संस्कृति व परम्पराओं में समाई प्रकृति…
–वैदेही कोठारी
हमारी भारतीय संस्कृति और परम्पराएं हमेशा से ही प्रकृति की पूरक रही है। आजकल हम जिस तरह से आंख मूंद कर पश्चिमी सभ्यता और आधुनिकरण की ओर भाग रहे है। इस भागदौड़ वाली जिंदगी में कहीं न कहीं हमारे हाथों से हमारी संस्कृति और परम्पराएं रेत की तरह छूटती जा रही हैं। आज हमारे समाज में महिला और पुरुष दोनो ही बाहरी क्षेत्रों में इतने व्यस्त हो गए, कि उन्हे यह भी याद नही रहता है, कौनसी तिथि चल रही है या कौनसे त्यौहार आने वाले है। त्यौहारों का महत्व क्या होता है? आजकल की नई पीढ़ी तिथि और त्यौहारों को बहुत कम जानती है। कुछ लोग तो ऐसे भी है, जिन्हे सिर्फ होली,दिवाली,राखी ही याद रहती है। बाकी के तीज त्यौहारो की कोई जानकारी नही है।
कहते है, महिलाएं दो घरों को संवारती है। हमारी संस्कृति और परम्पराओं का संवहन करने वाली होती है। किंतु आज की नई पीढ़ी तो आधुनिक चमक दमक की ओर अत्यधिक आकर्षित होती जा रही है। वह स्वयं को आधुनिक बनाने के लिए, दौहरे जीवन जीने के लिए मजबूर होती जा रही है। नई पीढी दौहरे जीवन चक्र में स्वयं को इस तरह उलझा चुकी है, कि अपनी संस्कृति और परम्पराओं को भूलती जा रही है। आज हमारी कई परम्पराएं व संस्कृति समाप्ति की कगार पर आ चुकी है। आज बहुत से घरों में तुलसी,पीपल,वट पूजन समाप्त हो गया है। कुछ वर्षो पहले तक प्रत्येक घर में तुलसी का पौधा हुआ करता था। त्यौहारो के दिनों में घर के तरवाजों पर आम के पत्तों का तोरण लगाया जाता था,घर के बाहर रंगोली बनाई जाती थी, आज ये सब कुछ, गिने चुने घरों में देखने को मिलते है। आजकल की युवतियां नौकरी और घर दोनो संभालने के कारण वह घर की परम्पराओं को पूर्णत: निर्वाह नही कर पा रही है। आने वाले कुछ वर्षो में हमारे तीज,त्यौहार परम्पराएं सभी कुछ समाप्त होने की कगार पर आ जाएगें। इसी वजह से हमारी संस्कृति,संस्कार ,परम्परा साथ ही प्रकृति का भी हृास हो रहा है।
हमारे भारतीय तीज त्यौहार और व्रत सभी प्रकृति से जुड़े है। जैसे महिलाओं के विशेष महत्वपूर्ण तीज-त्यौहार वट पूर्णिमा,हरताालिका तीज,हरियाली अमावस्या,तुलसी पूजन,पीपल की पूजा,आम व केले के पत्तों को पूजन में रखना। इसी तरह सांप,गाय-बेल अन्य जानवरों को भी पूजा जाता है। सूर्य,चंद्रमा,धरती,वायु,गंगा,नर्मदा,यमुना नदियों और कैलाश पर्वत, गौवर्धन पर्वत आदि हमारे हिंदु संस्कृति में पूजे जाते हैं। हिंदु धर्म में प्रकृति को देवी रुप में प्रतिस्थापित किया है।
वट पूर्णिमा
भारतीय हिंदु महिलाओं का विषेश त्यौहार माना जाता है। इस त्यौहार में महिलाएं वट(बरगद,बड़,) की पूजा करती है। रक्षा सूत पेड़ पर लपेटती है। वट की आयु सर्वाधिक होती है। इसलिए इसे अक्षय वट भी कहते है, इसका आकार अत्यधिक बड़ा होने के कारण यह 24 घंटे अत्यधिक मात्रा में आक्सिजन देता है। इस पेड़ पत्ते,जड़,तना,फल,फूल,सभी में औषधिय गुण भरे पड़े है।
हरतालिका तीज
यह त्यौहार भी पूर्णत:प्रकृति से जुड़ा हुआ है। इस तीज पर भगवान शिव पार्वती को मिट्टी से मूर्त रूप देकर उनको पूजा जाता है। इनकी पूजन में 16 तरह के फूल पत्ते और फल चड़ाए जाते है। इस तीज को मनाने का उद्देश्य सभी की मंगल कामना और प्रकृति हरी-भरी रहैं।
पीपल पूजन का भी अपना महत्व है। कुछ वर्षो पहले तक अधिकतर लोग पीपल पूजा करते थे। हिंदु धर्म के अनुसार पीपल पूजन करने से शारीरिक, मानसिक परेशानिया दूर होती है। किंतु अब पीपल दिखना भी दुलर्भ हो गया है। मनुष्य पांच तत्वों से मिलकर बना हैं। वायु,जल,अग्नि,आकाश,धरती। आज ये पांचो तत्व अत्यंत प्रदूषित हो चुके हैं। अगर ये पांचो तत्व स्वच्छ रहेंगे, तो हम भी स्वस्थ रहेंगे।
जब से प्रकृति का क्षय हुआ है, तब से हम विभिन्न प्रकार की आपदाओं का सामना कर रहे हैं। जैसे हाल ही में एम्फन चक्रवात आया,बारिश में बादलों का फट जाना, सुखा पड़ जाना या कोई महामारी आना। हाल ही हम सभी लोग कोरोना महामारी से जूझ रहे है। इस महामारी की अभी तक कोई वेक्सीन भी नही बन पा रही है। इससे बचाव के लिए स्वयं की प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाना व प्रकृति के साथ रहना ही इस महामारी का इलाज है,
मानव जीवन तभी सुखमय व सफल है,जब वह प्रकृति के साथ हैं। हमारे वेद-पुराणों में भी प्रकृति को पूजनीय बताया गया हैं। प्रकृति को हमारे धर्म व संस्कृति से जोडऩे का उद्देश्य ही यही था। ताकि हम प्रकृति की रक्षा कर सके। अगर हमें प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षित रहना हैं तो,शुद्ध साफ पर्यावरण बनाए रखना होगा। साथ ही हमारी संस्कृति और परम्पराओं को पुन: शुरू करना होगा जो कि हम भूल चुके है।
e-mail-vaidehikothari09@gmail.com