November 15, 2024

राग-रतलामी/ युवराज की सभा के लिए भीड ले जाने के वादे,लेकिन राजी कोई नहीं,अफसरों पर आचार संहिता फोबिया

-तुषार कोठारी

रतलाम। सूबे का सियासी पारा अब चढने लगा है। पंजा पार्टी के युवराज सोमवार को पडोस के झाबुआ में आ रहे है। युवराज की सभा में भीड जुटाने के चक्कर में बडे भूरिया जी शनिवार को रतलाम का दौरा कर गए। उन्होने पंजा पार्टी के शहर और ग्रामीण दोनो दफ्तरों में जाकर पंजा पार्टी के नेताओं और दावेदारों से युवराज की सभा में भारी भीड लाने के वादे कराए। टिकट की आस है,इसलिए तमाम दावेदारों ने भारी भीड लाने के दावे भी किए। कुल मिलाकर आंकडा ढाई तीन सौ गाडियों तक पंहुचा। बडे भूरिया जी खुशी खुशी रवाना हो गए। उनके जाने की देर थी,कि तमाम दावेदार सच्चाई उगलने लगे। दावेदारों की मुसीबत यह है कि अब तक ये पता नहीं है कि उनके टिकट का क्या होगा? झाबुआ में अपनी जेब से खर्चा कर भीड ले भी गए तो देखेगा कौन..? युवराज के मंच के आसपास भी फटकने को नहीं मिलेगा। पंजा पार्टी के नाथ और श्रीमंत तो मंच पर रहेंगे। न तो युवराज की नजर पडेगी और ना ही सूबे के नेताओं की। जब उनकी नजर ही नहीं पडेगी,तो फायदा क्या होगा..? रही बात भूरिया जी की,तो ज्यादातर दावेदारों को पता है कि वो खुद छोटे भूरिया को टिकट दिलाने की जुगाड में है। उनके देख लेने से कोई फायदा नहीं होने वाला। हां अगर ज्यादा भीड लाने से टिकट मिलने के चांस बढ रहे होते,तो हर दावेदार पूरा दम लगा देता। लेकिन ऐसा होने का कोई चांस नहीं है। नतीजा यह है कि भूरिया जी के सामने बढ चढ कर बोलने वाले तमाम दावेदारों का उत्साह धीरे धीरे नदारद हो गया। पंजा पार्टी को अन्दर तक जानने वालों का कहना है कि युवराज की सभा में दावेदार खुद जाएंगे,ताकि कहीं मौका मिला तो चेहरा दिखाया जा सके। रही बात भीड ले जाने की,तो उसके लिए तो फिलहाल कोई भी तैयार नहीं है।

तेरह दिन की महाभारत

महाभारत का युध्द अठारह दिन चला था,लेकिन इस बार की चुनावी महाभारत के युध्द में योध्दाओं को केवल तेरह दिनों का समय मिलेगा। निर्वाचन कार्यक्रम में नाम वापसी से मतदान के बीच महज तेरह दिनों का फासला है। दोनो पार्टियों में अब तक टिकटों का फैसला नहीं हो पाया है। दावेदार बेचारे परेशान है। पंजा पार्टी वालों की समस्या और बडी है। पंजा पार्टी में तो आखरी वक्त तक बदलाव होते रहते है। लिस्ट में नाम किसी का आता है और बी फार्म कोई और ले आता है। इसलिए पंजा पार्टी वाले नाम वापसी का वक्त समाप्त होने के पहले तक तो भरोसा ही नहीं करते। फूल छाप की स्थिति थोडी ठीक है। वहां ऐसे फेरबदल कम होते है। बहरहाल,चुनावी जंग में उतरने वाले लडाकों को महज दो हफ्तों में अपनी जमावट करना है।

हारी हुई लडाई के लिए खींचतान

पंजा पार्टी ने मान लिया है कि रतलाम शहर में हारी हुई लडाई लडना है। पंजा पार्टी के तमाम नेता यही कह रहे हैं। इसके बाद भी अगर दावेदारी को लेकर खींचतान मची है,तो इसकी वजह जीत की उम्मीद नहीं,बल्कि पार्टी फण्ड और प्रचार मिलने की उम्मीद है। पंजा पार्टी के नेताओं को यह भी लग रहा है कि कहीं बिल्ली के भाग से छींका टूट गया और सरकार बन गई,तो हारने के बाद भी फायदा मिलने का चांस बना रहेगा। यही वजह है कि पंजा पार्टी में दावेदारी को लेकर खींचतान मच रही है।

आचार संहिता फोबिया

अफसरों पर इन दिनों आचार संहिता फोबिया का असर दिखाई दे रहा है। इस फोबिया के चलते अफसरों को समझ में ही नहीं आ रहा है कि क्या करें और क्या नहीं करें। इसी चक्कर में ग्रामीण वाली मैडम जी ने महाराणा प्रताप को ही पुतवा दिया। इससे नाराजगी बढना थी,और बढी भी। काले कोट वालों ने भी इसकी शिकायत कर दी। अब गेंद चुनाव आयोग के पाले में है। देखिए आगे क्या क्या होता है..?

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