राग रतलामी-आम आदमी की जिन्दगी का कोई मोल नहीं है नरक निगम के लिए/हाशिये पर पडे पंचायती साहब
-तुषार कोठारी
रतलाम। फिर से ये साबित हो गया कि सरकारी अफसरों के लिए आम आदमी की जिन्दगी का कोई मोल नहीं होता। आम आदमी जिये या मरे,सरकारी हुक्कामों को इससे कोई फर्क नहीं पडता। एक ही परिवार की चार चार चिताएं एक साथ जलने पर भी उनकी संवेदनाएं नहीं जागती।
झाबुआ से रतलाम आकर जीप ड्राइवरी करने वाले उस शख्स को शायद ये बात पता नहीं थी। अपनी बीबी और दो बच्चों के साथ रात को जब वो सोया था तो अगली सुबह के नए इरादे लेकर सोया था,लेकिन सुबह सवेरे नींद खुलने से भी पहले उसकी बीबी और दोनो बच्चें हमेशा के लिए सो गए थे। जिस कमरे में वो सोये थे,उसी कमरे की छत उन पर आ गिरी थी और तीन निर्दोषों की मौत हो चुकी थी। परिवार में अकेले बचे परिवार के मुखिया ने भी इलाज के लिए इन्दौर ले जाने के दौरान रास्ते में ही दम तोड दिया। एक ही परिवार की चार चार चिताएं एक साथ जलाई गई। अखबारों के पन्नों पर जिसने भी ये खबर पढी होगी उसका मन द्रवित हुआ होगा।
लेकिन नगर निगम को नरक निगम बना चुके सरकारी हुक्कामों पर इसका कोई असर नहीं हुआ।
शहर में ये कोई पहला मौका नहीं है,जब जर्जर इमारतों ने किसी की जान ली हो। पहले भी एक परिवार इसी तरह बरसात के दिनों में जर्जर मकान धंसने से मौत के मुंह में समा चुका है।
लेकिन नगर को नरक में तब्दील कर चुके नरक निगम के जिम्मेदारों को इससे कोई फर्क नहीं पडता। दिखावे के लिए हर बरसात से पहले शहर की जर्जर हो रही इमारतों को गिराने के नोटिस जरुर दिए जाते है,लेकिन ये नोटिस उनकी कमाई का जरिया बन जाते है। बडी बात तो ये है कि इस बार तो ऐसे नोटिस भी जारी नहीं किए गए। अकर्मण्यता की हद तो तब हो गई,जब इतना बडा हादसा हो जाने के बाद भी नरक निगम के अफसरों की नींद नहीं खुली। अब भी शहर में सैकडों ऐसी जर्जर इमारतें मौजूद हैं,जिनमें बडी तादाद में शहर के बाशिन्दों ने अपने आशियाने बना रखे है और ये इमारतें इतनी जर्जर है कि किसी भी हलकी या तेज बारिश में ढह सकती है और इनमें रहने वालों की जान ले सकती है। इस तरह की इमारतों में ज्यादातर गरीब लोग बसते हैं,और इनकी जान की कोई कीमत नहीं होती। नरक निगम के जिम्मेदारों के लिए तो इनकी जान की बिलकुल भी कीमत नहीं है। शायद इसीलिए इस साल नरक निगम ने ना तो किसी जर्जर भवन को गिराने के लिए नोटिस दिया है और ना ही इस दिशा में अब तक कोई तैयारी की गई है।
हाशिये पर पडे पंचायती साहब
जिले की तमाम पंचायतों के सबसे बडे साहब इन दिनों हाशिये पर डाल दिए गए हैं। वैसे जिले के सरकारी इंतजामिया में इन साहब का नम्बर उपर से दूसरा होता है,लेकिन पहले नम्बर वाली मैडम की नाराजगी साहब को भारी पड रही है। पिछले दो महीनों से जिले का पूरा इंतजामिया कोरोना में उलझा हुआ है। कोरोना युध्द के शुरुआती दिनों में तो मैडम जी ने उन्हे जिम्मेदारियां सौंपी थी,लेकिन बाद में धीरे धीरे साहब को हाशिये पर किया जाने लगा। अब कोरोना से जुडे किसी मामले में साहब का नाम तक नहीं आता। इन साहब से पहले जो भी साहबान इस कुर्सी पर विराजते थे,वो सारे के सारे अखबारों की सुर्खियों में छाये रहा करते थे। वैसे भी जिले में सबसे बडा बजट इसी महकमें में आता है और विकास की पहली जिम्मेदारी भी इसी महकमें की मानी जाती है,इसलिए खबरें भी इसी महकमें की बना करती थी। लेकिन जब से मैडम जी नाराज हुई है,इन साहब का कहीं कोई जिक्र भी नजर नहीं आता। इंतजामिया के दूसरे मामलों में भी साहब को कोई लिफ्ट नहीं दी जाती। बडा सवाल यही है कि आखिर साहब ने ऐसी क्या खता कर दी कि मैडम जी ने उन्हे इस तरह हाशिये पर पटक दिया।
जीवनदाता की पिटाई
बीमारी के दिनों में इलाज करने वाले को जीवनदाता माना जाता है। इसी वजह से सफेट कोट पहनने वालों का सम्मान भी किया जाता है। लेकिन आजकल कुछ जीवनदाता,जीवनदान की व्यवस्था को व्यवसाय में बदल चुके है और इस वजह से उन्हे अपमानित होना पड जाता है। कुछ सरकारी सफेद कोट वाले जीवनदाताओं ने अपनी निजी व्यवस्थाएं बना ली हैं। ऐसे जीवनदाता,सरकारी शफाखाने में आने वाले गरीब मरीज को किसी तरह अपने निजी शफाखाने में आने को मजबूर करते हैं,ताकि शफाखाने का खर्च निकल सके। पटरी पार के एक शफाखाने में ऐसे ही एक मरीज की मौत हो गई। बस फिर क्या था मरीज के परिजनों के जीव का अंश बचाने वाले जीवनदाता को धुनक कर रख दिया। मजेदार बात यह है कि इस वाकये की कहीं कोई रिपोर्ट नहीं हुई,क्योंकि मामला निजी शफाखाने का था। वरना ये जीवनदाता,सरकारी शफाखाने में लोगों की पिटाई करने के लिए फेमस थे और उनकी बहादुरी के किस्से चर्चित हो जाया करते थे,लेकिन अब उनकी खुद की पिटाई चर्चाओं में है।
क्वारन्टीन होने से बच गई आपा
शनिवार को शहर में फिर चार नए कोरोना पाजिटिव मिल गए। वैसे जहां भी कोई कोरोना पाजिटिव मिलता है,इंतजामिया उस इलाके को कन्टेनमेन्ट एरिया बनाकर सील कर देता है और वहां रहने वालों को क्वारन्टीन कर देता है। लेकिन शनिवार का मामला अलग था। कोरोना पाजिटिव मरीज उसी घर से था,जहां पंजा पार्टी की आपा रहती है। सरकारी अफसर जब वहां पंहुचे,तो वहां के सारे लोग गायब थे। सूने घरों को कन्टेनमेन्ट एरिया बना दिया गया। पंजा पार्टी की सरकार में आपा की तूती बोलती थी। उसका असर अब तक बाकी है। और किसी का मामला होता तो सरकार उन्हे क्वारन्टीन करने के लिए कहीं से भी ढूंढ लाती,लेकिन ये मामला आपा का था,इसलिए किसी की खोजबीन नहीं की गई। यही नहीं आपा अगले ही दिन पंजा पार्टी के कार्यक्रम में मंच पर भी नजर आ गई। जिले के अफसर इस मामले में चुप्पी साध कर बैठे है। अब उन्हे संक्रमण फैलने का खतरा नजर नहीं आ रहा।