May 14, 2024

रेलवे द्वारा साइनबोर्ड पर उर्दू के जरिये तुष्टिकरण की कोशिश

कोई जरुरत नहीं लेकिन अब उर्दू में लिखे जा रहे हैं स्टेशनों के नाम

रतलाम,5 जनवरी (इ खबरटुडे)। मध्यप्रदेश जैसे हिन्दीभाषी प्रदेश में उर्दू जानने समझने वालों की संख्या नगण्य है,लेकिन लगता है कि रेल मण्डल उर्दू के जरिये मुस्लिम तुष्टिकरण की कोशिश में लगा हुआ है। मण्डल के सभी रेलवे स्टेशनों पर अब हिन्दी और अंग्रेजी के साथ उर्दू में भी स्टेशन के नाम लिखे जा रहे हैं। रेलवे अधिकारियों के पास इस बात का कोई कारण भी नहीं है,कि ताबडतोड में ऐसा क्यों किया गया?
पिछले कुछ हफ्तों में रतलाम मण्ड़ल के सभी रेलवे स्टेशनों पर स्टेशनों के नाम वाले साइनबोर्डो पर हिन्दी और अंग्रेजी के अलावा उर्दू में भी स्टेशन के नाम लिखे जा रहे हैं। उल्लेखनीय है कि हिन्दीभाषी प्रदेश मध्यप्रदेश में उर्दू जानने वालों की संख्या बिलकुल नगण्य है। तथ्यों के हिसाब से देखा जाए तो उर्दू तो लगभग पूरे देश में मृतप्राय भाषा हो चुकी है। इसके बावजूद रतलाम मण्डल के रेलवे स्टेशनों पर अचानक उर्दू के प्रयोग का औचित्य कोई भी समझ नहीं पा रहा है। इतना ही नहीं स्टेशनों का नाम उर्दू में लिखवाए जाने की रेलवे अधिकारियों को इतनी जल्दी थी,कि साइनबोर्ड की सुन्दरता को भी नजर अन्दाज कर दिया गया।
वास्तव में इससे पहले तक स्टेशन के प्लेटफार्म्स पर लगने वाले बोर्ड पर स्टेशन का नाम हिन्दी और अंग्रेजी इन दोनो भाषाओं में लिखे जाते थे। साइनबोर्ड पर दोनो ही भाषाओं में लिखे गए नाम समान आकार के होते थे,जिससे कि बोर्ड सुन्दर नजर आता  था। बोर्ड पर अचानक उर्दू में भी नाम लिखने के फरमान में यह भी निर्देश दिए गए थे कि  बोर्ड पर नए सिरे से पेन्टिंग नहीं की जाना है ,बल्कि वर्तमान साइन बोर्ड पर ही किसी तरह उर्दू में नाम लिख दिया जाए। इसका नतीजा यह हुआ कि पेन्टर को जहां जगह समझ में आई उसने किसी तरह उर्दू में नाम लिख दिया। इससे पूरे साइन बोर्ड की सुन्दरता खराब हो गई।
मजेदार बात यह है कि पूरे मण्डल के तमाम साइन बोर्डो पर किए गए इस परिवर्तन के बारे में कोई भी अधिकारी कुछ भी बताने को तैयार नहीं है। जिन अधिकारियों के आदेश से यह कार्य किया गया,वे जनसम्पर्क अधिकारी से जानकारी लेने की बात कह कर मामले को टालने की कोशिश कर रहे है। रेलवे सूत्रों के मुताबिक साइनबोर्ड पर पेन्टिंग का कार्य वरिष्ठ मण्डल इंजीनियर लोकेश कुमार के आदेश से किए गए है। जब इस संवाददाता ने लोकेश कुमार मीणा से इसकी जानकारी लेना चाही तो उनका कहना था कि यह कार्य रेलवे बोर्ड द्वारा भेजे गए एक सक्र्यूलर के आधार पर किया गया है। जब उनसे यह जानने की कोशिश की गई कि यह सक्यूलर कब जारी हुआ,उन्होने विस्तृत जानकारी जनसम्पर्क अधिकारी से लेने की बात कही। जनसम्पर्क अधिकारी जयन्त का कहना है कि उन्हे भी सम्बन्धित विभाग द्वारा इतनी ही जानकारी दी गई है कि यह निर्णय रेलवे बोर्ड के एक सक्र्यूलर के आधार पर लिया गया है,लेकिन न तो यह बताया जा रहा है कि यह सक्र्यूलर कब जारी हुआ और क्यों जारी हुआ। सम्बन्धित विभाग द्वारा यह जानकारी भी नहीं दी जा रही है कि पूरे मण्डल के स्टेशनों पर उर्दू लिखे जाने पर कितनी राशि खर्च की गई है,और इस निर्णय से रेलवे या रेलयात्रियों को क्या लाभ हुआ है। जब रेलवे द्वारा अधिकृत तौर पर कोई जानकारी नहीं दी जा रही है,तब यही निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि उर्दू जैसी मृतप्राय भाषा का यदि उपयोग किया जा रहा है,तो यह सिर्फ मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए ही किया जा रहा होगा।

You may have missed

Here can be your custom HTML or Shortcode

This will close in 20 seconds