शिक्षकों में अभियान के प्रति समर्पण जरूरी – प्रमुख सचिव
स्कूल चलें हम अभियान की समीक्षा की
रतलाम 28 जून (इ खबरटुडे)। जिले के दौरे पर आए प्रमुख सचिव अनुसूचित जाति कल्याण अशोक शाह ने कहा है कि स्कूल चलें हम अभियान केवल तभी अपने उद्देश्यों में कामयाब हो सकता है जब शिक्षकों में इसके लिए जरूरी समर्पण और प्रतिबध्दता हो। उन्होंने कहा कि यह जरूरी है कि शिक्षक इस सत्य को अंगीकार करें कि इस अभियान से उन्हे आत्म-प्रेरणा से जुडना होगा और मात्र सरकारी आदेश के पालन जैसा रवैया फलदायी नहीं होगा।
श्री शाह शुक्रवार को यहां जिले में चल रहे स्कूल चलें हम अभियान की समीक्षा कर रहे थे। उन्होंने कहा कि रतलाम में शिक्षकों को पुरजोर प्रयास कर इस अभियान का संचालन करना चाहिए ताकि अभियान का उद्देश्य पूरा हो सके। इसके लिए उन्हें भागीरथ प्रयास करने होंगे ताकि दूसरे जिले भी अभियान को रतलाम में मिलने वाली कामयाबी को देखते हुए अनुकरण के लिए प्रेरित हों। श्री शाह ने कहा कि बच्चों के शिक्षकों के साथ आत्मीय रिश्ते होना चाहिए। केवल तभी बच्चे शिक्षकों की बात सुनेंगे और मानेंगे। प्रमुख सचिव ने कहा कि शिक्षकों को इस अभियान में केवल डयूटी निभाने की मानसिकता से मुक्त होना होगा और आने वाली पीढ़ी के लिए कुछ सार्थक कर गुजरने की जिम्मेदारी की अहमियत समझनी होगी। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि शिक्षकों की सक्रिय भूमिका का सकारात्मक असर जरूर होगा। श्री शाह ने कहा कि शिक्षकों को दायित्व-बोध के साथ पूरी ताकत से इस अभियान में भागीदारी करनी चाहिए।
बैठक को सम्बोधित करते हुए प्रमुख सचिव श्री शाह ने कुछ गहरे सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि हालाकि स्कूल चलें हम अभियान बच्चाें के लिए चलाया जा रहा है किन्तु शिक्षकों को भी तत्परता से स्कूल पहुंचना होगा तभी अभियान का उद्देश्य हासिल किया जा सकेगा। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि सभी शिक्षकों को स्कूल पहुंचने की अनिवार्यता का एहसास होना चाहिए। केवल तभी बच्चों से स्कूल आने की अपेक्षा न्यायसंगत होगी। श्री शाह ने बैठक में मौजूद विभागीय अधिकारियों से उनके कर्तव्यों के बारे में सटीक सवाल किए। उन्होंने कहा कि यह स्थिति उचित नहीं कहीं जा सकती कि हमे शिक्षकों को स्कूल जाने के लिए प्रेरित करना पड़े। उन्होंने शिक्षकों की स्कूलों में उपस्थिति और बच्चों की पढ़ाई के प्रति उनकी रूचि की निरन्तर मॉनिटरिंग की जरूरत बताई।
प्रमुख सचिव श्री शाह ने कहा कि यह आकलन किया जाना जरूरी है कि गत वर्ष इस अभियान में प्रवेशित होने के बाद कितने बच्चों ने अपनी पढ़ाई जारी रखी है। तभी हमें यह ज्ञात हो सकेगा कि यथार्थ के धरातल पर हमारे प्रयास कितने प्रभावी रहे हैं। इस अभियान को एक पारम्परिक रीति के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए वरन इसे आने वाली पीढ़ी को शिक्षित बनाने के लिए किये जा रहे पवित्र प्रयासों में योगदान के रूप में देखा जाना चाहिए। जरूरत होने पर शिक्षकों को गांव जाकर बच्चों के अभिभावकों को समझाकर बच्चों को स्कूल में दाखिला दिलाने की पहल करनी चाहिए। श्री शाह ने गृह प्रवेश का उदाहरण देते हुए कहा कि गृह प्रवेश में घर के अन्दर प्रवेश किया जाता है, फिर बच्चा ही स्कूल में दाखिले के बाद स्कूल छोडकर वापस क्यों आ जाता है। उन्होंने कहा कि हमें इन सवालों के जवाब पूरी ईमानदारी से तलाशने होंगे कि आखिर बच्चे को उसके स्कूल में आनंद क्यों नहीं आ रहा है। जब तक फील्ड के लोग स्वमूल्यांकन नहीं करते तब तक स्थिति में सुधार की आशा नहीं की जा सकती। विभागीय अधिकारियों और शिक्षकों को भी
इस अभियान को सिर्फ एक और जिम्मेदारी या डयूटी मानकर नहीं चलना चाहिए वरन् इसे राष्ट्र निर्माण में योगदान की तरह अंगीकार किया जाना चाहिए। प्रमुख सचिव ने कहा कि इस अभियान के प्रति सौंपे या थोपे गये कार्य की मानसिकता से काम करने पर वांछनीय परिणाम नहीं मिल सकेंगे। हमे स्वप्रेरणा से ही काम करना होगा तभी हम बेहतर नतीजों की उम्मीद कर सकते हैं।
बैठक में कलेक्टर डॉ संजय गोयल ने कहा कि अभियान को एक जनान्दोलन का स्वरूप देने की दिशा में कदम उठाए गए है। शिक्षकगण पूरे मनोयोग से सकारात्मक दृष्टिकोंण के साथ काम करेंगे तो अच्छे परिणाम हासिल होना सुनिश्चित है। उन्होंने बताया कि मां सरस्वती पोर्टल के जरिए शिक्षकों की स्कूलों में समय पर उपस्थिति सुनिश्चित करने के प्रयास फलदायी साबित हुए है। कलेक्टर ने विश्वास दिलाया कि अभियान की मूल मंशा के अनुरूप जिले में कार्य सुनिश्चित किया जाएगा। उन्होंने कहा कि हमारी कोशिश होगी कि हमारी टीम बेहतर से बेहतर काम करे और हम लक्ष्य को हासिल कर सकेें।
बैठक में सीईओ जिला पंचायत अर्जुनसिंह डावर, जिला शिक्षा अधिकारी जे.के. शर्मा, सहायक आयुक्त आदिवासी विकास श्रीमती मधु गुप्ता, विकासखण्ड शिक्षा अधिकारी तथा शिक्षण संस्थाओं के प्राचार्यगण उपस्थित थे।