राग रतलामी/ पीएम मोदी को भी झूठा साबित कर दिया रतलाम ने,देश नहीं हुआ ओडीएफ,बदलने लगा कान्वेन्ट कल्चर
-तुषार कोठारी
रतलाम। देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बापू की जयंती के मौके पर देश को ओडीएफ घोषित कर दिया। बेचारे मोदी जी नहीं जानते थे,कि देश में मध्यप्रदेश है और मध्यप्रदेश में रतलाम ऐसी जगह है जो पीएम को भी झूठा साबित कर सकता है।
मोदी जी ने पहली बार देश की कमान सम्हालते ही देश में स्वच्छता अभियान चलाया और ग्रामीण इलाकों में शौचालय बनाने के लिए मुहिम शुरु कर दी गई। उनका जुनून था कि पूरे देश को ओडीएफ यानी खुले में शौच से मुक्ति दिलानी है। इसके लिए सरकार ने करोडों अरबों रु.खर्च किए। प्रत्येक प्रदेश को भारी भरकम धनराशि भेजी गई,जो आगे जिलों को और जिलों से जिला पंचायत के जरिये जनपंद पंचायत और आगे ग्राम पंचायतों तक पंहुचाई गई। जिन के घरों में शौचालय नहीं थे,उन्हे ये धनराशि दी गई,ताकि वे शौचालय बना सके और खुले में शौच की आदत से मुक्ति पा सके।
यही मुहिम रतलाम में भी चली। गांव गांव में सर्वे किए गए,ऐसे घरों की सूचियां बनाई गई,जहां शौचालय नहीं थे। उन्हे धनराशि दी गई,कि वे शौचालय बनाएं। शौचालय बनने के कामों की मानिटरिंग की गई। फिर ये भी देखा गया कि सभी स्थानों पर सचमुच में शौचालय बने भी है या नहीं। फिर गांवों से ग्राम पंचायत को,वहां से जनपद पंचायत को,जनपद से जिला पंचायत और जिले को यह जानकारी भिजवाई गई कि तमाम घरों में शौचालय बन चुके है। फिर जिले की बडी मैडम ने एक बडा सा जलसा कर जिले को ओडीएफ भी घोषित कर दिया। यही जानकारी आगे भोपाल और दिल्ली गई। तब जाकर पीएम ने देश भर को ओडीएफ घोषित किया।
लेकिन अब पता चला है कि मोदी जी तो झूठे साबित हो गए। बडी मैडम जी खुद ही बगल के एक गांव में पंहुची। गांव भी ऐसा वैसा नहीं। जिला पंचायत के एक बडे नेताजी का गांव। मुख्यालय से महज पच्चीस किमी दूर। मैडम जी गई थी गांववालों की समस्याएं जानने। पता चला कि कई सारे घरों में शौैचालय है ही नहीं। मैडम जी ने फौरन निर्देश दिए कि हितग्राहियों की सूचि चैक की जाए और जिनके नाम इस सूचि में नहीं है,उनकी नई सूचि बनाई जाए।
लेकिन बडे सवाल को मैडम जी अनदेखा कर गई। बडा सवाल यह था कि जब पहले उन्होने ही पूरे जिले को ओडीएफ घोषित किया था,तो वह किस आधार पर किया था। उन्हे यही जानकारी मिली होगी कि हर घर में शौचालय बन चुके है,तभी तो उन्होने जिले को ओडीएफ घोषित किया। जब ये जानकारी आ चुकी थी,तो फिर शौचालय गए कहां? उन्हे जमीन निगल गई या आसमान खा गया? मैडम जी ने नई सूचि बनाने के निर्देश तो दे दिए,लेकिन उन लोगों को खोजने की कोई जरुरत नहीं समझी,जिन्होने हर घर में शौचालय बन जाने की जानकारी भेजी थी। अब तो सवाल यह भी है कि अगर एक गांव ऐसा है,जहां कई लोगों के पास शौचालय नहीं है,तो जिले के एक हजार गांवों के क्या हालात है? वहां कौन जाकर देखेगा कि स्थिति क्या है? जिले में कितने ऐसे गांव है जहां आज भी लोगों के घरों में शौचालय नही है? जिन लोगो ने कागजों पर शौचालय बनवा दिए उनकी तलाश होगी या नहीं?
चुनाव उधर,असर इधर
विधानसभा की इकलौती सीट झाबुआ का उपचुनाव होने वाला है। रतलाम वालों को तो इससे सीधे सीधे कोई लेना देना नहीं है,लेकिन रतलाम के पंजा पार्टी वाले जानते है कि अगर वहां पंजा पार्टी जीत गई तो बडे वाले भूरिया जी बहुत ताकतवर हो जाएंगे। उनकी ताकत बढेगी,तो उसका असर यहां भी दिखेगा। इसलिए रतलाम के पंजा पार्टी वाले,जब भी मौका मिलता है,फौरन वहां चेहरा दिखाने पंहुच जाते है। हांलाकि वो रतलाम वालों से बेहद नाराज है। पिछले आम चुनाव में रतलाम वालों ने ही उन्हे हरवाया था। इसी का असर है कि वो रतलाम वालों को आजकल लिफ्ट भी नहीं दे रहे हैं। एक सभा में रतलाम के नेता लोग वहां पंहुचे,तो मंच से ही घोषणा कर दी गई कि रतलाम का कोई भी नेता मंच पर नहीं आएगा। बेचारे नेता मन मसोस कर रह गए। लेकिन जो भी हो,वे जानते है कि अगर चुनावी नतीजा पंजे के पक्ष में आया तो साहब ही सबके तारणहार बनेंगे। वैसे भी आने वाले दिनों में शहर सरकार के चुनाव होना है। उस वक्त फिर साहब की ही चलेगी। इसी की जोड बाकी लगा कर भाई लोग ज्यादा से ज्यादा वक्त वहीं गुजार रहे हैं।
बदलने लगा कान्वेन्ट कल्चर
हिन्दुस्तानी लोगों में कान्वेन्ट का जबर्दस्त जलवा है। लोगों को लगता है कि बच्चे का भविष्य तभी सुरक्षित होगा,जब वह कान्वेन्ट में पढेगा। इसी का नतीजा है कि हर शहर की गली गली में कान्वेन्ट खुल चुके है। छोटे छोटे बच्चे जब टाई लगाकर कान्वेन्ट में जाते है,तो उनके माता पिता गर्व से फूले नहीं समाते। लेकिन गली गली में कान्वेन्ट खुल जाने के बावजूद हर शहर में असली कान्वेन्ट एक ही होता है। उसका जलवा सबसे ज्यादा होता है। आमतौर पर बडे अफसरों और बडे लोगों के बच्चे इसी स्कूल में पाए जाते है। छोटे लोग अपने बच्चे का एडमिशन यहां कराने के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं और जिनके बच्चों को एडमिशन मिल जाता है,वे पूरे मोहल्ले में मिठाई भी बांटते है। जिस स्कूल के इतने जलवे हो उनके तौर तरीके भी खास होते है। शिक्षा में को एजुकेशन के विचार को सबसे सुव्यवस्थित रुप से कान्वेन्ट में ही लागू किया जाता है। दूसरे अध्र्द सरकारी या पूरे प्राइवेट स्कूलों में को एजुकेशन कुछ अलंग ढंग का होता है। इन स्कूलों के को एजुकेशन में लडके और लडकियां क्लासरुम में अलग अलग बैठते है। लडके एक तरफ और लडकियां दूसरी तरफ। लेकिन कान्वेन्ट का को एजुकेशन वास्तविक को एजुकेशन है,इसलिए वहां बेंचों पर लडके लडकियां साथ में बैठते है। एक लडका,फिर एक लडकी। यही व्यवस्था बरसों से लागू थी। नन्हे बच्चों के साथ साथ किशोर होते लडके लडकियों के लिए भी यही व्यवस्था रहा करती थी। लेकिन शहर में हुई एक घटना ने कान्वेन्ट के कल्चर को बदल कर रख दिया। शहर भर के लोग जुलूस बनाकर अपना गुस्सा दिखाने वहां पंहुचे थे। दो तीन दिन स्कूल बंद भी रहा था। अब सुना है कि स्कूल में व्यवस्था बदल गई है। अब वहां भी लडके एक तरफ और लडकियां दूसरी तरफ बैठने लगी है। कान्वेन्ट कल्चर से प्रभावित प्राउड पैरेन्ट्स को पता नहीं ये अच्छा लगेगा या नहीं?