April 26, 2024

अयोध्या विवाद पर 8 फरवरी को अगली सुनवाई करेगा सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली,6 दिसम्बर(इ खबरटुडे)।  अयोध्या के राम जन्मभूमि मामले में सुनवाई टल गई है। अब 8 फरवरी 2018 को सुप्रीम कोर्ट इस पर अगली सुनवाई करेगा। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुआई वाली बेंच इस मामले की नियमित सुनवाई कर रही है। सुप्रीम कोर्ट में शिया वक्फ बोर्ड ने मंदिर का समर्थन किया। वहीं सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट के सामने इलाहाबाद हाई कोर्ट में पेश किए गए दस्तावेजों को पढ़ा अौर कहा कि सभी सबूत कोर्ट के सामने पेश नहीं किए गए।

उत्तर प्रदेश राज्य का प्रतिनिधित्व कर रहे एडिशनल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कपिल सिब्बल के सभी दावों को गलत बताया। मेहता ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि सभी संबंधित दस्तावेज और जरूरी अनुवादित कॉपियां जमा की जा चुकी हैं।

वकील कपिल सिब्बल और राजीव धवन समेत दूसरे याचिकाकर्ताओं ने बड़ी बेंच बनाए जाने की मांग करते हुए कहा कि 7 जजों एक बेंच गठित की जाए। सिब्बल ने साल 2019 के बाद मामले की सुनवाई की मांग की। उन्होंने कहा कि 2019 के आम चुनाव में इस मसले को उठाया जा सकता है।

अयोध्या की विवादित जमीन पर रामलला विराजमान है और हिंदू महासभा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। वहीं, दूसरी तरफ सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने भी सुप्रीम कोर्ट में हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ अर्जी दाखिल कर दी है। इसके बाद इस मामले में कई और पक्षकारों ने याचिकाएं लगाई। सुप्रीम कोर्ट ने 9 मई 2011 को इस मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाते हुए मामले की सुनवाई करने की बात कही थी।

अयोध्या के विवादास्पद ढांचे को लेकर हाई कोर्ट ने जो फैसला दिया था उसके बाद तमाम पक्षों की ओर से सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका (SLP) दायर की गई थी और याचिका सुप्रीम कोर्ट में 6 साल से लंबित है। पिछले साल 26 फरवरी को भाजपा नेता सुब्रमण्यन स्वामी को इस मामले में पक्षकार बनाया गया था। स्वामी ने राम मंदिर निर्माण के लिए याचिका दायर की थी।

11 अगस्त को 3 जजों की स्पेशल बेंच ने अयोध्या मामले की सुनवाई की थी। सुप्रीम कोर्ट में 7 साल बाद अयोध्या मामले की सुनवाई हुई थी। कोर्ट ने कहा था कि 7 भाषा वाले दस्तावेज का पहले का अनुवाद किया जाए। कोर्ट से साथ ही कहा कि वह इस मामले में आगे कोई तारीख नहीं देगा।

क्या है इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला

28 साल सुनवाई के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दो एक के बहुमत से 30 सितंबर, 2010 को जमीन को तीन बराबर हिस्सों रामलला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड में बांटने का फैसला सुनाया था। भगवान रामलला को वहीं हिस्सा दिया गया, जहां वे विराजमान हैं। हालांकि, हाई कोर्ट का फैसला किसी पक्षकार को मंजूर नहीं हुआ और सभी 13 पक्षकार सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए। सुप्रीम कोर्ट ने मई 2011 को अपीलों को विचारार्थ स्वीकार करते हुए मामले में यथास्थिति कायम रखने का आदेश दिया था, जो यथावत लागू है।

विवादित ढांचे के नीचे हैं मंदिर के साक्ष्य

विवादित ढांचे के नीचे हिंदू मंदिर होने के साक्ष्य मिले हैं। 30 सितंबर, 2010 को इलाहाबाद हाई कोर्ट के तीन में से दो न्यायाधीशों जस्टिस सुधीर अग्रवाल और धर्मवीर शर्मा ने अपने फैसले में माना कि अयोध्या में विवादित ढांचा हिंदू मंदिर तोड़ कर बनाया गया था। दोनों जजों के फैसले का आधार भारत पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) की रिपोर्ट है। एएसआइ की रिपोर्ट कहती है कि विवादित ढांचे के नीचे हिंदू मंदिर था। मस्जिद बनाने में मंदिर के अवशेषों का इस्तेमाल हुआ था। हालांकि, तीसरे न्यायाधीश एसयू खान के अनुसार, इस बात का कोई सुबूत नहीं मिलता कि बाबर ने मस्जिद किसी मंदिर को तोड़ कर बनाई थी। उन्होंने ये जरूर माना कि मस्जिद का निर्माण बहुत पहले नष्ट हो चुके मंदिर के अवशेषों पर हुआ था।

हिंदू संगठनों की दलील

-श्रीरामलला विराजमान और हिंदू महासभा आदि ने दलील दी है कि हाई कोर्ट ने भी रामलला विराजमान को संपत्ति का मालिक बताया है।

-वहां पर हिंदू मंदिर था और उसे तोड़कर विवादित ढांचा बनाया गया था। ऐसे में हाई कोर्ट एक तिहाई जमीन मुसलमानों को नहीं दे सकता है।

-यहां न जाने कब से हिंदू पूजा-अर्चना करते चले आ रहे हैं, तो फिर हाई कोर्ट उस जमीन का बंटवारा कैसे कर सकता है?

मुस्लिम संगठनों की दलील

-सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और अन्य मुस्लिम पक्षकारों का कहना है कि बाबर के आदेश पर मीर बाकी ने अयोध्या में 528 में 1500 वर्गगज जमीन पर मस्जिद बनवाई थी।

-इसे बाबरी मस्जिद के नाम से जाना जाता है। मस्जिद वक्फ की संपत्ति है और मुसलमान वहां नमाज पढ़ते रहे।

-22 और 23 दिसंबर 1949 की रात हिंदुओं ने केंद्रीय गुंबद के नीचे मूर्तियां रख दीं और मुसलमानों को वहां से बेदखल कर दिया।

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