हाइकोर्ट से बडी एसडीएम कोर्ट,हाईकोर्ट द्वारा बेदखली के स्पष्ट आदेश पर भी हो रही है सुनवाई
रतलाम,22 फरवरी (इ खबरटुडे)। और कहीं हो ना हो,रतलाम में एसडीएम कोर्ट,हाईकोर्ट से भी बडी कोर्ट है। यह चौंकाने वाला तथ्य एसडीएम कोर्ट में चल रहे एक प्रकरण से साबित हो रहा है। जिस मामले में हाईकोर्ट बेदखली का स्पष्ट आदेश जारी कर चुका है,उसी मामले में एसडीएम कोर्ट बेदखली के लिए दोबारा सुनवाई कर रही है।
यह अनोखा मामला नगर निगम स्वामित्व की ज्योति लाज की बेदखली का है। उच्च न्यायालय की इन्दौर खण्डपीठ के न्यायमूर्ति एससी शर्मा 30 अक्टूबर 2014 को ज्योति लाज के प्रोप्राइटर ज्योति कुमार जैन द्वारा दायर याचिका का निराकरण करते हुए स्पष्ट आदेश दे चुके है कि उक्त लाज की लीज समाप्त हो चुकी है इसलिए नगर निगम इसका रिक्त आधिपत्य प्राप्त करने के लिए स्वतंत्र है। इसी याचिका के निराकरण में न्यायमूर्ति एससी शर्मा ने बिजली और जलकर की बकाया राशि की वसूली के लिए भी नगर निगम को उचित कार्यवाही करने की स्वतंत्रता दी है। इतना ही नहीं याचिका के निराकरण में याचिकाकर्ता पर दो हजार रु.का अर्थदण्ड भी आरोपित किया गया है।
माननीय उच्च न्यायालय के इतने स्पष्ट आदेश के बावजूद यह मामला पिछले तीन सालों से रतलाम शहर एसडीएम सुनील झा के न्यायालय में लोक परिसर बेदखली अधिनियम के तहत परिसर की बेदखली के लिए प्रकरण विचाराधीन है। मजेदार तथ्य यह भी है कि एसडीएम न्यायालय में विचाराधीन प्रकरण में नगर निगम की ओर से प्रस्तुत वाद में उच्च न्यायालय के फैसले की प्रति भी पेश की गई है। विधि की जानकारी रखने वालों के लिए यह मामला अब तक का सबसे अधिक आश्चर्यजनक मामला है। इस मामले को विचारण में लेकर एसडीएम कोर्ट ने यही साबित किया है कि एसडीएम कोर्ट के अधिकार हाईकोर्ट से भी अधिक है।
कब्जेदार को लाभ दिलाने का षडयंत्र
यह अनोखी कहानी इस बात का प्रमाण है कि भ्रष्टाचार हावी हो,तो नियम कानूनों का कोई महत्व नहीं होता। हाईकोर्ट के स्पष्ट आदेश के बाद जहां नगर निगम को तुरंत ज्योति लाज का कब्जा प्राप्त करना था,वहीं तत्कालीन अधिकारियों ने कब्जेदार को लाभ दिलाने के लिए एक नया रास्ता खोजा। उन्होने उच्च न्यायालय के निर्णय की उटपटांग व्याख्या करते हुए इस मामले को फिर से एसडीएम कोर्ट में प्रस्तुत कर दिया,ताकि यह मामला कई वर्षों तक लम्बित रहे और इस अवधि में ज्योति लाज पर अवैध कब्जा बरकरार रहे। नगर निगम के इस षडयंत्र में एसडीएम शहर ने भी अपनी भूमिका निभाई। यह तथ्य सामने होते हुए कि मामले में हाईकोर्ट द्वारा अंतिम निर्णय किया जा चुका है,एसडीएम ने बडी ही चतुराई से प्रकरण का विचारण प्रारंभ कर दिया। पिछले तीन सालों से यह खेल निरन्तर जारी है। कानून के जानकारों का कहना है कि कानून का इससे बडा मखौल आज तक नहीं उडाया गया होगा। विधि के जानकारों का कहना है कि किसी भी प्रकरण के विचारण के दौरान यदि पीठासीन अधिकारी को यह जानकारी मिल जाती है कि उक्त प्रकरण में किसी वरिष्ठ न्यायालय द्वारा पूर्व में ही निर्णय दिया जा चुका है,तो उसे प्रकर की सुनवाई तुरंत रोक देना चाहिए। लेकिन एसडीएम कोर्ट में तो पहले दिन से यह तथ्य रेकार्ड पर था कि हाईकोर्ट मामले का निराकरण कर चुका है,इसके बावजूद भी वे सुनवाई किए जा रहे है। कानून के जानकारों का यह भी कहना है कि आज भी नगर निगम इस प्रकरण को वापस लेकर तुरंत ज्योति लाज का कब्जा ले सकता है।
यह था मामला और हाईकोर्ट का निर्णय
इस पूरे प्रकरण की जानकारी माननीय उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति एससी शर्मा द्वारा दिनांक 30 अक्टूबर 2014 को दिए गए निर्णय से ही मिल जाती है। सौलह पृष्ठ के इस निर्णय में माननीय न्यायमूर्ति ने प्रकरण के सारे तथ्यों का उल्लेख किया है। इस निर्णय में बताया गया है कि ज्योति लाज के प्रोप्राइटर ज्योति कुमार जैन ने नगर निगम आयुक्त और म.प्र. के नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग के सचिव के विरुध्द भारतीय संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत एक याचिका दायर की थी। इस याचिका में ज्योतिकुमार जैन ने माननीय उच्च न्यायालय से बिजली और जल कर की बकाया राशि की वसूली से छूट दिलाने और निरस्त की गई लीज को पुन: यथावत रखने जैसी कई सुविधाएं मांगी गई थी। दूसरी ओर नगर निगम द्वारा दिए गए उत्तर में प्रकरण की सारी वस्तुस्थिति स्पष्ट करते हुए बताया गया था कि नगर निगम द्वारा राज्य शासन की अनुमति लेकर लीज पूर्व में ही समाप्त की जा चुकी है और नगर निगम को बकाया बिलों का लाखों रु. का भुगतान भी प्राप्त करना है। नगर निगम ने हाईकोर्ट को यह भी बताया था कि याचिकाकर्ता स्वच्छ हाथों से न्यायालय में नहीं आया है। उसने कई सारे तथ्य माननीय उच्च न्यायालय से छुपाए है।
याचिका की विस्तार से सुनवाई के बाद माननीय उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ता की याचिका दो हजार रु. के शुल्क के साथ निरस्त करते हुए नगर निगम को निर्देश दिए थे कि वह ज्योति लाज का कब्जा प्राप्त करें और बिलों की बकाया राशि की वसूली के लिए नियमानुसार कार्यवाही करे।