वैज्ञानिक-विद्युत जगत जिसका ऋणी है
-डॉ.डीएन पचौरी
जीवन की अनिवार्य आवश्यकताओं में से आज सबसे अधिक आवश्यक है विद्युत या बिजली या इलेक्ट्रिक,जिसके बगैर जीवन के अधिकांश काम रुक जाते है। दो चार घण्टे विद्युत प्रदाय बन्द रहने पर क्या हालत होती है?उपभोक्ता जानते है। इसी विद्युत की कमी से आजकल सरकारें बदल जाती है और इसी की निर्बाध पूर्ति से सरकारों की हैटट्रिक बन जाती है। विकास की गंगा बहाने के लिए विद्युत अनिवार्य आवश्यकता है। आज पूरा विश्व और विद्युत जगत जिस वैज्ञानिक का ऋ णी है उसका नाम था माइकल फैराडे।
उसी के प्रयत्नों से 1831 में लन्दन (इंग्लैण्ड) में इस विद्युत की खोज हुई। जिसे हम आज प्रत्यावर्ती धारा एसी करण्ट कहते है। जिन्दगी के हर क्षेत्र में इसकी आवश्यकता है,किन्तु आश्चर्य की बात यह है कि इतनी बडी खोज करने वाले इस वैज्ञानिक की शिक्षा केवल प्राथमिक शाला तक ही थी।
प्रारंभ में न तो वह कोई बहुत अधिक प्रतिभाशाली था और न किसी ने सोचा था कि बुक बाइण्डर(जिल्दसाज) की दुकान पर पुरानी पुस्तकों को रिपेयर करने वाला बालक बडा होकर इतना बडा वैज्ञानिक बनेगा कि फिजिक्स और कैमिस्ट्री में एक दो नहीं सैकडों आविष्कारों व सिध्दान्तों का जन्मदाता बन जाएगा।
प्रारंभिक जीवन
एक अत्यन्त निर्धन लुहार जेम्स फैराडे के यहां माइकल फैराडे का जन्म 22 सितम्बर 1791 को लन्दन के निकट हुआ था। सबसे बडा भाई राबर्ट और एक बहन थी। तीसरी सन्तान माइकल था। गरीबी इतनी थी कि एक जने के लिए एक हफ्ते में केवल एक पाव रोटी मिलती थी। कुछ भोजन चर्च से आ जाता था। एक विद्यालय में राबर्ट और माइकल पढने जाते थे और उन्होने प्राइमरी की तीन चार कक्षाएं पास की थी कि एक अत्यन्त निर्दयी शिक्षक जिसे बच्चों को यातना देना अच्छा लगता था तथा जो खास गरीब बच्चों को बहुत परेशान करता था,इनके विद्यालय में आया। उसने एक दिन राबर्ट को बहुत पीटा और दूसरे दिन से ही दोनो भाईयों ने विद्यालय जाना बन्द कर दिया। माइकल को इतनी ही शिक्षा मिली। कुछ वर्ष घर पर पुस्तक पढता रहा और फिर इनकी गरीबी पर तरस खाकर एक बुक बाइण्डर व स्टेशनरी विक्रेता जार्ज रिबाउ ने माइकल को अपने यहां नौकरी पर रख लिया। माइकल की लगन देखकर उसने इसे दुकान में खाली समय में पुस्तके पढने की छूट दे दी। इससे माइकल ने विज्ञान विषय की ऐसी पुस्तकें पढना प्रारंभ की जो उसकी समझ में आ जाती थी। उसने कन्जरवेशन्स आफ कैमिस्ट्री नामक पुस्तक को कई बार पढा। इम्प्रूवमेन्ट आफ माइण्ड तथा कुछ अन्य पुस्तकों का अध्ययन किया।
वैज्ञानिक जगत में प्रवेश
सन 1812 में माइकल फैराडे को रायल सोसायटी के वैज्ञानिक सर हम्फ्रीडेली के भाषण सुनने का मौका मिला। माइकल का दिमाग और याददाश्त इतनी तेज थी कि उसने सर डेली के भाषणों के तीन सौ पेज के नोट्स तैयार कर उनको समर्पित किए तथा उनसे किसी काम करने की याचना की। सर डेली ने माइकल को अपनी प्रयोगशाला में बोटले धोने के काम पर रख लिया। इसका कारण था कि माइकल फैराडे को न तो विज्ञान की प्रारंभिक जानकारी थी और न किसी प्रकार की ट्रेनिंग ही ली थी। माइकल ने प्रयोगशाला का ये छोटा काम सहर्ष स्वीकार कर लिया और अपना पूरा समर्पण दिमाग और समय सब विज्ञान की खोज में लगाना शुरु कर दिया। ये बात अलग है कि इस अत्यन्त कम पढे लिखे वैज्ञानिक के बारे में ही सर हम्फ्री डेली ने कहा था कि मेरी जीवन भर की वैज्ञानिक खोजों के उपर मेरे जीवन की सबसे बडी खोज माइकल फैराडे है। माइकल फैराडे के लिए कर्म किए जा फल की चिन्ता न कर,सबसे बडा सिध्दान्त था जो हमारे धार्मिक ग्रन्थ गीता का सार भी है।
सन 1814-15 में फैराडे को डेली के साथ यूरोप के इटली,फ्रान्स व अन्य देशों में घूमने का मौका मिला जिसमें इटली के वैज्ञानिक वोल्टा से मिले और वोल्टीय सेल के आधार पर फैराडे ने विद्युत रसायन की नींव रखी। इसी प्रकार एक वैज्ञानिक औरेस्टेड से मिलकर विद्युत तथा चुम्बकीय उर्जा के बारे में ज्ञान प्राप्त किया। वैज्ञानिक एम्पियर के साथ भी विज्ञान विषयक विचारों का आदान प्रदान किया।
फैराडे का सौभाग्य कहे या दुर्भाग्य कि वैज्ञानिक डेली की पत्नी माइकल फैराडे से बहुत चिढती थी और उनके साथ नौकरों जैसा व्यवहार करती थी। उसे ये पसंद नहीं था कि फैराडे कभी डेली के साथ भोजन कर ले। फैराडे को नौकरों के साथ भोजन करने बैठाया जाता था। फैराडे सब सहन करते रहे किन्तु एक दिन उनका धैर्य जवाब दे गया और यूरोप का टूर बीच में ही छोडकर लन्दन वापिस लौट आए। लन्दन में स्वतंत्र रुप से कार्य करने लगे। फिर डेली के लौटने पर अपना अपमान भुला कर पुन: डेली के साथ वैज्ञानिक खोजों में जुट गए। उन्होने अनेक खोजें डेली की प्रयोगशाला में की थी।
प्रत्यावर्ती धारा की खोज
विद्युत दो प्रकार की होती है,दिष्ट धारा या डीसी तथा प्रत्यावर्ती धारा या ए.सी.। डी.सी. को अधिक दूर तक नहीं भेजा जा सकता और इसकी पॉवर भी कम होती है। अत: आज जो धारा दैनिक जीवन में काम आती है वह ए.सी.(आल्टननेटिव करैण्ट) होती है। इसी को ट्रांसफार्मरों की सहायता से हमारे आपके घरों तक पंहुचाया जाता है। इसी की खोज माइकल फैराडे ने की थी। एक वैज्ञानिक औरेस्टेड ने देखा कि बैटरियां सैल की धारा के निकट चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है तो फैराडे ने इसके विपरित प्रयोग प्रारंभ किया कि जिससे चुम्बकीय उर्जा विद्युत उर्जा में परिणित हो जाए। ये प्रयोग उन्होने 1820 में प्रारंभ किए और फिर डेली से महमुटाव के कारण काफी समय तक ये प्रयोग बन्द रहे। डेली की 1829 में मृत्यु के बाद सन 1830 से पुन: उन्होने चुम्बकीय उर्जा को विद्युत उर्जा में परिणित करने की कोशिश की। सन 1831 का अगस्त माह का एक दिन फैराडे और पूरे विश्व के लिए शुभ सन्देश लाया। प्रयोगशाला में एक तारों की कुण्डली से धारा की दिशा दिखाने वाला यंत्र गैलवेनोमीटर जुडा हुआ था। फैराडे कभी क्रोधित नहीं होते थे किन्तु उस दिन किसी बात पर झुंझलाकर उन्होने एक चुम्बक को फेंका जो तारों की कुण्डली में से निकला तो गैलवेनोमीटर में विक्षेप आ गया अर्थात उसकी सुई एक ओर घूम गई और यही प्रत्यावर्ती धारा की खोज का आधार है। ये फैराडे की विद्युत चुम्बकीय प्रेरण घटना कहलाती है कि जब चुम्बक को तेजी कुण्डली में से गुजारते हैं तो चुम्बक की बल रेखाओं में परिवर्तन से यांत्रिक उर्जा के कारण चुम्बकीय उर्जा विद्युत उर्जा में परिणित हो जाती है। फैराडे कम पढे लिखे थे और उनको गणित का ज्ञान नहीं था अत: उनके नियमों की गणितिय व्याख्या मैक्सवैल,न्यूमैन आदि वैज्ञानिकों ने की थी।
भौतिकी में अन्य खोज
फैराडे ने विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के नियम,प्रथम डायनेमो,अन्योन्य प्रेरण,जिसके आधार पर ट्रांसफार्मर बनते है,आदि की खोज की। सन 1844 से 1860 के मध्य उनकी महत्वपूर्ण खोज फैराडे प्रभाव भी है। इसमें जब ध्रुवित प्रकाश विचलित हो जाता है। इसी आधार परवैज्ञानिक जीमन ने जीमन प्रभाव की खोज की,जिन्हे 1902 का नोबल पुरस्कार दिया गया था।
रसायन में योगदान
माइकल फैराडे ने बेन्जीन की खोज की साथ ही गैमवक्सीन और कार्बन के क्लोरीन के साथ कुछ यौगिकों का निर्माण किया। द्रव क्लोरीन और अन्य गैसों का द्रवीकरण किया। आज जीवन के हर क्षेत्र में काम आने वाले स्टैनलैस स्टील की खोज का श्रेय भी फैराडे को है। स्टील के अन्य कई मिश्र धातु तथा विद्युत अपघटन की क्रिया,इलेक्ट्रोड,एनोड,कैथोड आदि नाम भी फैराडे की देन है। सोने की पालिश में काम आने वाला स्वर्णकालिल या गोल्ड कोलोइड की खोज फैराडे ने की। आक्सीकरण संख्या तथा अनुचुम्बकत्व इन्ही की खोज है।
सौम्य और सरलता की मूर्ति
माइकल फैराडे अत्यन्त सज्जन,सीधे व सरल व्यक्ति थे। उनकी सरलता इसी बात से प्रकट होती है कि उनकी खोजों का व्यवसायीकरण करने के लिए जहां उन्हे पांच हजार डॉलर प्रतिवर्ष का आफर आया। वहां वे पांच सौ डॉलर प्रतिवर्ष पर रायल सोसायटी में कार्य करते रहे। वे अपने पर एहसान करने वाले वैज्ञानिक डेली का बहुत आदर करते थे और इनसे मनमुटाव होने पर भी माइकल फैराडे ने डेली की सदैव प्रशंसा की। यहां तक कि 1824 में फैराडे को रायल सोसायटी का अध्यक्ष चुना गया तो उन्होने आदर पूर्वक मना कर दिया,क्योंकि उनके पूर्व मालिक डेली ने इसका विरोध किया था। सम्राट की ओर से एक विशेष सम्मान स्वीकार नहीं किया। वहां की सरकार ने जब इन्हे युध्द में काम आने वाले रासायनिक हथियारों के निर्माण का सलाहकार नियुक्त करने की पेशकश की तो इन्होने विनम्रतापूर्वक मना कर दिया। उनका कहना था कि मै ऐसा कोई कार्य नहीं करना चाहता जिसे विश्व का नुकसान पंहुचाने के लिए किया जाए। अधिक पढा लिखा न होने पर भी फैराडे युवाओं को वैज्ञानिक खोजों के लिए प्रोत्साहित करते थे और विज्ञान विषयक भाषण देते थे। सन 1833 से पूर्णकालिक रसायन के प्रोफेसर रहे।
इतना बडा वैज्ञानिक होने पर भी उनका अपना कोई घर नहीं थआ अत: 1848 में रायल सोसायटी ने उन्हे जो घर दिया मृत्युपर्यन्त 1867 तक उसी में रहे। आज इग्लैण्ड में उनके नाम पर अनेक स्कूल कालेज इंजीनियरिंग कालेज तथा अन्य संस्थान है। फिजिक्स में धारिता या कैपिस्टैन्स की इकाइ उनके नाम पर फैराडे कहलाती है। जो भी हो आज पूरा विश्व तथा विद्युत जगत इस अल्पशिक्षित किन्तु प्रतिभाशाली वैज्ञानिक का आभारी है।