भाजपा को भारी पड सकते है मूल मुद्दों से जुडे सवाल
-तुषार कोठारी
2019 के लोकसभा चुनाव को लेकर चर्चाओं का दौर शुरु हो चुका है और देश के अधिकांश राजनैतिक विश्लेषक यह मानकर चल रहे है कि नरेन्द्र मोदी का दोबारा प्रधानमंत्री बनना तय है। मतभिन्नता है तो सीटों की संख्या और एनडीए के घटक दलों को लेकर है। लेकिन अधिकांश लोगों का मानना है कि नरेन्द्र मोदी ही अगले प्रधानमंत्री होंगे। भाजपा के रणनीतिकारों का भी यही मानना है।
विश्लेषकों की यह मान्यता ठोस आधारों पर बनी है। मोदी सरकार का चार सालों का कार्यकाल और देश के अन्य राजनैतिक दलों की हालत इस मान्यता का आधार है। निश्चित रुप से मोदी सरकार ने पिछले चार सालों में जो उपलब्धियां अर्जित की है,वे ऐतिहासिक हैं। ठीक इसी के साथ कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दलों की वर्तमान स्थिति पिछले चुनाव की तुलना में बदतर हो चुकी है।
विपक्षी दलों की बात की जाए,तो हिन्दीभाषी प्रदेशों में विपक्ष की हालत बेहद खस्ता है। उत्तर प्रदेश में जहां मुलायम सिंह बुजुर्ग होकर अपने ही पुत्र अखिलेश से अपमानित हो चुके हैं,वहीं बहन जी मायावती बुझी हुई राख में अंगारों को ढूंढने की कोशिशें कर रही है। कांग्रेस यहां लगभग अस्तित्वहीन है। अब तीनों मिलकर भाजपा को चुनौती देने की योजना बना रहे है। बिहार में लालू जी भ्रष्टाचार के मामले में जेल में बन्द होकर बुढापे और बीमारियों से जूझ रहे है और अल्पशिक्षित तेजस्वी के हाथों में कमान है। दक्षिण भारत में अम्मा जयललिता और करुणानिधि स्वर्ग सिधार चुके है और उनके पीछे उन जैसा चमत्कारिक व्यक्तित्व कहीं नजर नहीं आता। इस सब के बाद काल्पनिक महागठबन्धन के नेता का यक्षप्रश्न सभी के सामने है। कुल मिलाकर विपक्षी चुनौती नदारद है और मोदी जी का चमत्कारिक व्यक्तित्व,भाजपा के लिए जीत की गारंटी नजर आ रहा है।
लेकिन राजनैतिक परिदृश्य इतने भर से ही स्पष्ट नहीं हो जाने वाला। कुछ सवाल है,जो जमी जमाई कहानी को बिगाडने में सक्षम है। जो बेहद मजबूत किले बाहरी आक्रमणों से ध्वस्त नहीं हो सकते,वे अक्सर भीतरी कमजोरियों से नष्ट हुए हैं। भाजपा का मजबूत दुर्ग बाहरी आक्रमणों को झेलने में तो पूरी तरह सक्षम नजर आ रहा है,लेकिन भीतरी चुनौतियों का निपटारा कैसे होगा ? यह प्रश्न अब तक अनुत्तरित है।
भीतरी चुनौतियां सिर्फ पार्टी संगठन और नेताओं की ओर से नहीं है,बल्कि भाजपा के हिन्दुत्ववादी जनाधार की तरफ से भी है। और यही शायद सबसे बडी चुनौती है। भाजपा का अपना स्वयं का हिन्दुत्ववादी या कहें राष्ट्रवादी मतदाताओं का जो जनाधार है,उसमें अब कहीं न कहीं निराशा या नाराजगी का माहौल बनने लगा है। हांलाकि इस नाराजगी को पहचानना आसान नहीं है,लेकिन इस वर्ग की नाराजगी सारे खेल को बिगाडने में सक्षम है।
इस पहलू को समझने के लिए हमें पन्द्रह वर्ष या कहिये बीस वर्ष पीछे जाना होगा। याद कीजिए वर्ष 1999 जब पहली बार भाजपा को केन्द्रीय सत्ता में आने का मौका मिला था और अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने थे। वाजपेयी जी के कार्यकाल में पोखरण परमाणु परीक्षण, स्वर्णिम चतुर्भुज,नदी जोडों अभियान जैसी कई उल्लेखनीय उपलब्धियां अर्जित की गई। उस समय भाजपा के नीति निर्धारक मान कर चल रहे थे कि शाइनिंग इण्डिया के नारे से दोबारा जीत पक्की है। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। विदेशी मूल की श्रीमती सोनिया गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने जीत हासिल कर ली।
पराजय के वास्तविक कारणों को भाजपा नेतृत्व ने कभी उजागर नहीं किया। उस वक्त संसद हमले के बाद सीमाओं पर लम्बे समय तक सेना तैनात करने और पाकिस्तान के खिलाफ कडी बयानबाजी करने के बावजूद कोई ठोस कार्यवाही नहीं होने से राष्ट्रवादी सोच वाले मतदाता अटल जी से बुरी तरह निराश हो चुके थे। पाकिस्तान सम्बन्धी अटल जी की नीति ने हिन्दुत्ववादी सोच वाले मतदाताओं को बुरी तरह नाराज कर दिया था। भाजपा का जो मूल जनाधार है,वह आरएसएस की विचारधारा को मानने वाले लोगों का जनाधार है। राष्ट्रवादी सोच रखने वाले लोगों की देश में एक बडी संख्या है। ये ही वो मतदाता है जो भाजपा की जीत में प्रमुख भूमिका निभाते है। हिन्दुत्ववादी और राष्ट्रवादी सोच रखने वाले ये मतदाता विकास को पूरा महत्व देते है,लेकिन उनके लिए राष्ट्र के सम्मान से जुडे मसलों का महत्व विकास से कम नहीं है,बल्कि वे इसी को प्राथमिकता देते हैं। चूंकि अटल जी के समय संसद हमले के बाद भारत की नीति शर्मसार कर देने वाली थी,इसलिए भाजपा का मूल जनाधार बुरी तरह नाराज था और इसी का नतीजा था कि उस समय भाजपा दोबारा सत्ता में नहीं आ पाई।
वर्तमान समय को देखें। मोदी जी ने देश की साफ्ट स्टेट की छबि को सर्जिकल स्ट्राइक जैसे कदम उठाकर सुधारने का काम किया और पूरे देश ने इसका भरपूर समर्थन भी किया। लेकिन हिन्दुत्ववादी सोच रखने वाले मतदाताओं के सर्वाधिक महत्व के मुद्दों पर अब तक स्थितियां स्पष्ट नहीं हुई है। राम जन्मभूमि मन्दिर का मुद्दा न्यायालय के भरोसे छोड दिया गया है। इसी तरह जम्मू कश्मीर का मामला भी न्यायालय के जिम्मे डाल दिया गया है। भाजपा के राष्ट्रवादी मतदाता दशकों से कांग्रेस को देश की सुरक्षा और आतंकवाद पर नियंत्रण नहीं कर पाने के लिए कोसते रहे हैं और उन्हे उम्मीद थी कि भाजपा की राष्ट्रवादी सरकार आएगी,तो पाकिस्तान को सबक सिखाएगी। लेकिन सर्जिकल स्ट्राइक के बावजूद आतंकवाद काबू में नहीं आ सका और ना ही पाकिस्तान की हरकतें सुधरी।
ये और इस तरह के राष्ट्र से जुडे मुद्दों पर भाजपा के मूल जनाधार को संतोषजनक काम नजर नहीं आया है। राम जन्मभूमि मन्दिर के लिए आन्दोलन करने वालें लाखों लोग टकटकी लगा कर भाजपा की तरफ देख रहे है। भाजपा के नेता पहले स्पष्ट बहुमत नहीं होने का हवाला देकर बच निकलते थे,लेकिन जब स्पष्ट बहुमत आ गया,तब भी नेता न्यायालय की ही दुहाई देते रहेंगे,यह इन मतदाताओं के गले नहीं उतर रहा है। उन्हे उम्मीद थी कि भाजपा कानून बनाकर मन्दिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त करेंगी। इसी तरह राष्ट्रवादी लोगों को उम्मीद थी कि पाकिस्तान सुधरे न सुधरे,कश्मीर की धारा 370 समाप्त करने का वादा भाजपा जरुर निभाएगी। लेकिन यह भी नहीं हुआ।
भाजपा का यह मूल जनाधार संघ की सोच से जुडा हुआ है। ये वो मतदाता है,जो खुलकर अपनी नाराजगी का इजहार नहीं करते,लेकिन इनकी नाराजगी और उदासीनता की कीमत अटल जी को चुकाना पडी थी। पूरे देश को दस साल तक भ्रष्टतम सरकार झेलना पडी थी। भाजपा के नीति निर्धारकों को इस पहलू पर गंभीरता से विचार कर लेना चाहिए। शाइनिंग इण्डिया जैसा हश्र दोबारा ना देखना पडे,इसके लिए जरुरी है कि देश की सुरक्षा और हिन्दुत्व से जुडे मुद्दों पर ठोस काम किया जाए,जो नजर भी आए।