एक सौ तैतींस करोड में से मात्र बीस करोड के आबकारी ठेकों का निपटारा,इ टेण्डरिंग में रुचि नहीं ले रहे है ठेकेदार
रतलाम,2 मार्च (इ खबरटुडे)। हर साल की तरह इस बार भी आबकारी ठेकों की इ टेण्डरिंग में ठेकेदार रुचि नहीं ले रहे हैं। जिले के कुल 133 करोड आरक्षित मूल्य के ठेकों में से अब तक मात्र 20 करोड चौदह लाख मूल्य की दुकानों का निष्पादन हो पाया है। आबकारी व्यवसाय से जुडे लोगों का कहना है कि प्रति वर्ष तयशुदा वृध्दि की नीति से आबकारी व्यवसायी अब इस व्यवसाय से दूर होने लगे है।
आबकारी विभाग के सहायक संचालक यूएस जावा ने बताया कि इस वर्ष आबकारी ठेकों की इ टेण्डरिंग की जा रही है और जिले के कुल 29 समूहों में से मात्र चार समूहों के लिए ठेकेदारों ने ठेके लिए। इन चार समूहों का गत वर्ष का आरक्षित मूल्य 16 करोड 10 था,जबकि इस बार ये चार समूह 20 करोड 46 लाख रु.में दिए गए। लेकिन इसके अलावा जिले के 25 समूहों का निष्पादन अभी शेष है। इनमें 65 देशी मदिरा तथा 22 विदेशी मदिरा की दुकानें शामिल है। इन 25 समूहों का आरक्षित मूल्य 114 करोड 57 लाख रु. है।
श्री जावा के मुताबिक सैलाना समूह गत वर्ष की तुलना में 29 प्रतिशत अधिक राशि पर निष्पादित हुआ,जबकि रावटी समूह 36 प्रतिशत,नाहरपुरा समूह 22 प्रतिशत अधिक और रिंगनोद समूह गत वर्ष की तुलना में 19 प्रतिशत अधिक राशि में निष्पादित किया गया। उन्होने बताया कि जिन दुकानों और समूहों का निराकरण अभी नहीं हुआ है उनकी इ टेण्डरिंग के लिए 6 मार्च की शाम तक होगी और अगले दिन 7 मार्च को टेण्डर खोले जाएंगे।
श्री जावा ने बताया कि माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए निर्देशों को मुताबिक किसी भी राष्ट्रीय राजमार्ग या प्रांतीय राजमार्ग पर अब आबकारी दुकानें संचालित नहीं की जा सकती है। माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्देश से जिले की कुल 26 दुकानें प्रभावित हुई है। इन दुकानों का मूल्य लगभग 43 करोड रु. है। इन दुकानों को राजमार्ग से हटाने के निर्देश दे दिए गए हैं और इन्हे मार्ग से पांच सौ मीटर की दूरी पर स्थापित करने के निर्देश दिए गए है।
नीति में बदलाव की जरुरत
दूसरी ओर आबकारी व्यवसाय से जुडे सूत्रों का कहना है कि राज्य शासन की आबकारी नीति में लम्बे अरसे से कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। वर्तमान में प्रचलित आबकारी नीति में चालू वर्ष के शुल्क में निश्चित वृध्दि करके पूर्व के ठेकेदार को ही दुकान देने का प्रावधान है। यदि ठेकेदार निश्चित शुल्क पर दुकान या समूह लेने को राजी नहीं होता,तब जाकर टेण्डर बुलाए जाते हैं। इस नीति के कारण आबकारी व्यवसाय प्रभावित हो रहा है। हर साल आबकारी विभाग के अधिकांश ठेकेदार निश्चित शुल्क वृध्दि पर राजी नहीं होते और विभाग को मजबूरन टेण्डर आमंत्रित करना पडते है। टेण्डर आमंत्रित किए जाने के बावजूद शासन के इच्छानुसार भाव नहीं आते है और ठेकों का निष्पादन टलता जाता है। आखिरकार थकहार कर आबकारी विभाग कम दरों पर ठेके देने को राजी हो जाता है। इस पूरी प्रक्रिया में ठेकों की प्रक्रिया लम्बी खींचती रहती है,जिससे शासन को आर्थिक हानि उठानी पडती है। यहीं नहीं अनेक दुकानों का कोई ठेका हीं नहीं लेता और इन दुकानों का संचालन शासन को ही करना पडता है। इसमें भी शासन को आर्थिक हानि उठाना पडती है। आबकारी ठेकेदारों का कहना है कि उच्चतम न्यायालय द्वारा हाईवे की दुकानों को हटाने का निर्देश दिए जाने से भी कारोबार में भारी गिरावट आना तय है। एक ओर शासन ठेकों की दरों में बीस प्रतिशत वृध्दि कर रही है और दूसरी ओर व्यवसाय में कमी होती जा रही है। ऐसे में ठेकेदार,ठेके लेने में रुचि नहीं दिखा रहे है।