गुडगवर्नेंस के दावे और प्रशासनिक अक्षमता
सन्दर्भ- एसडीएम के खिलाफ अभिभाषकों का आन्दोलन
रतलाम। क्या प्रशासन इसी को कहते है? कलेक्टर राजीव दुबे के नेतृत्व में जिले में जो कुछ चल रहा है,यदि उसे प्रशासन कहा जा सकता हो,तो फिर प्रशासन किसे कहेंगे? बुध्दिजीवी वर्ग के प्रतिनिधि माने जाने वाले अभिभाषक एक डिप्टी कलेक्टर की मजिस्ट्रीयल शक्तियां वापस लेने की मांग को लेकर द
स दिनों से आन्दोलन कर रहे है। इस हडताल से ना जाने कितने लोगों को भारी परेशानी उठानी पड रही है। लेकिन कलेक्टर राजीव दुबे है कि पूरे मुद्दे पर हठधर्मिता पाले बैठे है। वकीलों के आन्दोलन की आग अब बाहर तक फैलने लगी है,लेकिन कलेक्टर आंखे मूंदे बैठे है।
विधि की स्थापित परंपरा है कि यदि किसी प्रकरण में कोई पक्षकार न्यायाधीश के न्यायदान पर शंका जाहिर कर देता है,तो न्यायाधीश स्वयं प्रकरण से स्वयं को विरत कर लेता है। यहां तो जिला न्यायालय के पांच सौ से अधिक अभिभाषक एसडीएम के प्रति अविश्वास जाहिर कर चुके है,लेकिन जिला मजिस्ट्रेट की शक्तियां धारण करने वाले कलेक्टर राजीव दुबे विधि का इस स्थापित परंपरा को भी शायद भुला चुके है।
प्रशासनिक व्यवस्था में किसी डिप्टी कलेक्टर को दण्डाधिकारी की शक्तियों का अंतरण करना जिला दण्डाधिकारी या कलेक्टर का अधिकार होता है। इसी तरह किसी अनुविभागीय दण्डाधिकारी से उसकी शक्तियां वापस लेना भी कलेक्टर का ही अधिकार होता है। आमतौर पर किसी एसडीएम से व्यक्तिगत नाराजगी होने पर कोई कलेक्टर बडी आसानी से एसडीएम की शक्तियां वापस ले लेता है। जिले में पहले कई बार ऐसा हो भी चुका है।
लेकिन इस बार कहानी बिलकुल जुदा है। पांच सौ से ज्यादा अभिभाषक एक दण्डाधिकारी के प्रति अविश्वास जाहिर कर चुके है। इसके बावजूद जिला दण्डाधिकारी के महत्वपूर्ण पद पर आसीन अधिकारी इस मुद्दे को अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाकर बैठा है। इतना ही नहीं शासन और प्रशासन के अधिकारी इस मुद्दे पर मौन धारण किए हुए है। शहर के निर्वाचित जनप्रतिनिधि इस ज्वलन्त प्रश्न पर तटस्थ बने बैठे है।
कलेक्टर का यह रवैया कहीं इस बात को ओर इंगित तो नहीं करता कि अभिभाषकों द्वारा लगाए जा रहे भ्रष्टाचार के आरोपों में सच्चाई हो और इससेजिले के उच्चतम अधिकारी भी लाभान्वित होते हों। इसके अलावा तो और कोई ऐसा कारण नहीं हो सकता कि जिसकी वजह से प्रशासन इतनी हठधर्मिता अपनाए। प्रशासन स्वतंत्र लोकतांत्रिक देश का है और इसका लक्ष्य जनता पर शासन का नहीं बल्कि जनता की सेवा का होता है।
प्रशासनिक अक्षमता का इतना बडा उदाहरण शहर में देखने को मिल रहा है,लेकिन गुड गवर्नेंस के दावे करने वाली सत्ताधारी पार्टी के जनप्रतिनिधि चुप्पी साधे बैठे है। यह भी एक बडा आश्चर्य है। यह देखना रोचक रहेगा कि इस कहानी का अन्त क्या होगा?