आरक्षण की नीति पर पुनर्विचार हो, जरूरत और समयसीमा पर बने कमिटी: मोहन भागवत
नयी दिल्ली,21 सितम्बर (इ खबरटुडे)। आरक्षण पर राजनीति और उसके दुरुपयोग का आरोप लगाते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने सुझाव दिया है कि एक समिति बनाई जानी चाहिए जो यह तय करे कि कितने लोगों को और कितने दिनों तक आरक्षण की आवश्यकता होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि ऐसी समिति में राजनीतिकों से ज्यादा ‘सेवाभावियों’ का महत्व होना चाहिए।
गुजरात में पाटीदार और राजस्थान में गुर्जर सहित कई क्षेत्रों में कई जातियों को आरक्षण देने की बढ़ती मांगों की पृष्ठभूमि में संघ के संरसंघचालक मोहन भागवत ने अपने संगठन के मुखपत्रों पांचजन्य और आर्गेनाइजर में दिए साक्षात्कार में यह सुझाव दिया है।
उन्होंने कहा कि संविधान में सामाजिक रूप से पिछड़े वर्ग पर आधारित आरक्षण नीति की बात है, तो वह वैसी हो जैसी संविधानकारों के मन में थी। वैसा उसको चलाते तो आज ये सारे प्रश्न खड़े नहीं होते। उसका राजनीति के रूप में उपयोग किया गया है। उन्होंने कहा कि हमारा कहना है कि एक समिति बना दो, जो राजनीति के प्रतिनिधियों को भी साथ ले, लेकिन इसमें चले उसकी जो सेवाभावी हों। उनको तय करने दें कि कितने लोगों के लिए आरक्षण आवश्यक है। और कितने दिनों तक उसकी आवश्यकता पड़ेगी।
दबाव की राजनीति के बारे में एक सवाल के जवाब में मोहन भागवत ने कहा कि प्रजातंत्र की कुछ आकांक्षाएं होती है लेकिन दबाव समूह के माध्यम से दूसरों को दुखी करके इन्हें पूरा नहीं किया जाना चाहिए। सब सुखी हों, ऐसा समग्र भाव होना चाहिए। उन्होंने कहा कि देश के हित में हमारा हित है, ये समझकर चलना समझदारी है। शासन को इतना संवेदनशील होना चाहिए कि आंदोलन हुए बिना समस्याओं को ध्यान में लेकर उनके हल निकालने का प्रयास करे। सत्ता और समाज के बीच संघर्ष पर सरसंघचालक ने कहा कि सत्ता और समाज के आपसी सहयोग से देश बना है, इसके संघर्ष से नहीं। एकात्मक मानवदर्शन बिल्कुल व्यवहारिक बात है, इसे धरती पर उतारने के लिए हमको और कुछ करना पड़ेगा। जब तक हम प्रयोग द्वारा वह नहीं दिखा पाते तब तक इसकी व्यवहारिकता सिद्ध नहीं कर सकते।
किसानों और उद्योगपतियों के हितों के टकराव के बारे में एक सवाल के जवाब में भागवत ने कहा कि अभी जो प्रकृति है कि किसान हित करने में किसानों का हित है, उद्योगों का हित करने में ही उद्योगों का हित है, यह एकांगी विचार पश्चिम की देन है। उन्होंने कहा कि हमने यह विचार किया है कि यह सब ठीक से चलना चाहिए। इसके लिए कृषकों के हित और उद्योगों के हित समान रूप से देखे जाएं। हम उद्योग प्रधान या कृषि प्रधान जैसा कोई विशेषण नहीं लेना चाहते हैं। हमें उद्योग भी चाहिए और कृषि भी। भागवत कहा कि हम जब किसी भी दर्शन या विचारधारा की बात करते हैं तो केवल भारत के लिए नहीं बल्कि पूरी सृष्टि के हिसाब से विचार करते हैं। डॉ हेडगेवार ने कांग्रेस के अधिवेशन में भारत के लिए स्वतंत्र एवं विश्व को पूंजीवाद से मुक्त कराने संबंधी प्रस्ताव दिया था जो कांग्रेस को स्वीकार्य नहीं हुआ।
उन्होंने कहा कि भारत की समस्या के संदर्भ में लोगों के सामने अपने लक्ष्य ठीक से स्पष्ट होने चाहिए। एकात्म मानव दर्शन भारत के पुरूषार्थ को प्रकट करने वाला विचार है। संघ प्रमुख ने कहा कि दीनदयालजी ने एकात्म मानव दर्शन के माध्यम से धर्म संकल्पना पर आधारित एक मौलिक योगदान सम्पूर्ण विश्व को दिया था। विदेशी अवधारणा के आधार पर आज तक जो तंत्र बने हैं, वही अपने देश में भी चलता है और यह ‘फैशन आफ द डे’ जैसा चल रहा है। उन्होंने कहा कि उसकी अच्छी बातों को लेकर उसमें अपनी मिट्टी के इनपुट डालकर हम भारत का कौन सा नया मॉडल बना सकते हैं, ये तंत्र चलाने वालों को सोचना पड़ेगा। शिक्षा की वर्तमान व्यवस्था पर एक सवाल के जवाब में मोहन भागवत ने कहा, कि शिक्षा नीति में बहुत कुछ बदलने की जरूरत है। शिक्षा नीति का प्रारंभ शिक्षक से होना चाहिए। योग्य शिक्षक चाहिए तो शिक्षकों को भी वही प्रेरण देनी पड़ेगी। शिक्षा में सत्ता पर बैठे लोगों का हस्तक्षेप कम हो। इस बीच, भागवत ने आज दोपहर बेंगलुरु के लिए रवाना होने से पहले कई बैठकें कीं। वह पिछले पांच दिनों से जोधपुर में थे। मीडिया को हालांकि यहां आरएसएस मुख्यालय और अन्य स्थानों पर उनके सभी कार्यक्रमों से दूर रखा गया।
आरएसएस के सूत्रों ने बताया कि उनकी बैठक का उद्देश्य जिले के वरिष्ठ कार्यकर्ताओं के साथ सलाह-मशविरा करके विभिन्न समुदायों के बीच जमीनी स्तर पर संगठन को मजबूत करने की संभावना को तलाशना था। इसके अलावा स्वयंसेवकों को सांगठनिक मूल्यों की शिक्षा देना था। एक सूत्र ने बताया कि स्वयंसेवकों को आखिरी दिन अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि कैसे चरित्र निर्माण के जरिए राष्ट्र निर्माण किया जा सकता है। सूत्रों ने बताया कि आरएसएस के मुख्य मूल्यों पर जोर देते हुए 2743 स्वयंसेवकों से भागवत ने राष्ट्र और संस्कृति के संरक्षण के लिए काम करने का आह्वान किया। इन स्वयंसेवकों को सुबह आदर्श विद्या मंदिर में आरएसएस प्रमुख का एक घंटे का भाषण को सुनने के लिए आमंत्रित किया गया था। सूत्रों ने कहा कि सामाजिक सौहार्द और परिवारों के बंटने की प्रवृत्ति में वृद्धि के मद्देनजर परिवार प्रबंधन के आरएसएस के एजेंडा को रखते हुए भागवत ने मानवीय गुणों को आत्मसात करने और मजबूत चरित्र के निर्माण के लिए काम करने पर जोर दिया। आरएसएस प्रमुख को उद्धृत करते हुए उन्होंने कहा कि स्वयंसेवक आरएसएस के बेहद महत्वपूर्ण घटक हैं और समाज के लिए काम करने की उनकी जिम्मेदारी है जो उनके व्यक्तित्व से झलकना चाहिए।