April 23, 2024

सकलेचा का कांग्रेस में आना-कांग्रेस के बंटाढार की तैयारी

रतलाम,19 अगस्त(इ खबरटुडे)। मिस्टर बंटाढार के नाम से प्रसिध्द रहे पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने अब शायद रतलाम में भी कांग्रेस के बंटाधार की तैयारी कर ली है। पूर्व विधायक पारस सकलेचा के घर जाकर की गई मुलाकात के बाद शहर के अधिकांश कांग्रेसियों की यही राय बन रही है।
हांलाकि श्री सकलेचा के कांग्रेस में आने की सुगबुगाहटें लम्बे समय से चल रही है,लेकिन दिग्विजय सिंह से उनकी मुलाकात के बाद अब इस पर मोहर भी लग गई है। अब इस बात की पूरी संभावना है कि आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पारस सकलेचा को अपना प्रत्याशी बनाकर उतारेगी। इसी के साथ यह भी तय है कि कांग्रेस हाईकमान के इस फैसले का स्थानीय स्तर पर जमकर विरोध होगा। कांग्रेस के स्थानीय नेताओं में इस पर विचार विमर्श भी शुरु हो गया है।
पिछले विधानसभा चुनाव में बुरी तरह हारे श्री सकलेचा को नतीजों के बाद यह अच्छे से समझ में आ गया था कि अल्पसंख्यकों के मतों के बगैर चुनावी नैया का पार लगना असंभव है। राजनीति के शुरुआती दौर में तो उन्हे कांग्रेस पार्टी का महत्व समझ में नहीं आया था,लेकिन अब लगता है कि उन्हे कांग्रेस का महत्व समझ में आ गया है। उन्हे यह भी अच्छे से समझ में आ गया है कि अल्पसंख्यकों के वोट उन्हे तभी मिल सकते है,जब वे कांग्रेस के अधिकृत उम्मीदवार बन कर मैदान में उतरेंगे।
राजनीतिक जीवन में रतलाम के महापौर और विधायक रह चुके पारस सकलेचा की राजनीतिक समझबूझ पर शुरुआत से ही प्रश्नचिन्ह लगते रहे हैं। राजनीतिक के जानकारों का मानना है कि वे शुरु से ही गलतियां करते रहे हैं। उनकी राजनीतिक सफलताओं में उनकी समझदारी का उतना योगदान नहीं रहा है,जितना कि परिस्थितियों का। चाहे वे महापौर का चुनाव जीते या विधायक का। हर बार तत्कालीन परिस्थितियों ने उनकी जीत में प्रमुख भूमिका निभाई थी। लेकिन जब जब उन्होने सामान्य परिस्थितियों में जोर आजमाईश की,वे बुरी तरह असफल रहे।
उनका राजनीतिक आकलन भी हमेशा गडबड होता रहा है। बिहार और उत्तरप्रदेश की जातिवादी राजनीति में नेताओं के दलबदल को अधिक महत्व नहीं दिया जाता है। लेकिन मालवा में राजनीतिक प्रतिबध्दता का अपना महत्व है। श्री सकलेचा अब तक इस तथ्य को समझ नहीं पाए है। वे बार बार अपनी निष्ठाएं बदलते रहे है। इसकी वजह से सामान्य नागरिकों में उनके प्रति विश्वास का भाव उत्पन्न ही नहीं हो पाया है। यदि उन्होने पिछले विधानसभा चुनावों का ठीक ढंग से विश्लेषण किया होता,तो उन्हे यह तथ्य समझ में आ सकता था।
अब वे फिर से कांग्रेस में आने को बेकरार है। हांलाकि अब परिस्थितियां पूरी तरह बदली हुई है। कांग्रेस के स्थानीय नेताओं में उनके नाम को लेकर जबर्दस्त नाराजगी का भाव है। कांग्रेस के स्थानीय नेता खुले तौर पर तो अपनी नाराजगी जाहिर नहीं कर रहे हैं। लेकिन नाम नहीं छापने की शर्त पर वे बताते है कि अगर कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने स्थानीय कार्यकर्ताओं की राय को महत्व नहीं दिया तो कांग्रेस को भारी खामियाजा भुगतना पड सकता है। कांग्रेस के नेता पार्टी फोरम में पारस सकलेचा को कांग्रेस में लाने का जबर्दस्त विरोध करने की तैयारी कर रहे है। कांग्रेसी सूत्रों का यह भी कहना है कि सांसद कांतिलाल भूरिया भी श्री सकलेचा के पक्ष में नहीं है। कुछ विश्लेषकों का तो यह भी मानना है कि कांग्रेस से सकलेचा की उम्मीदवारी,भाजपा को ही फायदा दिलाएगी। इसीलिए यह कहा जा रहा है कि पारस सकलेचा को कांग्रेस में लाना,भाजपा का ही षडयंत्र है। कई कांग्रेसियों का कहना है कि दिग्विजय सिंह लम्बे अरसे से कांग्रेस की नैया डूबोने में लगे है। सकलेचा को कांग्रेस में आने का न्यौता देना भी इसी अभियान की एक कडी है।
दूसरी ओर भाजपा के लिए स्थितियां बेहद फायदेमंद है। पहली बार ऐसा हो रहा है कि आम मतदाता,विधायक चैतन्य काश्यप के हाई प्रोफाईल होने की नाराजगी के बावजूद उनके कार्यकाल उपलब्धियों को खुले दिल से स्वीकार कर रहा है। शहर में इतने विकास कार्य हो रहे है कि इसे कोई नकार नहीं पा रहा है। दशकों पुरानी मांग मेडीकल कालेज विधानसभा चुनाव के पहले प्रारंभ होना तय है। ये रतलाम शहर की सूरत और सीरत बदलने वाली उपलब्धि है और इसे बडे से लेकर छोटे आदमी तक सभी स्वीकार कर रहे है। आम मतदाता यह मान कर चल रहा है कि परिस्थितियां पूरी तरह भाजपा के पक्ष में है। विधानसभा चुनाव में भाजपा के सामने फिलहाल कोई चुनौती नहीं है।
बहरहाल पारस सकलेचा को कांग्रेस प्रत्याशी बनाए जाने की खबरें पुरानी फ्लाप फिल्म को नए पोस्टर के साथ रिलीज करने जैसी है। पहले से पिटी हुई फिल्म दूसरे दौर में चलने की संभावनाएं नगण्य ही है।

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