मुलायम की प्रेस कॉन्फ्रेंस से साफ, नहीं निकला कोई फॉर्मूलाः तो क्या अखिलेश हैं सबसे ताकतवर?
नई दिल्ली,25 अक्टूबर(इ खबरटुडे)। मुलायम सिंह यादव ने जब मंगलवार को दोपहर ढाई बजे प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई तो ऐसा माना जा रहा था कि कई अहम घोषणाएं उनकी ओर से की जा सकती हैं और पार्टी एवं परिवार की एकजुटता दिखाई दे सकती है. लेकिन यह धारणा वहीं कच्ची पड़ गई जब प्रेस कॉन्फ्रेंस के लिए मुलायम के साथ केवल शिवपाल ही नज़र आए. अखिलेश यादव इस मौके पर नदारद रहे. इससे एकजुटता की बात की कलई खुल गई.
रही सही कसर मुलायम सिंह के बयान से पूरी हो गई. मुलायम सिंह ने अपने चंद वाक्यों के संबोधन में केवल अपने राजनीतिक सफर की बात कही. इसका आशय साफ है कि वो यह बताना चाहते थे कि ये पार्टी उनकी बनाई हुई है और वो अभी भी पार्टी के अध्यक्ष हैं, पार्टी उनके पास है.
तो क्या मुलायम इस संकट को भांप चुके हैं कि पार्टी की बागडोर उनके हाथ से निकलती जा रही है. कम से कम मुलायम सिंह यादव की प्रेस कॉन्फ्रेंस यही साबित करती है कि यह आयोजन किसी समझौते की घोषणा के लिए नहीं, अपने वजूद को पुनर्स्थापित करने के लिए थी.
मुलायम क्या बोले
सवाल जवाब का सिलसिला शुरू हुआ तो मुलायम बोले की पार्टी एक है और परिवार एक है. कोई मतभेद नहीं है. कार्यकर्ता उनके साथ हैं. इसके बाद उन्होंने विवाद के हर सवाल को टालने की ही कोशिश की. उन्होंने कहा कि वो एक भी विवादित बात नहीं कहेंगे.
रामगोपाल के बयानों पर हुए सवालों पर उन्होंने कहा कि मैं उनकी बातों को महत्व नहीं देता और फिर अमर सिंह पर बोले कि उनको पार्टी से नहीं निकाला जाएगा.
अगला मुख्यमंत्री का चेहरा अखिलेश यादव होंगे या नहीं, इसपर मुलायम सिंह ने पत्रकारों को औपचारिक सा भाषण दे दिया. उन्होंने कहा कि समाजवादी पार्टी एक लोकतांत्रिक पार्टी है और जीत के आने वाले विधायकों की राय के आधार पर ही अगले मुख्यमंत्री का निर्णय होगा.
मुलायम क्या नहीं बोले
इस प्रेस कांफ्रेंस में मुलायम क्या बोले, इससे ज़्यादा अहम है कि वो क्या नहीं बोले. बार बार पूछे जाने पर भी उन्होंने नहीं बताया कि शिवपाल और अन्य बर्खास्त मंत्रियों की सरकार में वापसी होगी या नहीं. मुलायम बार बार इस सवाल को टालते रहे और उन्होंने कहा कि इसपर फैसला मुख्यमंत्री ही लेंगे. यानी साफ है कि शिवपाल और बाकी मंत्रियों की वापसी पर अभी कोई अंतिम फैसला नहीं हो सका है और सरकार में बना गतिरोध कायम है.
गतिरोध इसपर भी यथावत है कि इस पूरे प्रकरण के एक और भुक्तभोगी रामगोपाल यादव की पार्टी में वापसी होगी या नहीं. क्या उनका पार्टी से 6 वर्ष का निलंबन वापस लिया जाएगा या उनको अभी वनवास पर ही रहना होगा.
मुलायम सिंह यादव इस बात का भी जवाब नहीं दे सके कि क्या वजह है कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में नहीं आए हैं.
क्या अखिलेश हैं सबसे ताकतवर?
तो क्या यह मान लिया जाए कि अखिलेश की ताकत के आगे अब यादव परिवार के दिग्गजों को अपना सिंहासन डोलता हुआ दिखाई दे रहा है. दरअसल, समाजवादी पार्टी के विधायकों का एक बड़ा हिस्सा अखिलेश के साथ खड़ा है. पार्टी छोड़कर जाने की मजबूरी फिलहाल अखिलेश के साथ नहीं है. मजबूरी है बाकी लोगों का पार्टी में वर्चस्व बने रहने की.
अखिलेश पिछले कुछ सप्ताहों से अलग वॉर रूम चलाकर अपना प्रचार और सरकार चलाने का काम कर रहे हैं. अखिलेश दरअसल वही कर रहे हैं जो उनके पिता मुलायम सिंह यादव अपनी पार्टी में करते रहे हैं. अलोकतांत्रिक होकर एकछत्र राज करने की रणनीति और कौशल अखिलेश ने अपने पिता से ही सीखा है.
अगर अखिलेश किसी फार्मूले पर सहमत हो गए होते तो आज नेताजी के साथ उनकी भी उपस्थिति होती. अगर अनुपस्थिति को किसी और बहाने से जायज़ बताया भी जाता तो कम से कम मंत्रिमंडल में वापस की घोषणाएं तो ज़रूर सुनने को मिलतीं. एक समझौते के तहत रामगोपाल की वापसी की भी घोषणा की जाती.
लेकिन ऐसा हुआ नहीं है और दोनों कैंपों की ओर से बयानबाज़ी का दौर जारी है. रामगोपाल चुप होने के बजाय लगातार बोल रहे हैं. यही स्थिति अमर सिंह की भी है. वो भी रामगोपाल पर सीधे नाम लेकर हमले कर रहे हैं. सपा का संकट फिलहाल टला नहीं है. पार्टी पर वर्चस्व की लड़ाई जारी है और इसमें पिता और पुत्र आमने-सामने हैं.