November 23, 2024

राग रतलामी/वार्ड आरक्षण से कईयों के दिल टूटे,कुछ की चमकी किस्मत ,शहर सरकार पर कब्जा कायम रखना बडी चुनौती होगा फूलछाप के लिए/अनिर्णय में उलझा इंतजामिया

-तुषार कोठारी

रतलाम। शहर के तमाम नेता लम्बे समय से इसी इंतजार में थे कि नगर निगम के वार्डों का आरक्षण हो जाए,ताकि वे अपने लिए वार्ड चुन कर तैयारी शुरु कर सके। कई नेता तो पहले से वार्ड का अंदाजा लगाकर अपने वोट पक्के करने में लग चुके थे। जो नेता भिड भिडाकर वोट पक्के करने की जुगत में लगे थे,उनमें से कई सारों के दिल आरक्षण ने तोड दिए। वो जहां मेहनत कर रहे थे,उस वार्ड का आरक्षण उनके मनमाफिक नहीं हुआ और उनकी सारी मेहनत पर पानी फिर गया। अब उन्हे नए वार्ड में नए सिरे से सक्रिय होना पडेगा। हांलाकि कई नेताओं के लिए आरक्षण उनकी किस्मत खोलने वाला साबित हुआ है। उनकी मेहनत वाले वार्ड में उनका मनमाफिक आरक्षण हो गया है और वे खुद को भावी पार्षद के रुप में देखने लग गए हैं।
दोनो ही पार्टियां,पंजा पार्टी और फूल छाप में पिछले कई दिनों से सुस्ती छाई हुई थी। एक तो कोरोना का कहर जारी था,दूसरे नेतागिरी के मोर्चे पर करने को कुछ नहीं था। सूबे में सरकार बदलने से पंजा पार्टी के नेता निराश बैठे थे और फूल छाप वालों को भी करने को कुछ नहीं था,क्योंकि कोरोना के कारण सरकार भी सिर्फ कोरोना कोरोना ही भज रही थी।
लेकिन जैसे ही आरक्षण का मामला संपन्न हुआ,अचानक तमाम नेता सक्रिय होने लगे है। उन्हे पता है कि अब किसी भी समय चुनाव हो सकते हैं इसलिए टिकट की जुगाड से लगाकर वोट पक्के करने तक हर मोर्चे पर मशक्कत करना पडेगी। पंजा पार्टी में पहले से जमे जमाए कई नेताओं के लिए आरक्षण उनके मनमाफिक हुआ है। इसलिए वे तो निश्चिन्त हो गए है। पंजा पार्टी की आपा से लगाकर कई जमे जमाए नेताओं को उनके मनमुताबिक वार्ड मिल जाएंगे।
इधर फूल छाप में भी कई नेताओं के वार्ड मनमाफिक है। लेकिन फूल छाप वाले कई नेताओं के लिए आरक्षण ने मुसीबत खडी कर दी है। उनके असर वाले वार्ड इस तरह आरक्षित हो गए हैं कि वे अब चुनाव नहीं लड सकते।
टिकट हासिल करने के लिए दोनो पार्टियों में अलग अलग तरीके अपनाने पडते हैं। पंजा पार्टी में इन दिनों भारी बिखराव की स्थिति है,इसलिए पंजा पार्टी के नेताओं को न जाने किन किन आकाओं के दरवाजों पर मत्था टेकना पडेगा। इस मामले में फूल छाप के नेताओं के लिए आसानी है। फूल छाप पार्टी में अब स्टेशनरोड से ही सारे फैसले होने लगे है,इसलिए फूलछाप वालों को सिर्फ एक ही दरबार के घण्टे घडियाल बजाने है। सारे फैसले वहीं से हो जाएंगे।
शहर की सरकार पर कब्जा करना इस बार फूल छाप के लिए कठिन हो सकता है। शहर की नब्ज पर हाथ रखने वालों का कहना है कि पिछली बार शहर सरकार पर फूल छाप का ही कब्जा था और रतलामियों को फूलछाप की सरकार से भारी उम्मीदे थी। लेकिन उस वक्त शहर सरकार की मुखिया डाक्टर मैडम ने रतलामियों की सारी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। डाक्टर मैडम ने खुद को पिछले तमाम मुखियाओं से बेकार साबित किया और रतलाम के लोगों की समस्याओं का कोई निराकरण नहीं हुआ। मैडम जी की नाकामियों का खामियाजा अब फूल छाप को भुगतना पड सकता है और इसका फायदा पंजा पार्टी को मिल सकता है।

अनिर्णय में उलझा इंतजामिया

बडी मैडम के अण्डर में चलने वाला जिले का इंतजामियां आमतौर पर अनिर्णय की स्थिति में उलझा रहता है। यही नजारा राखी के त्यौहार पर भी नजर आ रहा है। लोगों को उम्मीद थी कि त्योहार को देखते हुए शनिवार के साथ साथ रविवार को भी लाकडाउन से छूट मिलेगी। शनिवार को पूरे दिन लोग यही जानने के लिए फोन लगाते रहे कि रविवार को लाक डाउन रहेगा या नहीं। मैडम जी फैसला ही नहीं कर पाई। शनिवार को तय हो गया था कि रविवार को लाकडाउन ही रहेगा। रविवार को पता नहीं क्या हुआ कि मैडम जी को त्यौहार का महत्व समझ में आ गया। अचानक फैसला किया गया कि लाक डाउन में दोपहर तीन बजे से छूट दी जाएगी। लेकिन यह फैसला लेते लेते और उसे आम लोगों तक पंहुचाने में ही दोपहर के तीन बज गए। सरकारी खबरची ने मीडीयावालों को भी ठीक तीन बजे ही इसकी जानकारी दी। सरकारी एलान भी तीन बजे ही घुमवा दिया। अब मैडम जी को कौन समझाए कि ऐसी छूट का क्या फायदा,जिसकी जानकारी ही देर से मिले। अब व्यवसायी कब अपनी दुकानें खोलेंगे और कब जनता खरीददारी के लिए निकलेगी? अगर यही एलान एक दिन पहले हो जाता तो कम से कम त्यौहार तो लोग ठीक से मना लेते।

बैठने लगे बड़े साहब, छोटे के तेवर हुए कम

पिछले सप्ताह राग रतलामी में बड़े साहब व छोटे साहब के बीच उलझी जिला पंचायत के किस्से जाहिए किए थे, उसका असर यह हुआ कि अब बड़े साहब जिला पंचायत में बैठने लग गए है। सप्ताह में ऐसा कोई दिन नहीं गुजरा जब बड़े साहब अपने चैंबर में नहीं बैठे हो। हां एक दिन संभागायुक्त के दौरे के कारण वह उनके साथ में रहे। लेकिन वहां भी पीछे- पीछे ही रहे। जबकि जिले की बड़ी मैडम और वर्दी वाले बड़े साहब के साथ-साथ जावरा के साहब भी संभागायुक्त के साथ-साथ रहे। कहीं ना कहीं जिला पंचायत के बड़े साहब को रतलाम रास नहीं आ रहा है, और वे नेताओं के निशाने पर भी है। शिक्षक से नेताजी बने एक नेता तो जिला पंचायत के चक्कर काटते रहते हैं। इनके साथ-साथ जिले के भी नेता साथ में आते हैं। अब बड़े साहब व नेताजी के बीच क्या चल रहा है यह तो अंदरखाने वाले ही जाने। यहां तक बड़े साहब ने अपने स्टेनो के कक्ष को भी बदल दिया है। इधर छोटे साहब ओएस के तेवर भी नरमी आई है। हालांकि उन्हें उनका प्यारा पंचायत प्रकोष्ठ शाखा अपने पास से जाने का मलाल है। बड़े साहब अब फाईलों को भी निपटाने में लग गए है। इससे अधिकारी व कर्मचारी भी खुश हो गए है कि चलो साहब आकर तो बैठ रहे है और फाइले भी निपटा रहे है ।

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