। लेकिन इस बर मामला उलझ गया। जमीनखोर ने फर्जीवाडा करके हडपी राजवंश की सम्पत्ति पर निर्माण शुरु कर दिया था। जिला इंतजामिया के बडे साहब ने इसकी गडबडी को पकड कर निर्माण पर रोक लगा दी और परमिशन को रद्द करवा दिया। जमीनखोर ने जब इस पर नाराजगी जताई तो अफसरों ने कहा कि आप तो बडी अदालत के स्पेशलिस्ट हो। वहीं से आर्डर ले आओ। जमीनखोर बडी अदालत जा पंहुचा। लेकिन बडी अदालत ने उसे फिर से कारपोरेशन के अफसरों के पास ही जाने का फरमान सुना दिया। अब बेचारा जमीनखोर कारपोरेशन अफसरों के चक्कर लगा रहा है। समस्या ये आ गई है कि जो अफसर खुद परमिशन को कैन्सल कर चुके है वे अब परमिशन कैसे देंगे?

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