आरटीआई के प्रति गंभीर नहीं है सरकारी महकमे
रतलाम,२३ फरवरी(इ खबरटुडे)। देश में सूचना का अधिकार लागू है लेकिन कई सरकारी विभाग किसी न किसी तरह इस कानून की धज्जियां उडाने की कोशिशों में लगे रहते है। रतलाम जिले में पुलिस समेत कई दफ्तरों में सूचना के अधिकार को कतई गंभीरता से नहीं लिया जा रहा।
वैसे तो अधिकांश सरकारी अधिकारी और कर्मचारी सूचना के अधिकार से परेशान है,क्योकि इसकी वजह से उनकी पोल खुलने का खतरा हमेशा बना रहता है,लेकिन इसके बावजूद कानूनी बाध्यता के चलते उन्हे सूचना के अधिकार के तहत जानकारियां देना आवश्यक होता है। लेकिन वर्तमान में कई सरकारी दफ्तरों में सूचना के अधिकार के असर को कम करने की कोशिशें जारी है। सरकारी दफ्तरों में येन केन प्रकारेण आवेदनों को लम्बित किया जाता है ताकि आवेदक थक जाए। इसके बावजूद भी यदि कोई आवेदक सूचना प्राप्त करने के लिए जुटा रहता है तो उसे असंगत जानकारियां दे दी जाती है,जोकि किसी काम की नहीं होती।
पुलिस में नहीं सूचना का अधिकार
रतलाम जिले में सूचना के अधिकार कानून की हालत कमोबेश यही है। सबसे दुखद पहलू तो पुलिस विभाग का है। जिस पर कानून का पालन करवाने की जिम्मेदारी है उन्ही के यहां कानून का मखौल सा उडाया जा रहा है। पुलिस अधीक्षक कार्यालय में सूचना के अधिकार के तहत प्रस्तुत आवेदनों पर विगत कई महीनों से कार्रवाई ही नहीं हो रही है। विभागीय सूत्रों के मुताबिक पुलिस विभाग की भर्ती सूचना के अधिकार पर भारी पड गई। आवेदक चक्कर पर चक्कर लगा रहे है लेकिन सुनवाई करने वाला कोई नहीं है। पुलिस अधीक्षक कार्यालय में सूचना के अधिकार के लिए फिलहाल कोई स्थाई कर्मचारी नहीं है।जिन कर्मचारियों को जिम्मेदारियां दी जाती है वे सिर्फ नाम के लिए उपस्थित रहते है। अनेक आवेदकों का इस स्थिति पर कहना है कि पुलिस विभाग के कार्यालय में बोर्ड लगा दिया जाना चाहिए कि यहां सूचना का अधिकार लागू नहीं है।
सहकारिता विभाग-नहीं होगी अपील
सूचना का अधिकार अधिनियम लागू होने पर इसके प्रावधानों के अनुसार प्रत्येक कार्यालय में एक लोक सूचना अधिकारी और एक अपीलीय अधिकारी की नियुक्ति की जाना थी। इसी लिहाज से प्रत्येक कार्यालय के सबसे बडे अधिकारी को अपीलीय अधिकारी बनाया गया और उससे निचले स्तर के अधिकारी को लोक सूचना अधिकारी का दर्जा दिया गया। यह व्यवस्था इसलिए की गई थी ताकि आवेेदकों की अपील का निराकरण भी उसी दफ्तर में हो जाए जहां से जानकारी मांगी गई है। लेकिन सहकारिता विभाग ने कानून के प्रावधानों को ही बदल दिया। उपपंजीयक सहकारी संस्थाएं के कार्यालय में लोक सूचना अधिकारी स्वयं उपपंजीयक है इसलिए अपीलीय अधिकारी उज्जैन के संभागीय अधिकारी को बना दिया गया है। सहकारिता विभाग के कर्मचारियों अधिकारियों को आरटीआई की कोई चिंता नहीं है। वे आवेदकों को जानकारी नहीं देते। वे जानते है कि अपील करने के लिए आवेदक को उज्जैन जाना होगा जोकि कठिन काम है और अधिकांश आवेदक अपील नहीं कर पाते।
जनपद पंचायत-आरटीआई में भी उपरी कमाई
जिले की जनपद पंचायतों में भी सूचना के अधिकार की स्थिति बेहद दयनीय है। आवेदकों को आवेदन की स्थिति तक नहीं बताई जाती। आदिवासी और ग्रामीण अंचल में तो सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी पर भी बाबू लोग उपरी कमाई करने लगे है। अनपढ और भोले ग्रामीण सूचना के अधिकार के तहत जानकारी हासिल करने के लिए भी रिश्वत दे देते है।