December 24, 2024

ये कुछ न करने का ही उचित समय……………..

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प्रकाश भटनागर

टीवी पर आ रहा चाकलेट का एक विज्ञापन देखा होगा सभी ने। इस समय तो वैसे भी टीवी ही टाइम पास का बड़ा सहारा है। तो बात उस विज्ञापन की। छड़ी गिरने से परेशान वृद्धा पास खड़े किशोर से उसे उठाने के लिए मदद मांगती है। किशोर चाकलेट का आनंद और स्वाद लेने में उसकी सहायता नहीं करता है। परेशान वृद्धा खुद ही छड़ी उठाने जाती है और उसी समय, उसी जगह ऊपर से भारी-भरकम सामान आकर गिरता है, जहां वह अब तक खड़ी हुई थी। तब वह उस किशोर का इस बात के लिए धन्यवाद कहती है कि उसने उसकी मदद के लिए कुछ नहीं किया।

लोकतांत्रिक व्यवस्था में जाहिर है कि मध्यप्रदेश को भी एक कार्यशील सरकार की दरकार है। राज्य का सूना पड़ा मंत्रिमंडल ऊपर बताई गयी वृद्धा की ही तरह मदद चाह रहा है। लेकिन शिवराज सिंह चौहान कम से कम आज की तारीख तक इस दिशा में कुछ कर पाने की स्थिति में नहीं दिख रहे हैं। लेकिन ऐसे विचित्र शून्य के बावजूद ये सब खल नहीं रहा है। बल्कि मौजूदा माहौल में तो यही लग रहा है कि मंंत्रिमंडल के गठन की दिशा में कुछ न किया जाना ही सबसे उचित कदम है।

यह दौर कोरोना वायरस के प्रसार का है। वह समय,जब इसी में भलाई है कि लोग एक-दूसरे से दूर रहें। संपर्क में न आएं। भीड़ में जाने से परहेज करें। यदि शिवराज ने ऐसे हालात के बीच मंत्रिमंडल का गठन किया तो मौजूदा दौर की सभी अनिवार्यताओं की धज्जियां उड़ना तय है। पहली आशंका यह कि मंत्री बने लोग क्षेत्र में जनता के बीच जाने का लोभ नहीं छोड़ पाएंगे। शक्ति प्रदर्शन के लिहाज से ऐसा किया जाना बहुत जरूरी होता है। चलिए, एकबारगी मान लिया कि उन्हें हालात का हवाला देकर ऐसा करने से रोक लिया जाए।

लेकिन तब दूसरी आशंका तो और भी बलवती होकर सामने आ जाती है। वह यह कि मंत्रियों के शुभचिंतकों की भीड़ ही भोपाल या उनके इर्दगिर्द उमड़ पड़े। आभार प्रदर्शन के नाम पर चमचे लग जाएंगे काम पर वाली स्थिति सारी सावधानी पर भारी पड़ सकती है। यानी धार्मिक जमातियों की जगह अब राजनीतिक जमातियों द्वारा लिए जाने का संकट मुंह बाएं खड़ा होना तय है। इसे रोकने के लिए यही उचित है कि यहां राजनीतिक स्थगनादेश फिलहाल तो बरकरार रहने दिया जाए, आगामी आदेश तक।

यूं भी सरकार तो चल ही रही है। अफसरों के मार्फत। इसमें किसी को भी चौंकना नहीं चाहिए। दिग्विजय सिंह हों या हों कमलनाथ तथा शिवराज सिंह चौहान, हरेक के समय पर सरकार के नाम पर अफसरशाही के हावी होने की शिकायतें शाश्वत रही हैं। जो भी सरकार बनी, उसके विधायक तो विधायक, मंत्री तक यह शिकायत करते रहे कि अफसर उन्हें तवज्जो नहीं देते है। उनकी बातों पर ध्यान नहीं दिया जाता है। दिग्विजय सरकार के पतन की वजह अंतत: अफसरों पर उनकी अति-निर्भरता ही बनी। यह इस तंत्र के हाथ में सत्ता के सूत्र आने का परिणाम ही था कि शिवराज सिंह चौहान की भारी लोकप्रियता के बावजूद भाजपा सत्ता में लगातार चौथी बार आने की कोशिश में पीछे रह गयी। कमलनाथ ने अफसरों को तो कुर्सी पर टिकने ही नहीं दिया, लेकिन अफसरनुमा लोगों की करतूतों से आंख मूंदने के चलते सत्ता उनकी नाक के नीचे से कब सरक गयी, उन्हें पता ही नहीं चल सका।

इसलिए शिवराज भी मंत्रिमंडल तो देर-सवेर बना ही लेंगे, किन्तु तब भी उसे अफसर वैसे ही संचालित करेंगे, जैसा राज्य में बीते पच्चीस साल से अधिक समय से होता चला आ रहा है। तो फिर क्यों कर कोरोना की महामारी के बीच मंत्रिमंडल के गठन जैसे कदम के जरिये राज्य का सामूहिक स्वास्थ्य खतरे में डाला जाए। ऐसा लिखने की मंशा अफसरशाही के पक्ष में बात रखने या ऐसे दुर्भाग्यशाली सिस्टम की पैरवी करने की नहीं है, लेकिन जब हालात पूरे प्रदेश की सुरक्षा का हो तो जो चल रहा है, उसे ही कायम रखे जाने में कोई बुराई नजर नहीं आती है। हां, यह किया जा सकता है कि हालात सामान्य होने तक शिवराज अपने लिए राजनीतिक सहायकों के समूह के रूप में मंत्रिमंडल के कुछ संभावित वरिष्ठ सदस्यों को सरकार के कामकाज से कोई कमेटी वगैरह बनाकर जोड़ लें। ताकि काम भी चलता रहे और लोगों को लोकतंत्र में इस बात का अहसास भी हो कि सिर्फ कार्यपालिका ही नहीं राजनीतिक नेतृत्व भी सामूहिकता से काम कर रहा है। जाहिर है इससे भीषण आपदा के दौर में मंंत्रिमंडल के गठन से उपजे उत्साह और असंतोष को इस कठिन समय में दूर रखा जा सकेगा। गठन के बाद वाली भीड़ तथा उससे उपजे खतरे भी जाहिर है दूर ही रहेंगे। वैसे तो लम्बे समय से यही प्रतीत होने लगा है कि भाजपा की सरकार हो तो अकेले शिवराज ही उसे चलाने में पूरी तरह सक्षम हैं, लेकिन क्योंकि इस बार की सरकार की विवशता उन कांग्रेसियों को भी साथ लेकर चलने की रहेगी जिनके कारण भाजपा की यह सरकार बनी है। सबको साथ लेकर चलने का अहसास कराने के लिए फिलहाल इतना काफी है कि मंत्री पद न सही, फौरी तौर पर उसके जैसे किसी समूह के जरिये ही बेकाबू हो रहे अरमानों को कुछ विश्राम दे दिया जाए। क्या बुरा है?

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