Farmer Movement: किसान आंदोलन का अति शीघ्र समाधान होना ही देश हित में होगा
-महेश चौधरी (क्षेत्रीय संगठन मंत्री भारतीय किसान संघ )
वर्तमान में दिल्ली में जमे किसान कानून में सुधार की जिन मांगों को लेकर आंदोलन शुरू हुआ था। आज डेढ़ माह का समय बीतने के बाद अब धीरे-धीरे आंदोलन अराजक तत्वों के हाथ में जाता दिख रहा है। कानून में सुधार की मांग को लेकर जब किसानों ने दिल्ली कूच किया था, उसके कुछ समय बाद ही राजनीतिक नेताओं ने आंदोलन के बहाने अपनी जमीन तलाशना शुरू कर दी और आंदोलन की दिशा को मोड़ दिया। आखिर कोई भी कानून कुछ लाभ हानि के साथ ही आता है। कुछ कमियों को दूर करना है यह आंदोलन का उद्देश्य था, परंतु केवल कानून वापसी की जिद पकड़ कर चुनी हुई सरकार को घुटने टेकने को मजबूर करना यही एक मात्र उद्देश्य अब बचा है। इसलिए आंदोलन में दिल्ली दंगों के अपराधियों को छोड़ना, भीमा कोरेगांव के दंगे में लिप्त अपराधियों को छोड़ना अर्बन नक्सलियों को छोड़ना इस प्रकार के पोस्टर और मांगे उठने लगी। इसके साथ ही खालिस्तान के समर्थन में आवाज उठी और देश के प्रधानमंत्री को भद्दी भद्दी गालियां दी जाती रही। देश के प्रधानमंत्री की मौत की कामनाएं की जाती रही। इस प्रकार के बयानों ने संपूर्ण देश को झकझोर दिया सोचने पर मजबूर कर दिया कि यह कैसा किसान आंदोलन है। हां अगर कानून में कुछ कमियां हैं तो सुधार होना ही चाहिए। किसान देश का अन्नदाता है उसकी चिंता होना चाहिए। किसी भी परिस्थिति में देश का किसान और कृषि स्वस्थ प्रसन्न और समृद्ध रहे इसी में देश का विकास है। परंतु किसान आंदोलन के मंच पर लगने वाले नारे वह चलने वाली गतिविधियां देश के सामान्य एवं बुद्धिजीवी वर्ग को सोचने पर मजबूर करती है और उनसे मिलने वाली सहानुभूति अब किसानों से दूर जाने लगी है। कल की हरियाणा की घटना बहुत ही शर्मनाक है। ये घटनाएं इस बात को दर्शाती है कि किसान संगठन के पीछे राजनीतिक लोगों ने आंदोलन को कैप्चर कर लिया है,जो अपना एजेंडा लागू करवा रहे हैं। हमने लॉकडाउन के समय देखा जब हमारे हजारों मजदूर भाई दिल्ली मुंबई अहमदाबाद से पैदल अपने घर की ओर जा रहे थे। उस समय सेवा करने वाले अधिकांश लोग कहां थे ना तो लंगर चल रहे थे ना पैर दबाने की मशीनें थी ना भंडारे थे ना पार्लर थे। उस समय इन सेवाओं की बहुत अधिक आवश्यकता थी,पर पता नहीं यह सभी सेवाभावी उस समय किस कोठरी में बंद थे और आज 2024 तक इस प्रकार की व्यवस्था देने की चर्चा कर रहे हैं इसलिए किसान संगठनों को बड़े मन के साथ बड़ी सोच को लेकर राष्ट्रहित में को समझना होगा नहीं तो हम कभी नहीं निकलने वाले हल की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। इसी कारण आठ दौर की चर्चाएं भी निरर्थक साबित हुई। कोई समाधान नहीं निकाल पाई। आंदोलन स्थल पर एक पार्टी विशेष को वोट नहीं देने की शपथ दिलाना, पंजाब हरियाणा में मोबाइल के टावरों को तोड़ना, विकास को अवरुद्ध करना, आमजन को परेशान करना, विशेष उद्योगों को निशाना बनाकर नष्ट करना, जिसमें पुरस्कार वापसी गैंग जेएनयू में भारत के टुकड़े टुकड़े होने की कामना करना, स्वतंत्रता के नाम पर सामाजिक जीवन मूल्यों को तहस-नहस करना, राष्ट्र के मानदंडों का महापुरुषों के जीवन की मजाक उड़ाना इस प्रकार के लोगों की आंदोलन में एंट्री हुई। आठ दौर की वार्ताओं को विफल किया गया और आंदोलन 2024 तक चले ऐसा कहा जाता रहा। यह सब बातें किस दिशा में हमको ले जाएगी। ऐसी परिस्थिति में अब आंदोलन किसान समाज का नुकसान ही करेगा। किसानों को अपनी खेती बाड़ी छोड़े हुए उससे दूर हुए लगभग 2 महीने का समय व्यतीत होने को आया है। देश का अधिकतम समाज बहुत जल्दी ही आंदोलन का पटाक्षेप चाहता है। उसकी भावना है कि कोई मुद्दों पर सहमति बनाकर अभी आंदोलन समाप्त हो और बचे हुए मुद्दों पर फिर आगे बातचीत की जाए। देश को इस अराजकता के माहौल से बाहर निकाला जाए क्योंकि पहले हम कोरोना नाम की महामारी से लड़ रहे हैं। अनेकों परिवारों ने अपने परिजनों को खोया है। अब हमको देश की सवा अरब आबादी को सुखी संपन्न स्वस्थ जीवन की ओर आगे ले जाने के लिए निर्णय करना आवश्यक है। ऐसी परिस्थिति के कारण ही न्यायालय को इस आंदोलन के विषय में संज्ञान लेने को मजबूर होना पड़ा और न्यायालय ने दोनों ही पक्षों को अपने सुझाव रखे हैं। इसलिए अब दोनों ही पक्ष न्यायालय के निर्णय को माने और आंदोलन के गतिरोध को समाप्त करे। किसान हित में कुछ मुद्दों को मानकर अभी आंदोलन समाप्त किया जाये, शेष बचे मुद्दों पर फिर सरकारों से बात की जाए। ऐसा करना ही देश एवं समाज हित में होगा। क्योंकि हम सभी अपने इस भारत देश के जिम्मेदार देशभक्त नागरिक हैं, देश के हित में ही हम अपना ही देखते हैं।