भारत ने जब अमेरिका को दो टूक कह दिया था, नहीं लेना आपके हथियार
नई दिल्ली,07नवंबर( इ खबर टुडे)।भारत और अमेरिका के बीच अब बहुत प्रगाढ़ मित्रता है। हाल ही में अमेरिका और भारत के बीच कुछ अहम सामरिक समझौते भी हुए हैं। अमेरिका के नए राष्ट्रपति पर भी भारत की पूरी नजर होगी। मगर आज से करीब 6-7 दशक पूर्व ऐसा नहीं था।
भारत को आजादी मिलने के बाद अमेरिका प्रथमदृष्टया पाकिस्तान का मित्र और सहयोगी बन गया था। उसने कई बार भारत के खिलाफ फैसले लिए और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के खिलाफ माहौल बनाया।
सन् 1962 में हुए भारत-चीन युद्ध के बाद अमेरिका ने भारत में अपने लिए संभावनाएं देखीं और वह छद्म रूप से भारत का मित्र बन गया। उसकी रणनीति थी कि वह कुछ मदद देकर भारत को अपने पक्ष में कर ले और इस मित्रता की आड़ में उसका इस्तेमाल चीन का प्रभाव कम करने में करे।
इसके लिए बाकायदा उसने भारत को हथियार सप्लाय करना शुरू किए और शर्त रखी कि इनका इस्तेमाल चीनी सेना से निपटने में किया जाएगा। भारत को भी उस समय आधुनिक हथियारों की सख्त जरूरत थी क्योंकि युद्ध की समाप्ति के बाद भी चीनी खतरा बना रहता था। यही वजह रही कि भारत ने अमेरिका का यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया कि वह इन हथियारों का इस्तेमाल चीन के खिलाफ ही करेगा।
इस बीच पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति मोहम्मद अयुब खान ने अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जॉन एफ. कैनेडी को पत्र लिखकर चिंता जताई कि भारत इन हथियारों का इस्तेमाल पाकिस्तान के खिलाफ भी कर सकता है।दरअसल, यह अयुब की चाल थी ताकि वह भारत पर कश्मीर को लेकर अतिरिक्त दबाव बना सके।
कैनेडी ने भी तब भारत को यह बयान देने के लिए मजबूर करना चाहा कि ‘हम पाक के खिलाफ हथियार का इस्तेमाल नहीं करेंगे”, मगर भारत ने झुकने और ऐसा बयान देने से साफ इंकार कर दिया। उलटे भारत ने अमेरिका से कहा ‘यदि ऐसा है तो हमें आपके हथियार नहीं चाहिए, किंतु हम अपनी संप्रभुता की रक्षा से पीछे नहीं हटेंगे।” भारत की तत्कालीन जवाहरलाल नेहरू सरकार का यह जवाब अमेरिका के लिए चौंकाने वाला था।