राग रतलामी- कोरोना काल की कहानियां,मजे में है पूरा इंतजामिया
-तुषार कोठारी
रतलाम। कोरोना काल की कई कहानियां धीरे धीरे सामने आ रही है। शुरुआती दौर की कहानियां तो लोगों की सेवा भावना की थी,जिसमें जरुरतमन्दों को भोजन पंहुचाने और लोगों को घरों तक पंहुचाने जैसी बातें थी,लेकिन इस दौर की कहानियां इंतजामियां के मजे में होने की कहानियां है। कोरोना से निपटने की तैयारियों में इंतजामियां के अफसरों की चांदी हो रही है। कोई पूछने वाला नहीं है। चार आने का काम दो दो रुपए में हो रहा है। अफसरों की कमाई तो हो ही रही है,उपर से कोरोना वारियर होने का तमगा भी खुद ही लगा ले रहे हैं।
कोरोना काल के शुरुआती दौर में जबर्दस्त डर फैला था। हालात इतने संगीन थे,कि कोई सवाल तक नहीं पूछा जा सकता था। इंतजामियां के कामों को बडे सम्मान से देखा जा रहा था। हर किसी को लग रहा था कि इंतजामियां के अफसर जान को खतरे में डाल कर सेवा कर रहे है। लेकिन धीरे धीरे चीजें बदलने लगी। इन मामलों पर नजदीकी नजर रखने वालों को दिखने लगा है कि इंतजामियां के अफसर कोरोना की आड में मजे ले रहे हैं।
पूरे किस्से तो बाद में सामने आएंगे,लेकिन जो छिटपुट घटनाएं सामने आ रही है,वही ये साबित करने को काफी है कि चोर चोरी से जाए,हेरा-फेरी से ना जाए। दिखाने को तो कोरोना से जंग चल रही है,लेकिन साथ ही कोरोना के बजट में से अपना हिस्सा भी निकाला जा रहा है।
दूर दराज से शहर में आने वाले लोगों को क्वारन्टीन करने में कुछ अफसर तो होटल का एजेंट बन कर काम करने लगे हैं। अमेरिका से आए एक दम्पत्ति के साथ बडी अनोखी घटना हुई। पहले तो वे थाने पर सूचना देकर घर पंहुच गए। घर पंहुचे ही थे कि सरकार का क्वारन्टीन होने का फरमान आ गया। अमेरिका से आए दम्पत्ति ने घर में क्वारन्टीन रहने की बात कही,लेकिन साहब लोग घर के बाहर क्वारन्टीन करने पर अड गए। आखिरकार एक होटल में क्वारन्टीन होने को कहा गया। शहर के किसी होटल में रुम का किराया तीन हजार रु. नहीं है,लेकिन मामला अमेरिका से आए व्यक्ति का था,इसलिए किराया तीन हजार रु.प्रतिदिन हो गया। जब उक्त व्यक्ति ने इस बात की शिकायत इंतजामियां के एक अफसर से की,तो अफसर ने दयानतदारी दिखाते हुए किराये में पांच सौ रुपए की कमी करवा दी। आखिरकार मजबूरी में अमेरिका से आए उक्त परिवार को पन्द्रह सौ वाले रुम के ढाई हजाररु.अदा करना पडे।
क्वारन्टीन करने के मामले में इंतजामियां अलग अलग लोगों के लिए अलग अलग फार्मूला लगा रहा है। अभी क्वारन्टीन करने के लिए खुद के खर्चे पर महंगे होटल में और भी उंचे दामों पर भेजा जा रहा है। जबकि इससे पहले पंजा पार्टी के एक नेता को खुद के खर्चे पर भी होटल में क्वारन्टीन नहीं किया गया। नेता जी बेचारे कहते रहे कि वे होटल का खर्चा खुद वहन कर लेंगे,लेकिन उन्हे होटल में नहीं जाने दिया गया और भीड भाड के साथ ही क्वारन्टीन किया गया।
इतना ही नहीं,कोरोना पाजिटिव मिलने पर उस इलाके को कन्टेनमेन्ट एरिया बनाने पर होने वाले खर्च,क्वारन्टीन किए गए लोगों के भोजन इत्यादि पर होने वाले खर्च,अस्पताल के इंतजाम,ऐसे हर मामले में अब इंतजामियां को शक की नजर से देखा जा रहा है। शक करना गलत भी नही है। कोरोना काल खत्म होने के बाद जब किस्से उजागर होंगे तो पता नहीं कितने घोटाले सामने आएंगे।
समझ का सवाल…….
जिले का इंतजामियां ऐसे फैसले कर लेता है,कि उसकी सामान्य समझ पर सवाल खडे हो जाते है। पूरे देश में पांच सदियों के बाद खुशियां मनाने का मौका इसी हफ्ते में आया था,जब अयोध्या में राम मन्दिर का शिलान्यास हुआ था। लेकिन इससे ठीक एक दिन पहले बडी मैडम जी के निर्देश पर इंतजामियां ने एक आदेश जारी कर दिया कि जिले में कोई पटाखे नहीं फोडेगा। ये आदेश क्यों जारी किया गया,किसी को समझ में नहीं आया। पटाखों का कोरोना से कोई लेना देना नहीं है। लोगों को अपनी खुशियां मनाने से रोकने के पीछे क्या तुक थी,कोई नहीं समझ पाया। केवल इतना अंदाजा लगाया जा सका कि इंतजामियां को डर लगा होगा कि कहीं इससे माहौल खराब न हो जाए। लेकिन माहौल तो इंतजामियां के आदेश से खराब होने लगा। आखिरकार इंतजामियां को फौरन अपना आदेश निरस्त करना पडा और लोगों ने जमकर दीवाली मनाई। अब सवाल यह है कि इंतजामियां के अफसरों को जब इतनी सी सामान्य समझ नहीं है,तो उनसे गंभीर मामलों में सही फैसलों की उम्मीद कैसे की जा सकती है…?
बार्डर पर बवाल….
जिले की बार्डर राजस्थान की बार्डर से मिलती है और प्रदेश की बार्डर पर ट्रांसपोर्ट महकमे वाले वसूली के लिए तैनात किए जाते है। महकमे को मलाईदार महकमा इसी लिए माना जाता है,क्योंकि इन्हे बार्डर पर वसूली करने का हक मिला हुआ है। बार्डर की वसूली पर अफसरों से लेकर नेता तक सब की नजरें लगी रहती है। इसी चक्कर में पिछले दिनों फूल छाप के दो नेता आधी रात के बाद बार्डर पर जा पंहुचे। फिर बार्डर पर जम कर बवाल हुआ। हांलाकि अब सब चुप्पी साधे बैठे है। ना तो महकमे वाले कुछ बोल रहे है ना पार्टी वाले और ना ही वर्दीवाले कुछ बता रहे हैं।