December 24, 2024

व्यवस्था समतायुक्‍त और शोषणमुक्त हो-आरएसएस सरसंघचालक मोहन भागवत

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मानवता के लिये होगा सिंहस्थ का सार्वभौम संदेश-मुख्यमंत्री श्री चौहान
निनौरा-उज्जैन में अंतर्राष्ट्रीय विचार महाकुंभ आरंभ 
उज्जैन,12 मई(इ खबरटुडे)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा है कि व्यवस्था समतायुक्त और शोषणमुक्त होनी चाहिये। जब तक सभी को सुख प्राप्त नहीं होता तब तक शाश्वत सुख दिवास्वप्न है। विज्ञान जितना प्रगट हो रहा है उतना आध्यात्म के निकट आ रहा है।

श्री भागवत उज्जैन के समीप निनोरा में सिंहस्थ का सार्वभौम संदेश देने के लिए आज से शुरू हुए तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय विचार महाकुंभ के शुभारंभ सत्र को संबोधित कर रहे थे।
श्री भागवत ने कहा कि भारत की परंपरा के अनुसार सारे जीव सृष्टि की संतानें हैं। मनुष्यता का संस्कार देने वाली सृष्टि है। मध्यप्रदेश में कुंभ की वैचारिक परंपरा को पुनर्जीवित किया जा रहा है। आज दुनियाभर के चिंतक, विचारक एक हो गये हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा कहा गया है कि विकास करते समय प्रत्येक देश की प्रकृति का विचार करना चाहिए। ऐसा ही परिवर्तन दुनिया की वैचारिकता में दिखाई दे रहा है। संपूर्ण अस्तित्व की एकता को मानने की ओर दुनिया के निष्पक्ष चिंतकों की प्रवृत्ति हो रही है। विविधता को स्वीकार किया जा रहा है। संघर्ष के बजाय अब समन्वय की ओर जाना पड़ेगा। आज का विज्ञान भी इस परिवर्तन का एक कारण है। सनातन परंपरा में इन सत्यों की बहुत पहले से जानकारी है।
आज के परिप्रेक्ष्य में हमें सनातन मूल्यों के प्रकाश में विज्ञान के साथ जाना होगा। यह करके विश्व की नई रचना कैसी हो, इसका मॉडल अपने देश के जीवन में देना होगा। तत्व ज्ञान और विज्ञान दोनों के आधार चिंतन है। विज्ञान और आध्यात्म दोनों सत्य को जानने के दो तरीके हैं। स्वामी विवेकानंद ने कहा है कि धर्म का मूल्यांकन विज्ञान की कसौटी पर करना चाहिए। आज की समस्याओं का समाधान विज्ञान और आध्यात्म दोनों के समन्वय से करना होगा। उन्होंने कहा कि सुख तो बढ़े, पर नीति की हानि नहीं हो, इसका ध्यान रखना भी जरूरी है।
श्री भागवत ने कहा कि मुक्ति के लिये ज्ञान, भक्ति और कर्म की त्रिवेणी जरूरी है। धर्म के चार आधार हैं सत्य, करूणा, स्वच्छता और तपस। मानव-कल्याण के बिना सृजनहीन अविष्कार व्यर्थ है। आध्यात्म और विज्ञान दोनों का सहारा लेकर चिंतन करना होगा। चिंतन के बाद आचरण करना होगा। चिंतन आचरण में आना चाहिए, तभी उसका अर्थ है। जिस विचार को व्यवहार में नहीं उतारा जा सके उसकी मान्यता नहीं होती। नीतियों के आधार पर मानक उदाहरण खड़े करना होगा।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने स्वागत भाषण में विचार महाकुंभ आयोजित करने के उददेश्य की चर्चा करते हुए बताया कि कुंभ का संबंध ही विचार-मंथन से है। उन्होंने कहा कि संतों की विचार प्रक्रिया से कल्याणकारी राज्य का कल्याण हो, यही उददेश्य है। उन्होंने कहा कि भारत में सभी तरह के विचारों, विचार-पक्रियाओं और दर्शन का आदर किया गया है। सभी को पर्याप्त आदर और सम्मान है। उन्होंने कहा कि आज के समय में सबसे बडी चिंता यह है कि मानव जीवन गुणवत्तापूर्ण कैसे हो। कौन से तरीके और व्यवहार हैं जिनसे मानव जीवन सुखी और अर्थपूर्ण बन सकता है।
उन्होंने कहा कि विज्ञान और आध्यात्मिकता या दोनों के परस्पर मेल से यह संभव है। इसलिये इस पर विचार करना जरूरी है। विज्ञान और अध्यात्म दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। उन्होंने कहा कि ग्लोबल वार्मिंग, परंपरागत खेती, मूल्य आधारित जीवन, धर्म और आध्यात्म जैसे विषयों का वैश्विक महत्व है। इसलिये सिंहस्थ के अवसर पर विचार-मंथन के बाद मानवता के लिये सार्वभौमिक संदेश प्रसारित होगा।
जूना पीठाधीश्वर महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि ने मुख्यमंत्री श्री चौहान को विक्रमादित्य और हर्षवर्धन की परंपरा निभाने वाला मुख्यमंत्री बताते हुए कहा कि वे ऐसे शासक हैं जो भीतर से एक उपासक है।
मनुष्य की दो विशेषता प्रधान हैं – कर्म की स्वायत्तता और चिंतन की स्वतंत्रता
स्वामी अवधेशानंद जी ने कहा कि अगली सदी भारत की सदी है क्योंकि जब पश्चिम की उपभोक्तावादी संस्कृति थक जायेगी तब भारत के आध्यात्मिक नेतृत्व की जरूरत होगी। भारत की भूमि से ही आध्यात्मिक मार्ग निकलेगा जो विश्व का मार्गदर्शन करेगा। उन्होंने कहा कि मनुष्य की दो विशेषता प्रधान हैं – कर्म की स्वायत्तता और चिंतन की स्वतंत्रता। मनुष्य का संकल्प जैसा होगा उसकी सिद्धि भी वैसी ही होगी। संकल्प की पवित्रता से सकारात्मकता आती है। उन्होंने कहा कि पश्चिम की परोपकारी संस्कृति ने मानवता को जड़ता दी है।
वर्तमान समय में परोपकार की प्रवृत्ति पैदा करने की जरूरत
उन्होंने कहा कि विश्व में गुणवत्तापूर्ण जीवन के लिये अच्छा वातावरण उत्पन्न करने की आवश्यकता है। अधिकारों के प्रति जाग्रति तो बढ़ी है लेकिन कर्त्तव्यों के प्रति विस्मृति भी बढ़ी है। वर्तमान समय में परोपकार की प्रवृत्ति पैदा करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि यह विचार-कुंभ विश्व को ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने और पृथ्वी को हरा-भरा बनाने का संदेश देगा। उन्होंने क्षिप्रा नदी के किनारे वृहद वृक्षारोपण का आव्हान किया।

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