राग-रतलामी/ फूल वालों के बाद पंजा पार्टी में बगावत और नेताओं की प्रैशर टैक्टिस का दौर
-तुषार कोठारी
रतलाम। अभी कल तक फूल छाप पार्टी के सेठ की नाराजगी चर्चाओं में बनी हुई थी। लेकिन आज पंजा पार्टी के नेताओं ने कहानी को बदल कर रख दिया। ग्रामीण में टिकट की आस लगाए बैठे नेताओं को कल जैसे ही सरकारी अफसर को नेता बनाए जाने की जानकारी मिली,सारे के सारे भडक गए। ये सारे नाराज दावेदार रविवार को इक_े हुए और खिलाफत की योजना बनाई गई। तमाम दावेदारों ने जब पंजा पार्टी के दफ्तर पर जाकर हल्ला मचाया,तो जिलाध्यक्ष ने भी उसमें अपना सुर मिला दिया। अब खबरचियों के लिए इससे अच्छी खबर क्या हो सकती थी? सारे खबरची भी वहां पंहुच गए। किसानों की नेतागिरी में जेल जाकर आए धाकड नेता को जावरा से टिकट मिलने की उम्मीद थी,लेकिन पंजापार्टी ने यहां भी दगाबाजी कर दी। ग्रामीण नेताओं के साथ किसान नेता बने इस नेता ने जावरा को भी इसमें जोड दिया। पंजा पार्टी के दफ्तर पर हो रहे शोरगुल को सुनकर खाकी वाले भी आचार संहिता लेकर वहां पंहुच गए। खाकी वाले वहां पंहुचने में थोडी देर और लगा देते तो खबरचियों को और भी ज्यादा तडकती भडकती खबर मिल सकती थी। पंजा पार्टी के दफ्तर में तोडफोड होती,तो खबरचियों को ज्यादा मजा आता। खैर….। समस्या अब पंजा पार्टी के लिए है। लिस्ट के आने के बाद अब खुद पंजा पार्टी के नेता कह रहे है कि फूल छाप की जीत आसान हो गई है। ग्रामीण और जावरा सीट पर बराबरी की टक्कर हो सकती थी,लेकिन अब मामला एक तरफा होने लगे है।
नेताओं की प्रैशर टैक्टिस
केबिनेट मंत्री का दर्जा होने के बाद भी खुद को हाशिये पर समझने वाले सेठ को इतना अंदाजा तो पहले ही रहा होगा कि टिकट मिलना मुश्किल है। लेकिन राजनीति में उठापटक करना भी जरुरी होता है। चुनाव के बाद आने वाले दिनों में वजन बरकरार रहे,इसकी तैयारी अभी से जरुरी है। प्रैशर टैक्टिस नहीं अपनाई तो आगे के सारे चांस खत्म हो सकते है। फूल छाप पार्टी पर दबाव बनाने का मौका सेठ को खुद पंजा पार्टी ने दिया। पंजा पार्टी के नेताओं ने उन्हे फोन लगाए और इसकी जानकारी खबरचियों तक भी पंहुच गई। जब खबरचियों ने सेठ से पूछा तो उन्होने भी मौके का फायदा उठाते हुए इस बात को सही बताया। बस फिर क्या था,खबरचियों ने इस खबर को जोर शोर से फैलाया और शहर भर में चर्चाएं होने लगी कि सेठ पंजे का दामन थाम सकते है। पंजा पार्टी ने अब तक शहर का उम्मीदवार भी घोषित नहीं किया है। लोगों में खुसर पुसर होने लगी। हांलाकि राजनीति को समझने वाले जानते है कि आजकल नेताओं को अपनी ही पार्टी पर दबाव बनाकर रखना पडता है। सेठ को तो यह मौका खुद पंजा पार्टी ने दिया। खबरें चली तो उनका ग्राफ भी उपर चढ गया। बाकी रही पंजे का दामन थामने की बात,तो जानकारों को पता है कि ऐसा होने वाला नहीं है।
इधर फूल छाप के दूसरे नेताओं ने भी इसी फार्मूले को अपनाना शुरु कर दिया। सैलाना वाली मैडम ने दीवाली के बाद परचा दाखिल करने की घोषणा कर डाली। रतलाम ग्रामीण के दावेदार भी इसी राह पर चल पडे। टिकट काटे जानेे से खफा मथुरा बा के विडीयो टीवी पर बहुत छाए। लेकिन चतुराई का ठेका सिर्फ नेताओं के पास ही नहीं है। पार्टियां और पार्टियों के बडे नेता भी चतुर हैं। वे भी जानते है कि ये वक्त नाराज नेताओं की प्रैशर टैक्टिस का है,इसलिए कोई ज्यादा लोड नहीं लेता। मथुरा बा का विडीयो प्रदेश भर में चलने के बाद भी किसी बडे नेता ने उन्हे फोन तक नहीं किया। बेचारे मथुरा बा को टिकट काटने से ज्यादा दुख इस बात का था कि टिकट बेचने जैसे गंभीर आरोप लगाने के बाद भी किसी बडे नेता ने उन्हे तवज्जो नहीं दी।
नेतागिरी का नशा
नेतागिरी का नशा किसी भी और नशे से ज्यादा खतरनाक है। जिस पर यह नशा चढता है,उसका संतुलन बिगडने लगता है। पिछले दिनों शहर के डाक्टर को यह नशा हो गया था। डाक्टर अपने हर पैशेन्ट से पूछता कि अगर मैं चुनाव लडू तो मुझे वोट दोगे या नहीं? पैशेन्ट बेचारे क्या जवाब देते। हर पैशेन्ट यही कहता कि आप को ही वोट देंगे। ऐसा ही नशा जनपद के सीईओ को चढा था। सीईओ हर सरपंच से पूछता कि मैं चुनाव लडू,तो समर्थन दोगे कि नहीं? बेचारे सरपंचों को सीईओ से कई सारे काम होते है। कौन इंकार करता। सीईओ ने तो एक कदम आगे बढकर सरपंचों से लिखित में भी समर्थन का वादा ले लिया। पंजा पार्टी भी इन वादों की गलत फहमी में आ गई। समर्थन की हामी भरने वाले अब कह रहे है कि साहब ने हिस्सेदारी तो पूरी ली थी,अगर उसमें कमी की होती,तो शायद लोग सहयोग भी करते। लम्बे समय तक पंचायतों के बजट से ही तो चुनाव लडने का फण्ड इक_ा हुआ है। अब तो इसका हिसाब लेने का वक्त है।