मन आनंद से भर जाता है तो संसार की तृष्णा खत्म हो जाती है
खराब नीयत से की गई सेवा से लाभ नहीं होता। कर्ज लेकर कभी नहीं मरना चाहिए
रविवार को छठे दिन की कथा में महाराज ने कृष्णजन्मोत्सव की कथा सुनाई
रतलाम 04दिसम्बर(इ खबरटुडे)। भक्ति ही भगवान को बांधती है। कथा श्रोता, प्रश्नकर्ता को पवित्र करती है। वासुदेव नाम चित्त का है और ऐसी वृत्ति जिसमें भगवान से मिलने की प्रबलता है वह देवकी है। यह बात बड़ा रामद्वारा में महंत गोपालदास जी महाराज के सान्निध्य में चल रही भागवत कथा के छठे दिन कथा व्यास क्षमारामजी महाराज ने कही।
रविवार को छठे दिन की कथा में महाराज ने कृष्णजन्मोत्सव की कथा सुनाई जिस दौरान भक्तों ने जमकर उत्सव मनाया। नंद घर आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की की स्वर लहरियों से पूरा परिसर गूंजायमान हो गया। वासुदेव अपने सिर पर नन्हें कृष्ण को लेकर निकले तो सभी भक्तों का मन उनके चरण स्पर्श करने के लिए लालायित हो गया। महाराज ने कहा कि यह आनंद उत्सव है। साधक की प्रेमवृत्ति को गोपी कहते हैं। इस दौरान महाराज द्वारा मुक्ति का दीया पत्रक वितरित भी किए गए।ऋषीकेश से पधारे महाराज मतंगऋषी व अनेत माताओं व भक्तों ने भी कथा श्रवण की और भजनों पर जमकर थिरके भी।
गौ यानि इंद्रिया
महाराज ने कथा सुनाते हुए कहा कि प्रत्येक इंद्री में आनंद छा जाए तो वही आनंद उत्सव है। अर्थ, काम में व्यर्थ समय नहीं गंवाना चाहिए। पूतना प्रसंग सुनाते हुए कहा कि भगवान की शरण में जो भी आता है परमात्मा उसकी रक्षा और कल्याण करते हैं। पूतना ने भी उन्हें अपनाया इसलिए उसे भी मुक्ति मिल गई। महाराज ने कहा कि मन आनंद से भर जाता है तो संसार की तृष्णा खत्म हो जाती है। भगवान कृष्ण के अनेकों नाम और हजारों लीलाऐं हैं और सभी में सार छुपा है। उन्होंने कहा कि जीवन में भगवत भजन गुप्त रखो और उपकार को कभी मत भूले ये सीख कृष्ण ने दी है। खराब नीयत से की गई सेवा से लाभ नहीं होता। कर्ज लेकर कभी नहीं मरना चाहिए, इसलिए यथासंभव परोपकार करते चलें। नारायण सबके साक्षी है और सबके दाता। हर वस्तु, हर कर्म, हर विचार इन्हें अर्पण करना चाहिए। महाराज ने माता-पिता, गुरु, गौमाता, भयभीत व्यक्तियों आदि की सेवा की प्रेरणा दी तथा कहा कि ये अगर भयभीत हो तो उस व्यक्ति का विनाश निश्चित है।
मिट्टी में 100 प्रतिशत पोषण
महाराज ने कृष्ण लीला का वर्णन करते हुए कहा कि मिट्टी के बने बरतन में पके भोजन में 100 प्रतिशत पोषण मिलता है। जगन्नाथ का प्रसाद मिट्टी के बरतनों में तैयार होता है। महाराज ने कहा धन अभाव अच्छा और भगवान का प्रभाव अच्छा। संत के श्राप में भी कल्याण छिपा होता है। महाराज ने कहा कि कृष्ण के मित्र ग्वाल-बाल के साथ सहभोज करते थे जो सामाजिक समरसता का प्रतीक है। उन्होंने अधासुर, बकासुर, वत्सासुर उद्धार, ऊखल कथा आदि सुनाई और कहा कि भगवान ने ऐश्वर्य लीला का प्रदर्शन यह समझाने के लिए किया है कि संसार के समस्त वैभव मोह पाश के समान है। इनका संग्रह निरर्थक है। भक्त के मन में सदैव पद-पद पर भगवत कृपा को देखने की दृष्टि होनी चाहिए। सोमवार को भागवत कथा का सांतवे दिन का वाचन होगा।