राग रतलामी/ कथित कोरोना वारियर्स का गैरजिम्मेदाराना रवैया,मेडीकल के लिए घण्टों भटकता रहा मासूम
-तुषार कोठारी
रतलाम। कोरोना का खतरा क्या मण्डराया,तमाम सफेद कोट वाले कोरोना वारियर बन गए। जो सचमुच में खतरे उठाकर काम रहे है,वे तो सच्चे वारियर है ही,लेकिन वो भी कोरोना वारियर कहला रहे है,जो कोरोना के नाम पर काम से दूर भागते फिर रहे है। अस्पताल में इलाज के लिए आने वाले मरीजों की हालत इस चक्कर में पहले से ज्यादा खराब हो गई है। कथित कोरोना वारियर,कोरोना के नाम पर मरीजों को टालने में ही लगे हुए है।
सप्ताह के आखरी दिन एक नन्हा मासूम,गांव के ही एक दरिन्दे की चपेट में आ गया था। उस बच्चे की किस्मत तेज थी कि दुर्घटना होने से पहले ही,पालतू कुतिया की समझदारी से बच्चा बच गया। यहां तक तो कहानी ठीक ठाक चल रही थी। बच्चा दुष्कर्म से बच गया। वर्दी वालों ने भी फौरन कार्यवाही करते हुए कुछ ही घण्टों में उस दरिन्दे को धर दबोचा। यह सबकुछ तो हो गया। लेकिन इसके बाद जो कुछ हुआ,वह कोरोना वारियर्स को शर्मसार करने के लिए काफी थी।
घटना की जानकारी मिलते ही वर्दीवालों के बडे साहब लोग मौके पर पंहुच गए और उन्होने आरोपी को पकडने के लिए घेराबन्दी भी शुरु कर दी। मासूम बच्चे का मेडीकल कराना जरुरी था,इसलिए एक वर्दीवाला बच्चे को उसके पिता के साथ लेकर रतलाम पंहुचा। लेकिन इस छोटे से काम में बच्चे और उसके पिता को घण्टों तक इधर उधर चक्कर लगाने पड गए। मासूम बच्चे को लेकर वर्दीवाला जब बडे अस्पताल पंहुचा,तो उसे कहा गया कि मामला बच्चे का है इसलिए उसे बच्चों के अस्पताल जाना पडेगा। वह बच्चों के अस्पताल पंहुचा,तो वहां से उसे फिर बडे अस्पताल भेज दिया गया। बडे अस्पताल में मौजूद सफेद कोट वाले साहब ने साफ कह दिया कि ये उनका काम नहीं है,इसलिए वो मेडीकल नहीं करेंगे। इसके लिए कोरोना वाले साहब को बुलाना पडेगा। पूरे मामले का कोरोना से कोई लेना देना नहीं था,लेकिन अस्पताल के कथित कोरोना वारियर सफेद कोट वाले कुछ भी करने को राजी नहीं हुए। आखिरकार कोरोना वाले साहब को खबर भेजी गई। कोरोना वाले साहब का इस मामले से कोई लेना देना नहीं था,इसके बावजूद आधी रात को वो अस्पताल पंहुचे और उन्होने बच्चे का परीक्षण किया। नन्हा बच्चा कथित कोरोना वारियर और सच्चे कोरोना वारियर के चक्कर में आधी रात तक धक्के खाता रहा। वो तो भला हो कि कुछ समाजसेवी अस्पताल पंहुच गए थे और उनकी कोशिशों से ही बच्चे का मेडीकल भी हो गया,वरना कथित कोरोना वारियरों के तौर तरीको के चलते उस नन्हे बच्चे को रात भर वहीं इंतजार करना पड सकता था। कोरोना काल की यही सबसे बडी विडम्बना है कि जो सच्चे कोरोना वारियर है उन्हे ना तो सुरक्षा मिल रही है और ना सम्मान। उन्हे मिल रही है प्रताडना और झिडकियां,जबकि सफेद कोट पहन कर मरीजों से दूर भाग रहे लोग कोरोना वारियर का तमगा लगाकर मजे ले रहे है। गांव गांव जाकर देसी दवाईयां बांटने और कोरोना संदिग्धों की जांच करने वाले आयुषकर्मियों को उनके अफसर सुरक्षा साधन देने के बजाय कार्यवाही की धमकी दे रहे है,जबकि दूसरी ओर सफेद कोट पहनने वाले ज्यादातर लोग बिना कुछ किए धरे ही कोरोना वारियर बन गए हैैं।
शुरुआती राहत के बाद खतरे की घण्टियां
बीते सप्ताह की शुरुआत अच्छी खबर से हुई थी। सप्ताह के पहले ही दिन पांच कोरोना संक्रमित ठीक होकर घर पंहुचे थे,लेकिन उसके अगले ही दिन खतरे की खबरें आ गई। एक के बाद एक करते हुए पांच कोरोना संक्रमित सामने आ गए। बडा खतरा यह भी था कि ये सारे संक्रमित नए नए इलाकों में ्मिले थे। गनीमत यह है कि पिछले चार दिनों से कोई भी कोरोना संक्रमित नहीं मिला है। अभी भी साठ संदिग्धों की जांच रिपोर्ट आना बाकी है। अब बस उपरवाले का ही सहारा है। अगर बचे हुए भी नेगेटिव आ गए,तो जल्दी ही जिला ओरेंज से ग्र्रीन झोन में आ जाएगा।