नागपंचमी पर्व पर वर्ष में एक बार भगवान नागचंद्रेश्वर के पट खुलेंगे
उज्जैन,13 अगस्त(इ खबरटुडे)।उज्जैन स्थित श्री महाकालेश्वर मन्दिर के ऊपर नागचंद्रेश्वर मन्दिर के पट साल में एक बार चौबीस घंटे के लिये सिर्फ नागपंचमी के दिन खुलते हैं। 14 अगस्त मंगलवार की रात्रि 12 बजे पट खुलेंगे। 14 अगस्त मंगलवार की रात्रि 12 बजे विशेष पूजा अर्चना के साथ भक्तों के लिये मन्दिर के पट खुल जायेंगे और नागचंद्रेश्वर महादेव के लगातार चौबीस घंटे दर्शन होंगे। मन्दिर के पट शुक्रवार 15 अगस्त बुधवार की रात्रि 12 बजे बन्द होंगे। इस दौरान हजारों श्रद्धालु भगवान नागचंद्रेश्वर के दर्शन करेंगे। इसे देखते हुए प्रशासन ने व्यापक व्यवस्थाएं सुनिश्चित की हैं।
-श्री नागचन्द्रेश्वर भगवान की होगी त्रिकाल पूजा
नागपंचमी पर्व पर भगवान श्री नागचन्द्रेश्वर की त्रिकाल पूजा होगी, जिसमें 14 अगस्त रात्रि 12 बजे पट खुलने के पश्चात महंत श्री प्रकाशपुरी जी एवं कलेक्टर एवं अध्यक्ष श्री महाकालेश्वर मंदिर प्रबन्ध समिति श्री मनीष सिंह द्वारा पूजन किया जावेगा। शासकीय पूजन 15 अगस्त अपरान्हः 12 बजे होगा। श्री महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति द्वारा 15 अगस्त को श्री महाकालेश्वर भगवान की सायं आरती के पश्चात पूजन किया जायेगा।
-नागपंचमी 15 अगस्त को लाखों श्रद्धालु लेंगे दर्शन-लाभ
नागपंचमी पर्व पर श्री महाकालेश्वर मन्दिर परिसर में वर्ष में एक बार खुलने वाले श्री महाकाल मन्दिर के दुसरे तल पर स्थित श्री नागचंद्रेश्वर के पूजन-अर्चन के लिये लाखों श्रद्धालु उज्जैन पहुंचेंगे। हिंदू धर्म में सदियों से नागों की पूजा करने की परंपरा रही है। हिंदू परंपरा में नागों को भगवान का आभूषण भी माना गया है। भारत में नागों के अनेक मंदिर हैं, इन्हीं में से एक मंदिर है उज्जैन स्थित नागचंद्रेश्वर का, जो की उज्जैन के प्रसिद्ध श्री महाकालेश्वर मंदिर की तीसरी मंजिल पर स्थित है।
श्री नागचंद्रेश्वर मंदिर में 11 वीं शताब्दी की एक अद्भुत प्रतिमा है। प्रतिमा में फन फैलाए नाग के आसन पर शिव-पार्वती बैठे हैं। माना जाता है कि पूरी दुनिया में यह एकमात्र ऐसा मंदिर है, जिसमें विष्णु भगवान की जगह भगवान भोलेनाथ सर्प शय्या पर विराजमान हैं।
मंदिर में स्थापित प्राचीन मूर्ति में श्री शिवजी, माँ पार्वती श्रीगणेश जी के साथ दशमुखी सर्प शय्या पर विराजित हैं साथ में दोनो के वाहन नंदी एवं सिंह भी विराजित है। शिवशंभु के गले और भुजाओं में भुजंग लिपटे हुए हैं। कहते हैं यह प्रतिमा नेपाल से यहां लाई गई थी। उज्जैन के अलावा दुनिया में कहीं भी ऐसी प्रतिमा नहीं है।