सिंहस्थ 2004-2016/ व्यवस्थाओं में पिछड़े, दिल जीतने में आगे
धार्मिक सद्भाव का माहौल ऐसा की आपदा में मस्जिदों में पनाह मिली श्रद्धालुओं को
उज्जैन,20मई (इ खबरटुडे/नईम कुरैशी)। सिंहस्थ 2016 और 2004 को लेकर व्यवस्थाओं पर तर्क सम्मत बातें शुरू हो चुकी हैं। 2004 में सैंंकड़ों करोड़ खर्च में व्यवस्थाएं बेहतर थी तो हजारों करोड़ खर्च होने पर भी 2016 सिंहस्थ मेें न संत संतुष्ट है न श्रद्धालु। इसके विपरीत सिंहस्थ 2016 दिल जीतने में आगे रहा हैं। आपदा के समय श्रद्धालुओं को मस्जिदों में सहारा मिला तो मुस्लिम धर्मावलंबी आगे आकर सेवा कार्य में लगे हुए हैं। इसी से यह सिंहस्थ सद्भाव का सिंहस्थ कहला रहा हैं।
सिंहस्थ 2004 के शुरू होने से पूर्व फरवरी 2004 में सिंहस्थ शहर उज्जैन में अल्लाह करीम मस्जिद विवाद हुआ था। शहर को दो दिन कफ्र्यू देखना पड़ा था। इसके बावजूद भी सिंहस्थ के समय सबकुछ सामान्य रहा। सिंहस्थ 2016 में धार्मिक सद्भाव की स्थिति ऐसी रही कि मुस्लिम समाज की ओर से भैरवगढ़ मदरसे में अखाड़ा प्रमुखों का सम्मान किया गया तो मुस्लिम समाज के नवयुवकों का दल मौलाना मोज घाट पर श्रद्धालुओं की सुरक्षा में तैनात हैं। यूं तो मुस्लिम क्षेत्रों में श्रद्धालुओं के लिए सैंकड़ों छबीले (प्याऊ) लगाई गई हैं। श्रद्धालुओं को आग्रह पूर्वक जल ग्रहण करवाया जा रहा हैं। सबसे ज्यादा बुरा वक्त श्रद्धालुओं के लिए 5 और 9 मई को आया जब बारिश और आंधी का कहर बरसा। ऐसी स्थिति में श्रद्धालुओं के लिए तोपखाना रोड पर स्थित मस्जिद सोदागरान के दरवाजें मौलाना आसीफ ने खोल दिए। रात भर श्रद्धालुओं ने यहां शरण पाई और सुबह फजर की नमाज की अजान के साथ उनकी आंखे खुली। मस्जिद के दरवाजें अब भी श्रद्धालुओं के लिए खुले हुए हैं। कई क्षेत्रों में मुस्लिम धर्मावलंबी लंगर भी बांट रहे हैं। इससे भी बढक़र सेवा का जुनून उस समय देखने को मिला जब विकलांग मुस्लिम केडीगेट कसाईवाड़ा निवासी मुख्तियार कुरैशी श्रद्धालुओं को सही रास्ता बताने के साथ बुजूर्ग महिला-पुरूषों विकलांग श्रद्धालुओं को अपनेे तीन पहिया वाहन पर बैठाकर उनके पते पर पहुंचाने में लगे हुए हैं। वे केडीगेट से रेलवे स्टेशन, नानाखेड़ा बस स्टेंड और मंगलनाथ क्षेत्र में श्रद्धालुओं को सेवाभाव से पहुंचा रहे हैं। जब उनसे पूछा गया यह सेवा क्यों? तो उनका जवाब था। खुदा के बंदों की सेवा से सवाब मिलता हैं। इससे ज्यादा कुछ नहीं कहना। उनके जवाब को सुनने के बाद यह तय हो गया कि धर्म के ठेकेदार चाहे जितनी खाई खोद दे मानवता के धर्म की राह पर चलने वालों को कोई नहीं बांट सकता।