December 23, 2024

चुनावं महापर्व 2024- बंदर-बांट साजनीति का अंत

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भारत की राजनीति में 2024 अत्यंत महत्वपूर्ण हो गया है, जिसे 102 सीटो पर कम मतदान ने सबकी नींद उडा दी। नेता समझ ही नही पा रहे है कि जनता का मिजाज किस तरफ है, इसमे सूरत सीट पर भाजपा की जीत का तडका विपक्ष जीरो बोर्ड पर परेषान करने के लिए पर्याप्त है। गरीबो की जातीय जनगणना, और सम्पन्न लोगो का आर्थिक सर्वेक्षण करने के वादे में नेताओं का आर्थिक सर्वेक्षण छौड दिया कि यह नेताओं का अधिकार है। इन पर ईडी, आयकर की रेड प्रजातंत्र पर हमला है, जिन्हे जनता चुनती है। यह ईमानदारी का सबुत है। इसमे अल्पसंख्यक को जोड कर कांग्रेस फंस गई, और मोदी ने इसे लपक लिया कि सम्पनन हिन्दुओं का सर्वेक्षण कर सम्पत्ति मुसलमानो को दे देंगे, ,आधा भारत पाकिस्तान को देकर भी कांग्रेस को शांति नही है। हिन्दुस्तान का वासी हिन्दू इसे अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक कह कर वोट के लिए तुष्टिकरण की राजनीति है। सबका साथ सबका विकास की बात हिन्दू-मुसलमान पर आ गई, जिसे देवबंद ने गजवा-ए-हिन्द धर्म खतरे मे है, कह कर उठाया और मोदी जी को विष्वास हो गया कि विपक्ष अल्पयंख्यक के नाम पर मुस्लिमो को लामबंद करने में कामयाब हो गया है, 102 सीट पर कम मतदान ने उन्हे चिंता मे डाल दिया। क्यों कि 2014, और 2019 में अधिक मतदान उनकी जीत का आधार रहा है। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कथन कि देष के संसाध्नो पर अल्पसंख्यको का पहला अधिकार है इसकी याद ने इस विवाद मे आग मे घी का काम किया। और मोदी जी ने पहली बार हिन्दू-मुसलमान कह कर रंेखांकित किया। हकीकत मे यह 1947 की बंदर-बाटं स्वमंत्रता पर प्रहार था, जिसका एहसास मनमोहन सिंह और मोदी को पुर्ण ज्ञान है। और हिन्दू कह कर मोदी को बदनाम किया जाता है, ा जिसके कारण मोदी जी सबका साथ-सबका विकास और समान रुप से सबका भला चाहते है, जिसके लिए उन्होने जीवन समर्पित कर दिया, इसका जवाब विपक्ष के पास दूर-दूर तक नही है। एक ही मुद्दा है कि इस देष को पुनः 1947 की याद दिलाई जाए। जब हिन्दू-मुसमान के नाम पर बंदर-आंट हुई और इस देष में पैदा हुए मुस्लिमो को अल्पसंख्यक विदेषी कहा गया, जहॉ विदेषियों ने भारतीय संस्कृति को हिन्दू संस्कृति कहा,, औस इसे अंग्रेजो ने धर्म कह कर भरतीयों को बांट दिया, आज की राजनीति इस बंदर-बांट की उपज है। इसे धर्म से जोडा गया, जहा हिन्दू कौई धर्म नही, और धर्म परिवर्तन से अलग राज्य या विषेष अधिकार विष्व मे नहीं। अंग्रेजो की बंदर-बांट ने देष को हमषा के लिए मानसिक गुलाम बना दिया, और मानसिक गुलामी को कांग्रेस कहती है, हमने आजादी दिलाई, जिसकी जडों में लाखो निर्दोषो का खुन है।

लौह महिला इन्दिरा गांधी को इसका ज्ञान था। कि इस बन्दर -बाट सलनीति से देष में अरालकता फैल गई है, अपवा हित साधने के निए हढताल, श्रमिक-कर्मचारी ओदोलनो ने देष को पीछे धकेल दिया है। जनसंख्या विस्फोट, पर्यावरण असंतुलन से देष की अर्थव्यवस्था चरमरा गई है। जिसका उल्लेख इन्दिरा गांधी ने पर्यावरण पर विष्व संगोष्ठि स्टाकहोम में किया। इस पर कठोर अनुषासन द्वारा ही नियंत्रित किया जा सकता है। इसका विकल्प अंग्र्रेजो द्वारा थोपे गए संंिवधान में संषोधन, और आपातकाल में है। तद्नुसार 42 वां संविधान संषोधन, और देष में आपातकाल लगाया। यह लौह महिला का एक तरफा निर्णय था, तथा इस अनुषारन पर्व को तानाषाही कहा गया।

भारत-पाक युद्ध 1965 से सबक लेकर बंगलादेष को अलग किया, और संविधान में सेक्यूलर- धर्म-निरपेक्ष सार्वभौम गणराज्य जोडा कि भारत सदियों से धर्म-निरपेक्ष है। यह भारत के धार्मिक विाााजन पर प्रहार था। जनसंख्या पर नियंत्रण हेतु नसबंदी आपरेषन सम्पूर्ण देष के लिए अभूतपूर्व कदम था, जिसे मुसलमानो को भटकाकर विपक्ष ने मुसलमानो को कांग्रेस से अलग कर 1977 में प्रचंड जीत हासिल की, हकीकत में मुस्लिम वोट बेंक क्रागेस के रीडा की हड्डी है, जिसे भारत विााजन 1947 द्वारा अपने पक्ष में किया, और उन्हे पुनः कांग्रेस की धारा में लाने के लिए मुस्लिम आरक्षण का कार्ड खेल, मुसलमानो को आरक्षण का झुन-झुना थमा दिया, मुस्लिम समझ ही नही पाए कि संविंधान के विपरीत यह सफल नही होगा। रामजन्म भूमि का ताला खुलवाने से नाराज मुस्लिमो को श्री मनमोहन सिंह ने यह कह कर कि दंेष के यंसाधनो पर मुस्लिमो का पहला अधिकार है। लेकिन यह किसी ने नही कहा कि भारत का विभाजन धेखा था। पाकिस्तान उन्हे अल्पयंख्यक विदेषी कह कर अपना भाई बताता है, देता कुछ नही, जिसे पिपक्ष हवा देता है, ताकि मुस्लिम, जो इस देष मे पैदा हुए, भारत के वासी है, वे मुख्य धारा से कटे रहे, और उन्हे वोट देते रहे। अंग्रेजो ने मुसलमानो को विदेषी अल्पसंख्यक कह कर पृथक निर्वाचन क्षेत्र की वयवस्था की, कांगेस ने विाााजन के बाद यह वयवस्था खत्म कर अपना वोट बेंक बना लिया।
जिसके लिए लौह महिला की बंगलादेंष विजय, और लौह निर्णय आपरेषन ब्लू स्टार,, जिसे अलगाववाद 1947 बंदर-बांट ने हवा दी, और इन्दिरा गांधी का बलिदान हो गया, और कांग्रेस ने सिख नर-संहार कर कलंकित कर दिया। जिसका खामयाजा देष आज भी भूगत रहा है। आपातकाल को पष्चिम ब्रिटेन के मानसिक गुलामो ने इसे अभिव्यक्ति की आजादी के तहत देष का काला अध्याय कहा, अखबारों ने यम्पादकाय चृष्ठ खाली छौद दिये, और इसे प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला कहा। जबकि बंदर-बांट के तहत देष का विभाजन सबसे बडा काला अध्यााय था, जिसकी किसी ने आलोचना नहीं की। इसने भ्रष्टाचार और मलाई खाने के द्वार खोल दिएं। यद्यपि 1935 का अंग्रेजी संविधान जिसे 1950 में लागं किया गया, अंग्रेजो की मानसिक गंलामी का द्योतक है। जिसे उन्होने सिमित प्रजातंत्र मुर्खो का षासन, मुर्खो के लिए, मुर्खो के द्वारा, भ्रष्टाचार और बेईमानी की सौगात विरासत मे दी। जहॉ भारत में धर्म नैतिकता के साथ जीने का साधन था, वह वोट बंक के खातिर गदी नाली में चला गया. इस भस्मासूर का वध कैसे होगा, जो भ्रष्टाचार, और अनुषासनहिनता को अपना जन्म सिद्ध अधिकार मानते है। मिडीया प्रेस समाचार प्रजातंत्र का चोथा स्तम्भ है, भ्रष्टाचार की बंदर-बांट राजनीति से प्रेरित किसी ने अनुषासन पर्व की प्रषंसा नही की, क्यों कि आपातकाल में प्रेस पर पगतिबंध था।
महत्वपूर्ण यह है कि अब मोदी ने नैतिकता का अलख जगाया है, भ्रष्टाचार ने देष को नेस्त-नाबुंत कर दिया था, लौह महिला स्व.इंदिरा गांधी ने इस भ्रष्टाचार से मुक्ति के लिए आपातकाल लगाया था, और आम जनता सुखी, कर्मचारी अपनी ड्यंटी पर समय से पहुंचने लगे, ट्ेन-बस, रेल समय पर चलने लगी, रिष्वत का बाजार ठण्डा हुआ, जिससे आम जनता को राहत मिली, जिसे तानाषही कहा गया। गेहूं केसाथ धुन भी पीसता है, और चंद ईमानदारो को भी कारावास भोगना पडा, जब कि स्व. संजय गांधी ने 20 सुत्रीय कार्य योजना में कडा आनुषासन, पक्का ईरादा, वृक्षारोपण, जनसंख्या नियंत्रण हेतु नसबंदी जिसे राष्ट्ीय स्वयं सेवक संघ से ही लिया गया था, जिससे कई राष्ट्वादी नेता सहमत थे कि एक स्वतंत्र राष्ट् के लिए यह संजीवनी है, श्री मोदी ने उस समय इसका विरोध किया था, क्यों कि कई निर्दोष लोग भी मीसा में बंद थे, और आरएसएस पर प्रतिबंध था, जो हिन्दुत्व की राजनीति के कारण था। वामपंथी दलो के सहयोग से मजदूर, श्रमिक ओदोलन, कर्मचारी आंदोलन हडताल पर प्रतिबंध अभ्भूतपूर्व कदम था, जिसने अनुषासन को खत्म कर उद्योगो को नेस्तनाबंत कर दिया, और विपक्ष को बेरोजगारी का मुद्दा मिल गया।
महत्वपूण यह है कि प्रजातंत्र की बंदर-बांट राजनीति अंगडाई ले रही है, एक देष, एक चुनांव, समान नागरिक संहिता, नागरिकता संषोधन अधिनियम से विपक्ष बोखला गया है कि मोदी का अगला पडाव राष्ट्पति प्रणाली लागु करना है, जिससे बंदप-बांट राजनीति पर अंकुष लगेगा, कई दुकाने बंद हो जाएगी।
विपक्ष राम-मंदिर को हिन्दू के नाम पर, बहिष्कार, और मुस्लिम नेता, मंदिर-मस्जिद के नाम पर मुसलमानो लामबंद कर वोट बेक भुनाना चाहते है, यह कौई नहीं कहता कि बाबर को मस्जिद की क्या आवष्यकता थी, कि उसने, जहॉ लोग परिक्रमा कर रहे थे, वहॉं ही क्यों मस्जिद बनाई, मुगल-षासन, और धर्म परिवर्तन से मुसमानो की गरीबी, अषिक्षा क्यों सर्वाधिक है। उनका सिर्फ उनका आर्थिक षोषण हुआ, जो आज भी सर्वाधिक है, जो भारत में मुगल-षासन, और विभाजन की देन है। इसे मोदी ने सबका विकास, सबका साथ, गरीबो के उत्थान के साथ जोडा है।
मुगल-काल में धर्म-विद्वेष नही था, सब साथ रहते थै, औरंगजेब ने धर्म के नाम पर आतंक फैलाया, और मुगल-षासन का अंत हो गया, अंग्रजो ने विभाजन के द्वारा विद्वेष फैलाया, और मुसलमानो को भारतीय संस्कुति से अलग कर दिया, जो भारत-भूमि को नमाज-प्रार्थना में पांच बार प्रणाम करता है। जिसका कारण यह है कि काबा, और इस्लाम पर भारतीय संस्कृति की छाप है। मुसलमान को अल्पयंख्यक विदेषी कहना उनका अपमान है। इसे मुस्लिम नेताओं, और मुसलमानो को उठाना चाहिए, कि विभाजन धोखा था, जिसे अंग्रेजो ने जिन्नाह, और कांग्रेस ने अंजाम देकर जड विहीन पाकिस्तान बना दिया।

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