राग रतलामी/ लॉक डाउन के नजारे,कहीं दिक्कतें,कहीं मजे में है सारे,क्वारन्टाइन में चले गए पहले वाले
-तुषार कोठारी
रतलाम। कोरोना के चक्कर में चालू हुए लॉक डाउन को यूं तो ग्यारह दिन गुजर चुके है,लेकिन रतलाम का लॉक डाउन तो और भी पुराना है। यहां तो जनता कफ्र्यू के दिन से ही लॉक डाउन चालू है। लॉक डाउन के इन दो हफ्तों में तरह तरह के नजारे देखने को मिले है। कहीं लोग दिक्कतों में है तो कहीं कहीं कई सारे लोग मजे में भी है।
लॉक डाउन के शुरुआती दिनों में अपने घरों को लौट रहे भूखे प्यासे मजदूरों और दिहाडी मजदूरी करने वाले गरीबों के सामने भूख मिटाने की बडी समस्या थी। शहर में सेवाभावियों की कोई कमी नहीं है। लोगों ने जबर्दस्त तरीके से दान देना शुरु किया। कोई भोजन सामग्री बांट रहा था तो कोई भोजन तैयार कर ही बांटने लगा था। शुरुआती हफ्ते की गडबडियों के बाद आखिरकार व्यवस्था सुधर गई और अब तो स्थिति ऐसी बन गई है कि जिन्हे जरुरत नहीं हैं वो भी भोजन के पैकेट और सामग्री लेकर मजे कर रहे है।
भूखों तक भोजन पंहुचाने की जिम्मेदारी पहले तो बडी पंचायत के बडे साहब को दी गई थी। शुरुआती दौर में हर तरफ अव्यवस्था थी और जिले की पंचायत के बडे साहब इस अव्यवस्था को ठीक करने के चक्कर में खुद ही अव्यवस्थित हो गए। उन्ही का स्वास्थ्य गडबडा गया और उन्हे डाक्टर की मदद लेना पड गई।
फिर बडी मैडम ने ये व्यवस्था नगर सरकार वालों को दे दी। अब नगर सरकार के लोग भोजन पैकेट पंहुचाने का काम कर रहे है। इसके अलावा कई सारी संस्थाएं भी इसी काम में लगी हुई है। फूल छाप वाले भैयाजी घर घर में मोदी किट पंहुचाने में जुटे है। कुल मिलाकर व्यवस्था ठीक ठाक हो गई है। लेकिन इसी चक्कर में कई सारे लोग मजा लूटने में लग गए है। सरकारी भोजन पैकेट तो अब ऐसे इलाकों में भी पंहुचने लगा है,जहां इसकी कोई जरुरत ही नहीं है। वो लोग सोचते है कि लॉक डाउन में बना बनाया भोजन घर बैठे मिल रहा है,तो घर का राशन खर्च करने का क्या मतलब? कुछ तो इसी मौके का फायदा उठाकर साल भर का राशन इक_ा करने में भी जुट गए हैं। वर्दी वालों ने ऐसे कई लोगों को उजागर भी किया है। उनके विडीयो भी बनाकर वायरल कर दिए गए। लेकिन उन बेशर्मों को इससे कोई फर्क नहीं पडता। वे कहते है कि उन्होने कम से कम इन्दौर जैसा काम तो नहीं किया,जहां डाक्टरों पर ही पथराव कर दिया गया था। वे तो केवल मौके का फायदा उठाकर केवल साल भर का राशन ही जमा कर रहे है।
कुल मिलाकर, जिन्हे जरुरत है,उनकी जरुरतें पूरी हो रही है और इसकी आड में कई लोग बेजा फायदा भी उठा रहे हैं। लॉकडाउन के ये अलग अलग नजारे है।
पंजा पार्टी हुई क्वारन्टाइन…..
इधर कोरोना का संकट शुरु हो रहा था और उधर सूबे में सरकार बदल रही थी। लॉक डाउन शुरु हुआ तब तक सूबे का निजाम पंजा पार्टी के हाथों से निकल फूल छाप वालों के हाथों में आ चुका था। कोरोना संकट से निपटने में सरकारी मशीनरी के अलावा जनप्रतिनिधियों का भी महत्वपूर्ण रोल है। जरुरतमन्दो तक सरकारी सुविधाएं पंहुचाने का काम जनप्रतिनिधि ही ठीक ढंग से कर सकते है। लेकिन सरकार बदलने का सीधा असर जनप्रतिनिधियों पर पडा है। पंजा पार्टी के जो नेता कल तक हर कहीं आगे आगे नजर आया करते थे,सरकार बदलने के कारण अब हर जगह से नदारद है। आपा से लेकर दादा तक कहीं कोई नजर नहीं आ रहा। भूखे लोगों तक भोजन पंहुचाना हो या किसी को इलाज की मदद मुहैया कराना,किसी भी काम में पंजा पार्टी वाले नजर नहीं आ रहे। इस तरह के सारे कामों में अब दूसरे ही लोग दिखाई दे रहे है। ऐसा लगता है कि पंजा पार्टी वाले,सारे के सारे क्वारन्टाईन में चले गए है।
देवदूत या क्रूर…….
कोरोना काल में और किसी को कोई फायदा हुआ हो या ना हुआ हो,वर्दी वालों को जमकर फायदा हुआ है। कल तक क्रूर कहे जाने वाले वर्दी वालों की आजकल हर कहीं जय जयकार हो रही है। वर्दी वालों की सेवा भावना को देख देख कर लोग हैरान है और उन्हे देवदूत तक की संज्ञा दी जाने लगी है। लेकिन किसी किसी को वर्दी वाले पहले से भी अधिक क्रूर लग रहे है। अपनी वृध्द मां को डाक्टर के पास ले जा रहे युवक की गाडी जब वर्दी वाले लाक डाउन का हवाला देकर छीन लेते है और उसे कई घण्टों की मशक्कत और चालान भरने के बाद गाडी लौटाई जाती है। ऐसी स्थिति में उसकी लाचार वृध्द मां को पैदल ही लम्बी दूरी तय करना पडती है,तब ऐसे व्यक्ति को वर्दी वाले पहले से भी ज्यादा क्रूर ही दिखाई देंगे। ऐसी इक्का दुक्का घटनाएं भी अगर रोक ली जाए,तो वर्दी वाले सचमुच देवदूत लगने लगेंगे।