शोक जताने के शौक में शॉक देने वाला ठहाका
प्रकाश भटनागर
छत्तीसगढ़ में ब्रजमोहन अग्रवाल और अजय चंद्राकर ने यह अच्छा नहीं किया। भला, शोक सभा में भी कोई सबके सामने ठहाके लगाता है! वह भी तब, जब आयोजन अटल बिहारी वाजपेयी के सम्मान के नाम पर हो रहा हो। बताइए जरा! कमल की हर पंखुड़ी ओस की बजाय प्रायोजित आंसूओं से तर है और आप हैं कि ठहाके लगा रहे हैं। आपका यह भाव तो तब भी कायम ही था ना, जब मृत्यु से करीब डेढ़ दशक पहले तक अटलजी भगवा फैशन से आउटडेटेड किए जा चुके थे। आप और आप जैसे अनेकों की उपेक्षा का केंद्र थे। उस अवधि में आपने छत्तीसगढ़ में वाजपेयी की रिश्तेदार करुणा शुक्ला को पार्टी से बाहर जाने पर मजबूर कर दिया। जो मध्यप्रदेश कभी आपकी सियासी गतिविधियों का केंद्र हुआ करता था, वहां अटलजी के एक अन्य रिश्तेदार अनूप मिश्रा भाजपा के सांसद होते हुए भी हाशिये पर ला दिए गए। शुक्ला और मिश्रा के मामले में आपका हंसते-हंसते आंख मूंद लेना माफ किया जा सकता है, लेकिन निधन के बाद एक बार फिर भाजपा के लिए लाभ का सौदा बने वाजपेयी की शोक सभा में ऐसा करते हुए पकड़े जाने की गलती भला आपने कैसे कर दी!
सच-सच बताइएगा कि आप किस बात पर हंस रहे थे। इस पर कि राज्य की नादान जनता आपको वाकई शोकाकुल समझ रही है? या ठहाका इस यकीन के दंभ से फूट पड़ा कि अटलजी के बहाने आपको छत्तीसगढ़ और आपसे बड़े वालों को दिल्ली की सरकार में बने रहने का एक मौका और मिल जाएगा। ऐसा तो दिल्ली सहित मध्यप्रदेश और राजस्थान वाले भी सोच रहे हैं। लेकिन वे ठहाका नहीं लगा रहे। वे पेट के भीतर ही भीतर खुश हो लेते होंगे, किंतु उसकी सार्वजनिक नुमाइश नहीं कर रहे। मगर आप का कोई क्या करे! आप तो हंसे और फंसे। फजीहत के पात्र बन गए। तरस आता है आपकी बुद्धि पर।
एक बात साफ समझ लीजिए। शीर्षक से हटकर सोच या आचरण की आपको कतई छूट नहीं है। भाजपा का शीर्षक है, “पार्टी विद डिफरेंस।” तो अन्य दलों से आचरण संबंधी तमाम अंतर खत्म हो जाने के बावजूद आपको अपने दल के लिए सबसे हटकर वाले शब्द का ही रट्टा मारना होगा। उसी तरह यदि आयोजन का शीर्षक शोक सभा या श्रद्धांजलि सभा है तो उसका मूल स्वरूप चाहे जो हो, आपको तो शोक या श्रद्धांजलि वाली भूमिका में ही रहना होगा। अरे! जब जनता से झूठे वादे करते समय आप गंभीर रहते हैं। संविधान की शपथ लेते वक्त आप महज रस्मअदायगी करते हुए भी संजीदा रह सकते हैं तो फिर एक श्रद्धांजलि सभा में भी यही अभ्यास आप क्यों कायम नहीं रख पाए?
आप भी अटलजी के अस्थि कलश के लिए वैसा ही भाव अपना लेते, जैसा सम्मान नरेंद्र मोदी आज भी (केवल सार्वजनिक रूप से) लालकृष्ण आडवाणी के लिए जताते हैं। या जिस तरह अर्जुन सिंह किसी समय राजीव गांधी को याद कर रो पड़े थे। और कुछ नहीं तो आप जवाहरलाल नेहरू से ही सीख लेते। सन 1962 का युद्ध चीन से हारने के बाद उन्होंने कहा था कि जो जमीन दुश्मन ने छीनी, उसका वैसे भी कोई उपयोग नहीं था। लेकिन ज्यों ही लता मंगेशकर ने इसी युद्ध को समर्पित, “ऐ मेरे वतन के लोगों गाया,” तो नेहरूजी ने भी मौका देखते ही दो आंसू टपकाए और चीन युद्ध से संबंधित उनके तमाम पाप तुरंत धुल गए थे। सयाने फरमा गए हैं कि गुड़ भले ही मत खिलाओ, लेकिन गुड़ जैसी बात कर लो।
मोदी सहित अर्जुन और नेहरू जैसे चतुरसुजान इस बात को समझ गए। लेकिन आप सरीखे कच्चे खिलाड़ी मात खा गए। चंद्राकर का नहीं पता, किंतु अग्रवाल जी, उस समय तो आप भी मध्यप्रदेश के विधायक थे, जब लिखिराम कांवरे नामक मंत्री की हत्या कर दी गई थी। सदन में कंकर मुंजारे तक ने गंभीर स्वर और अंदाज में उन्हें श्रद्धांजलि दी थी। जब निधन के पूर्व तक कांवरे को लगातार नकल चोर कहने वाले आपसे बहुत कम राजनीतिक कद के मुंजारे खास मौके पर शोकाकुल नजर आने में कामयाब रहे तो आप अटलजी के साथ ऐसा कैसे नहीं कर सकते थे?
आपकी पार्टी पूरे शौक से अटलजी का शोक मनाने पर टूट पड़ी है। लेकिन आप दोनो की यह हरकत किसी शॉक की तरह सारे किए-कराये पर पानी फेर सकती है। खैर, अटलजी के अस्थि कलश और भी हैं। कलश या राख कम पड़ेंगे तो और तरीकों से भी दिवंगत आत्मा को याद करने का इंतजाम कर लिया जाएगा। आखिर मई,2019 तक हमे शोकाकुल रहना है। उसके बाद लगाइएगा जमकर ठहाका। किसने रोका है आपको? मगर शोक के समय ठहाके के शौक पर काबू पाना सीख लीजिए। सड़ांध और अंधेरे से भरे राजनीतिक गलियारे में स्वार्थपरक योग की पाठशाला का यह जरूरी सबक है। तो भरिए आंख में आंसू, स्वर में भर्राहट और “रोते” हुए चिंघाड़िए, जब तक तुझसे काम रहेगा, अटलजी तेरा नाम रहेगा। जयहिंद। जय हिंद की राजनीति।