सुप्रीम कोर्ट में आज 35ए पर सुनवाई, अलगाववादियों का कश्मीर बंद
नई दिल्ली,31 अगस्त(इ खबरटुडे)। सुप्रीम कोर्ट में आज संविधान के अनुच्छेद 35ए की वैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई होगी। इससे पहले इसी सोमवार को शीर्ष अदालत ने नई याचिका पर सुनवाई स्थगित कर दी थी। शीर्ष कोर्ट ने याचिकाकर्ता के आग्रह पर यह कदम उठाया है। संविधान के इस अनुच्छेद के तहत जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा हासिल है। इसके प्रावधानों के अंतर्गत राज्य विधान सभा को यह अधिकार प्राप्त है कि वह सूबे के स्थायी नागरिकों की परिभाषा तय कर उन्हें विशेष अधिकार और सुविधाएं प्रदान करे।
भाजपा नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय ने एक ताजी याचिका दाखिल कर संविधान के अनुच्छेद 35ए को मनमाना घोषित करने की मांग की है। उनका कहना है कि संविधान के इस अनुच्छेद को इस आधार पर मनमाना घोषित किया जाना चाहिए क्योंकि यह समानता का अधिकार, अभिव्यक्ति की आजादी, जीवन का अधिकार, निजी स्वतंत्रता और महिलाओं के सम्मान जैसे मौलिक अधिकारों के खिलाफ है।
अलगाववादियों का कश्मीर बंद
अनुच्छेद 35ए की सुनवाई के विरोध में अलगाववादियों ने दो दिवसीय कश्मीर बंद का आह्वान किया है। अलगाववादी नेताअों सैयद अली शाह गिलानी, उमर फारूक और यासीन मलिक ने इसी के विरोध में दो दिवसीय बंद का आह्वान किया है। बंद को कश्मीर के कई संगठनों का भी समर्थन है। बंद को देखते हुए लोगों का आशंका है कि यह आगे भी बढ़ सकता है। इसका असर कश्मीर में लोगों की जिंदगी पर पड़ रहा है। लोगों ने इस दौरान होने वाले विवाह समारोह स्थगित कर दिए हैं।
क्या है अनुच्छेद 35ए
दरअसल, अनुच्छेद 35-ए के तहत जम्मू-कश्मीर सरकार और वहां की विधानसभा को स्थायी निवासी की परिभाषा तय करने का अधिकार मिल जाता है। राज्य सरकार को ये अधिकार मिल जाता है कि वो आजादी के वक्त दूसरी जगहों से आए शरणार्थियों और अन्य भारतीय नागरिकों को जम्मू-कश्मीर में किस तरह की सहूलियतें दे या नहीं दे।
जानिए-कब जुड़ा ये अनुच्छेद
14 मई 1954 को तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने एक आदेश पारित किया था। इस आदेश के जरिए भारत के संविधान में एक नया अनुच्छेद 35A जोड़ दिया गया।
अभी तक शुरू नहीं हुई सुनवाई
35-ए के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई अभी तक शुरू नहीं हो पाई है। पिछले साल अगस्त में भी राज्य की महबूबा मुफ्ती सरकार ने कानून-व्यवस्था का हवाला देते हुए सुनवाई टालने का आग्रह किया था। इसके बाद इस साल के शुरू में केंद्र सरकार ने दिनेश्वर शर्मा को वार्ताकार नियुक्त किए जाने का हवाला देते हुए सुनवाई टालने का आग्रह किया था। एक बार फिर राज्य सरकार ने पंचायत चुनावों को देखते हुए सुनवाई टालने का आग्रह किया है।
क्या कहता है जम्मू-कश्मीर का संविधान
बता दें कि 1956 में जम्मू कश्मीर का संविधान बनाया गया था। इसमें स्थायी नागरिकता को परिभाषित किया गया है। इस संविधान के मुताबिक स्थायी नागरिक वो व्यक्ति है जो 14 मई 1954 को राज्य का नागरिक रहा हो या फिर उससे पहले के 10 वर्षों से राज्य में रह रहा हो, साथ ही उसने वहां संपत्ति हासिल की हो।
इन कारणों से है विरोध
इसके अलावा अनुच्छेद 35ए, धारा 370 का ही हिस्सा है। इस धारा की वजह से कोई भी दूसरे राज्य का नागरिक जम्मू-कश्मीर में ना तो संपत्ति खरीद सकता है और ना ही वहां का स्थायी नागरिक बनकर रह सकता है। महिलाओं ने भी अनुच्छेद को भेदभाव करने वाला कहा है।