बलात्कार पर सिकती राजनीतिक रोटियांं…
वैदेही कोठारी (स्वतंत्र पत्रकार एवं लेखिका)
कुछ दिनों से लगातार बलात्कार के प्रकरण टीवी चैनलों पर दिखा रहे है। फिल्म स्टार पायल घोष ने अनुराग कश्यप पर बलात्कार करने की शिकायत पुलिस से की, तो पुलिस ने तुरंत कार्यवाही शुरू कर दी,और 8-8 घंटे अनुराग से सवाल जवाब करती रही। इसके साथ ही दर्जनों बलात्कार छोटी बच्चियों व महिलाओं के साथ हुए हैं,बलात्कार करने के बाद किसी बच्ची के पैर हाथ तोड़ दिये तो,किसी की गर्दन,कमर की हड्डी तोड़ दी,किसी की जुबान काट दी,इतनी बरर्बता के साथ बलात्कार करके उस मासूम को मौत के घाट उतार दिया। एन सी आर बी रिपोर्ट के अनुसार भारत में हर 15 मिनिट में एक बलात्कार और एक दिन में 89 बलात्कार हो रहे हैं।
आज हमारे समाज और राजनीतिक लोगों ने बलात्कार को भी वर्गीकृत कर दिया है। हाई और लोअर सोसाइटी,दलित और उच्च जाति वर्ग। हाई सोसाइटी के बलात्कार में तुरंत कार्यवाही शुरू हो जाती है,जबकि गरीब,दलित वर्ग की रिपोर्ट लिखने के लिए पुलिस भी आना-कानी करती है। ज्यादा दबाव देने पर लिख भी लेती है, तो कोई कार्यवाही नही की जाती है। हाई सोसाइटी के बलात्कार पीडि़ता के लिए महिला आयोग और नारी संगठन, सहयोग के लिए खड़़ी हो जाती है,धरने व नारे लगाने के लिए सड़को पर उतर जाती है। इसके विपरित दलित व गरीब वर्गकी बलात्कार पीडि़ता के लिए कोई महिला आयोग और नारी संगठन क्यों नही आते?
हाइसोसाइटी एवं बालीवुड के मामले बहुतर आपसी रज़ामंदी के होते है। जब तक काम मिलता रहता है,तब तक सब चलता है,हम खुले विचार के होते है,आधुनिकता में आता है,जहां किसी महिला को उसके मुताबिक कार्य नही मिलता तो वह बलात्कार का आरोप लगा देती है। पहले भी ”हेश टेग मी टू में कई तथाकथित उच्च वर्गीय महिलाओं ने बड़े-बड़े नेता व अभिनेताओं पर बलात्कार व शोषण का आरोप लगाया था। कईयों पर तो अभी भी केस चल रहे है। इसी तरह कंगना ने कास्टिंग काउच की बात कही तो कई सारी अभिनेत्रियों ने पुन: अपनी पुरानी तकलीफों को प्याज की परतों की तरह खोलना शुरू कर दिया। साथ ही सारे टीवी चैनलों को नया मसाला मिल गया।
इसके विपरित जो असली बलात्कार मामले होते हैं,उनके मामले तो दर्ज होकर फाइलों में ही बंद हो जाते हैं। और कई बलात्कारी मामले तो घर के बाहर ही नही आते हैं, क्योंकि उनको समाज का डर बना हुआ हैं। कई महिलाएं तो समाज के डर से बताती भी नही हैं,और बारम्बार वह बलात्कार का शिकार बनती रहती हैं। शारीरिक बलात्कार होने के बाद उसका मानसिक बलात्कार हमारा समाज करता है। उसे पल पल याद दिलाता है, कि उसका बलात्कार हुआ हैे। निर्भया कांड के बाद हमारे प्रशासन ने कठोर कानून बनाए थे, कठोर कानून देख कर ऐसा लगा मानों हमारे समाज में अब शोषण और बलात्कार मामले कम हो जाएगे,किन्तु ऐसा बिल्कुल नही हुआ। कठोर कानून व फांसी सजा के बावजूद भी शोषण और बलात्कार के मामले बढ़ते जा रहे है। फांसी की सजा भी बलात्कारियों के कदम नही रोक पा रही हैं।
जब भी बलात्कार होता हैं तो कुछ दिनों तक सारे टीवी चैनलों पर बस एक ही तरह की खबरे चलती रहती हैं। बलात्कार को और अधिक मसालेदार बनाने में सभी टीवी चैनल वाले लग जाते है। हर चैनल पर बहस चलेगी,सारे रिपोर्टर पीडि़ता के घर धरना देकर के बैठ जाएंगे। इसी तरह अलग -अलग पार्टी के नेता लोग भी अपनी राजनीतिक रोटियां सेकने में लग जाते हैं, इन सबके बीच पीडि़ता की तकलीफ एक ओर रह जाती हैं।
बलात्कार को जब तक उच्च वर्ग, जाति,सम्प्रदाय,राजनीतिक से जोड़ा जाएगा,तब तक पीडि़ता को न्याय नही मिल पाएगा।
दलित,गरीब पीडि़ता के लिए पुलिस तुरंत कार्यवाही क्यों नही करती है? आखिर क्यों उन्हें अच्छा इलाज नही मिलता? बलात्कार पीडि़ता को क्यों किसी धर्म जाति या समाज से जोड़ा जाता है? पीडि़ता का दर्द क्यों महसूस नही होता? हर बलात्कार पर क्यों राजनीतिक रोटियां सेकी जाती हैं?
नोट-यह रचना पूर्णत: मौलिक व अप्रकाशित है।