December 24, 2024

मैकाले और मार्क्स पुत्रों की दृष्टि में भारतीय परंपरा की वैज्ञानिकता अपराध

04_12_2015-godexists

डॉ रत्नदीप निगम

अभी-अभी कोरोना काल में कुछ दिनों से एक महत्वपूर्ण परिदृश्य हमारे समाज के अथवा यह कहें कि राजीनीतिक रंगमंच पर निर्मित हुआ है ।जिससे लगता ही नहीं अपितु यह प्रामाणिक रूप से सिद्ध हुआ है कि 2014 में भारत की जनता ने जो निर्णय लिया था वह जनता की दूरदर्शिता का सक्षम प्रतीक है ।

घटनाक्रम प्रथम — देश में एक केंद्रीय मंत्री जी ने कह दिया कि पापड़ खाने से कोरोना को रोका जा सकता है । उनके इतना कहते ही परम ज्ञानी पप्पू ब्रिग्रेड सहित मैकाले और मार्क्स पुत्रों ने त्वरित मोदी सरकार पर आक्रमण कर दिया और मंत्री महोदय के बयान को पुरातनपंथी और हास्यास्पद घोषित कर दिया ।

मार्क्स और मैकाले पुत्रों द्वारा यह व्यवहार कोई नई घटना नहीं थी , वे तो स्वभावतः मोदी सरकार अथवा हिंदुत्व विचार से आने वाले कोई भी बयान का विरोध करना अपना धर्म समझते हैं लेकिन इसमें आश्चर्यजनक यह है कि भारत को , भारतीयता को भारतीय समाज को जानने का दंभ भरने वाले भारतीय संस्कृति और उसकी वैज्ञानिकता से कितने अनजान हैं , यह प्रमाणित हो गया । मंत्री जी भारत के राजस्थान प्रान्त का प्रतिनिधित्व करते हैं , वहाँ प्राचीन परंपरानुसार एक पौधे को जलाकर निकलने वाले क्षार(खार) का प्रयोग पापड़ बनाने में कई वर्षों से होता आ रहा है । जब बाजार में कृत्रिम क्षार उपलब्ध नहीं थे तब भारत उस पौधे से ही क्षार प्राप्त कर पापड़ में मिलाया जाता था जो आज भी भारत के कई प्रान्तों मे प्रचलित है ।

आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के तथाकथित विशेषज्ञों एवम वाट्सएप विश्वविद्यालय के विद्वानों ने मीडिया साक्षात्कारों में , अपने लेखों में जोर-जोर से यह कहा है कि कोरोना का ph वेल्यू अधिक होता है अतः क्षारीय पदार्थों का सेवन करके उसके ph को कम किया जाना चाहिए । इन विद्वानों के तर्क और मंत्री महोदय के तर्क में केवल इतना ही अंतर था कि वे आधुनिक शोध द्वारा प्रमाणित ph वेल्यू को अपनी भारतीय परंपरा के माध्यम से कम करने का संदेश प्रसारित करना चाह रहे थे ।

मैकाले और मार्क्स पुत्रों की दृष्टि में उनका यह अपराध था कि वो मोदी सरकार के मंत्री है और वे भारतीय परंपरा की वैज्ञानिकता को सिद्ध करने का प्रयास कर रहे थे , इसलिए हिंदुत्व दर्शन और परम्पराओ का विरोध करना उनका डीएनए जन्य अधिकार है ।
दूसरा घटनाक्रम यह था कि फेसबुक पर दक्षिण कोरिया से एक पोस्ट प्रकाशित हुई कि चीन के सैनिक रो रहे हैं ।

जब यह पोस्ट भारत में सोशल मीडिया पर चर्चित हुई तो भारत में बैठे मार्क्स पुत्रों के भीतर भारत से घृणा से और चीन के प्रति प्रेम का डीएनए सक्रिय हो गया और उस प्रकाशित पोस्ट के फोटो की आलोचना इस आधार और तर्क से की गई कि चीन के सैनिकों को रोना शोभा नहीं देता और हमारे रहते चीन के सैनिकों को रोने की आवश्यकता क्यों है ?

इन दोनों घटनाक्रमों से भारत की जनता को गुणी , दूरदर्शी और श्रेष्ठ विश्लेषक निरूपित किया है । भारत , भारतीयता और हिन्दू दर्शन से घृणा करने के कारण आज ये मैकाले और मार्क्स के पुत्र कोरोना के आपदा काल मे भी जन सामान्य के साथ खड़े नहीं है । इनकी जड़े मास्को और इटली में होने के कारण सदैव प्राचीन भारत की वैज्ञानिकता पर गर्व करने एवं भारत के वर्तमान की किसी भी उपलब्धि पर अपना विषवमन करते रहते हैं ।

इन यूरोपीय विचारों से अनुप्राणित इन विषैले सर्पो को भारत की जनता ने पहचानकर शासन व्यवस्था से दूर कर भारतवर्ष पर उपकार किया है और भारत के प्रति अपनी निष्ठा को प्रमाणित किया है जो भारतीय लोकतंत्र के लिए अभिनंदनीय है ।

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