पाखंड के विरूद्ध तात्कालिक सर्जीकल स्ट्राइक था अद्वैत दर्शन – अजहर हाशमी
अद्वैत दर्शन पर संगोष्ठि आयोजित
रतलाम,01 मई (इ खबरटुडे)।आदि गुरू शंकराचार्य का अद्वैत दर्शन तत्कालिन समय में उनके द्वारा पाखण्ड के विरूद्ध किया गया सर्जीकल स्ट्राइक था। उक्त उद्गार म.प्र. संस्कृति विभाग द्वारा शंकराचार्यजी की प्राकट्य पंचमी के उपलक्ष्य में जिला स्तर पर आयोजित संगोष्ठि में मूर्धन्य चिंतक अजहर हाशमी ने व्यक्त किये।
कलेक्टोरेट सभाकक्ष में आयोजित संगोष्ठि मंे महापौर डाॅ. सुनिता यार्दे, एडीएम डाॅ. कैलाश बुन्देला, रतलाम शहर एसडीएम सुनील झा, ग्रामीण एसडीएम श्रीमती नेहा भारतीय, उप जिला निर्वाचन अधिकारी रणजीत कुमार, तहसीलदार अजय हिंगे एवं अन्य अधिकारी, कर्मचारी उपस्थित थे। स्वागत उद्बोधन और आभार प्रदर्शन नोडल अधिकारी व डिप्टी कलेक्टर अनिल भाना ने किया।
प्रोफेसर अजहर हाशमी ने आदि गुरू शंकराचार्य के अद्वैत दर्शन पर प्रकाश डालते हुए बताया कि अद्वैत का अर्थ परस्पर सम्मिलन है। यह आत्मा से परमात्मा के भेद को मिटाता हैं। जब जीव में भ्रम का मिलन हो जाता हैं उस स्थिति को अद्वैत कहा जा सकता है। उन्होने कहा कि भ्रम सत्य हैं जगत मिथ्या है। आदि गुरू शंकराचार्य ने तत्कालिन समाज में विभिन्न सम्प्रदायों में व्याप्त आडम्बरों पर गहरी चोट करते हुए उनको नकारा और समाज को इस सत्य का अनुभव कराया कि सभी एक समान है। वर्गवाद और वर्णवाद सभी मिथ्या है। अद्वैत दर्शन में कही पर भी किसी भी प्रकार के भेदभाव और असमानता के लिये कोई भी स्थान नहीं है।
आदि गुरू शंकराचार्य के जीवन पर प्रकाश डालते हुए प्रोफेसर हाशमी ने बताया कि आदि गुरू मात्र तीन वर्ष में मात्रभाषा मलयालम में काव्य पाठ करने लगे थे। आठ वर्षो में वे चारों वेदों के ज्ञाता हो गये थे। 12 वर्षो में उन्होने सभी शास्त्रों का अध्ययन कर लिया था। 16 वर्ष की आयु में उन्होने भाष्य का लेखन कर दिया और 32वर्ष की अल्पायु में वे मोक्षगामी हो गये। आदि गुरू शंकराचार्य अपने समय के अद्भुत, अलौकिक प्रतिभा के धनी थे। उन्होने समाज में समरूपता और एकाकार के लिये ही भारत वर्ष के चारों कोनों मंे पीठों की स्थापना की।