जैन धर्म संसद का समापन 02 अक्टूबर को सर्व-धर्म सभा के रुप में होगा
राष्ट्रीय संगोष्ठी में दूसरे दिन पढ़े गए कई शोध पत्र
रतलाम 01अक्टूबर (इ खबरटुडे)। लोकसन्त, आचार्य श्रीमद् विजय जयन्तसेन सूरीश्वरजी म.सा. की निश्रा में वर्ल्ड जैन कान्फेडेरेशन एवं चेतन्य काश्यप फाउण्डेशन के संयुक्त तत्वावधान में राष्ट्रीय संगोष्ठी के रुप में आयोजित तीन दिवसीय जैन धर्म संसद का समापन 2 अक्टूबर को अहिंसा दिवस पर सर्व-धर्मसभा के रुप में होगा।
इसमें प्रदेश के संस्कृति व पर्यटन राज्यमंत्री सुरेन्द्र पटवा मुख्य अतिथि रहेंगे। प्रख्यात चिन्तक व अन्तरराष्ट्रीय राजनीति विशेषज्ञ डॉ. वेदप्रताप वैदिक व प्रख्यात कवि, लेखक व साहित्यकार प्रो. अजहर हाशमी विशेष आतिथ्य प्रदान करेंगे। अहिंसा दिवस के अवसर पर लोकसन्तश्री के लिखित साहित्य संग्रह जयन्तसेन वाड्मय का विमोचन भी होगा ।
संगोष्ठी के दूसरे दिन विभिन्न सत्रों में अभिधान राजेन्द्र कोष, ‘वर्तमान काल में जैन धर्म की प्रासंगिकता’ तथा ‘जैन धर्म और विज्ञान’ विषयों पर देश के विभिन्न स्थानों से आए शोधार्थियों एवं विद्वान वक्ताओं ने अपने शोध पत्र पढ़े। संगोष्ठी आयोजक व राज्य योजना आयोग उपाध्यक्ष चेतन्य काश्यप, संगोष्ठी संयोजक व एल.डी. इंस्टीट्यूट आफ इंडोलॉजी अहमदाबाद के निदेशक जितेन्द्र बी. शाह व प्रो. सागरमल जैन मंचासीन रहे।
सर्तों की अध्यक्षता डॉ. जयकुमार जलज, प्रो. सेजलबेन शाह एवं प्रो. अभय दोशी ने की। शोधार्थियों एवं विद्वान वक्ताओं ने कहा कि धर्म की बात सभी करते हैं, लेकिन शाब्दिक चर्चाओं से कुछ नहीं होता। इसे व्यवहार में लाना जरुरी है । भय, आतंक और युद्ध जैसी वैश्विक समस्याओं का समाधान जैन परम्पराओं में है, लेकिन यह कह देने भर से काम नहीं चलेगा । अहिंसा, अपरिग्रह और अनेकान्त की इन परम्पराओं को जीवन में उतारना पड़ेगा।
जैन दर्शन दुनिया का मॉर्डन दर्शन है । इसमें आडम्बर और ढकोसला नहीं है । प्रसिद्ध चिन्तक मुजफ्फर हुसैन ने जैन धर्म को 21 वीं सदी का धर्म बताया है। आज का युग विज्ञान का युग है और जैन दर्शन का आचार-विचार भी वैज्ञानिक है। अभिधान राजेन्द्र कोष को लोकोपयोगी बनाने के लिए जनभाषा में परिमार्जित करना होगा।
वक्ताओं ने कहा कि जैन दर्शन में प्राणी मात्र के कल्याण की कल्पना की गई है । विश्व में वैज्ञानिक चेतना का विकास हो रहा है और हर व्यक्ति वैज्ञानिकता के आधार पर जैन सिद्धान्तों को देख रहा है। जैन धर्म आज के युग का सर्वाधिक प्रासंगिक दर्शन है, इसे समझने और पूरी दुनिया को समझाने की आवश्यकता है। अभिधान राजेन्द्र कोष की रचना करने वाले ग्रंथकार राजेन्द्र सूरिजी को नोबल पुरस्कार मिलना चाहिए और इस ग्रंथ को गिनीज बुक में स्थान दिया जाना चाहिए । गुरुदेव राजेन्द्र सूरिजी को सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि रतलाम में प्रकाशित यह ग्रंथ दर्शनीय न रहे, अपितु पठनीय बन जाए। यह कार्य अभिधान राजेन्द्र कोष का गुणगान करने से नहीं होगा, इसके लिए ग्रंथ को परिमार्जित कर जन-जन की भाषा में उपलब्ध करवाना होगा। इस मौके पर डॉ. राजमल जैन ने पॉवर प्रजेंटेशन के माध्यम से ‘जैन धर्म और विज्ञान’ पर प्रकाश डाला। उन्होंने इसरो पर फिल्म का प्रदर्शन भी किया।
संकल्प शक्ति से पूर्ण होते हैं लक्ष्य – मुनिराजश्री
जैन धर्म संसद को सम्बोधित करते हुए मुनिराजश्री निपुणरत्न विजयजी म.सा. ने कहा कि पत्थर पर लोहा, लोहे पर अग्नि, अग्नि पर हवा और हवा पर संकल्प शक्ति से विजयी पाई जा सकती है। संकल्प शक्ति ने दादा गुरुदेव राजेन्द्र सूरिजी कालजयी ग्रंथ अभिधान राजेन्द्र कोष की रचना करवाई। आयोजक चेतन्य काश्यप ने भी संकल्प शक्ति से जैन धर्म संसद का आयोजन कर विश्व धर्म संसद में आए विचार को पूर्ण किया है । मुनिराजश्री ने अभिधान राजेन्द्र कोष को सर्वकालिक ग्रंथ बताते हुए उसे समझने के सूर्त बताए और कहा कि जैन परम्परा अद्भुत है। इसका सार अभिधान राजेन्द्र कोष में छुपा हुआ है ।
मुनिराजश्री चारित्ररत्न विजयजी म.सा. ने कहा कि जैन धर्म एवं जैन दर्शन मानव मात्र के लिए समान मानवीय मूल्यों की स्थापना करता है । व्यक्ति के भीतर अशांति एवं मानसिक तनावों को यदि दूर कर मानव के अस्तित्व को बनाए रखने के लिए जैन दर्शन को समझना आवश्यक है। विश्व धर्म के रुप में आधुनिक युग में जैन धर्म एवं दर्शन की प्रासंगिकता है। यह दर्शन आज की प्रजातांत्रिक शासन व्यवस्था एवं वैज्ञानिक सापेक्षवादी चिन्तन के भी अनुरूप है।